कैंसर के इलाज में आई सेलुलर इम्यूनोथेरेपी, रोगियों को मिलेगी राहत
सेलुलर इम्यूनोथेरेपी के प्रचलन में आने से विभिन्न प्रकार के कैंसरों से पीड़ित लोगों में एक नई उम्मीद जागी है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कैंसर ऐसा रोग है, जिसका नाम सुनते ही पीड़ितों और उनके परिजनों में भय व्याप्त हो जाता है, लेकिन मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के कारण कैंसर के इलाज की पद्धति में सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं, जिसका सिलसिला जारी है। इस क्रम में हाल में प्रचलन में आई सेलुलर इम्यूनोथेरेपी भी शामिल है। इम्यूनोथेरेपी का प्रयोग सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी के साथ किया जा सकता है या अकेले भी किया जा सकता है। सेलुलर इम्यूनोथेरेपी के प्रचलन में आने से विभिन्न प्रकार के कैंसरों से पीड़ित लोगों में एक नई उम्मीद जागी है। इस थेरेपी की खूबियां क्या हैं...?
जानें क्या है इम्यूनोथेरेपीचूंकि शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली में पहले से ही इम्यून सेल्स(कोशिकाएं) या डिफेन्स सेल्स मौजूद रहती हैं। ये सेल्स किसी भी प्रकार के हानिकारक जीवाणु या कैंसर सेल्स को शरीर में आते ही नष्ट कर देती हैं, लेकिन जब इम्यून सेल्स की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है तो विभिन्न बीमारियां या कैंसर शरीर में पनपने लगता है। इसलिए वैज्ञानिकों ने इन्हीं प्रतिरोधक क्षमता वाली सेल्स की संख्या एवं मारक क्षमता को बढ़ाने और प्रभावी बनाने के लिए सेलुलर इम्यूनोथेरेपी की खोज की है।
सेलुलर इम्यूनोथेरेपी के प्रकार
- एडॉप्टिव टी सेल थेरेपी
- डेन्ड्राइटिक सेल वैक्सीन
- कार टी सेल थेरेपी
- नेचुरल किलर या एन. के. सेल थेरेपी
सेलुलर इम्यूनोथेरेपी का प्रयोग
एडॉप्टिव टी सेल थेरेपी का प्रयोग देश में पिछले कई सालों से विभिन्न प्रकार के कैंसरों जैसे ब्रेस्ट, लंग, पैन्क्रियाज, कारसिनोमा, मीलेनोमा और किडनी के कैंसर में हो रहा है, लेकिन अत्यधिक सफलता न मिलने से अब इसका प्रचलन कम हो गया है। डेन्ड्राइटिक सेल वैक्सीन का प्रयोग ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डी.सी.जी.आई) द्वारा इस सेल वैक्सीन के निर्माण और इसके प्रयोग की चुनिंदा संस्थानों को अनुमति दी जा चुकी है। इसका प्रमुख रूप से प्रयोग इन कैंसरों में हो रहा है...
- प्रोस्टेट कैंसर
- स्तन (ब्रेस्ट) का कैंसर
- लंग कैंसर (फेफड़े का कैंसर)
- कोलोरेक्टल कैंसर (बड़ी आंत का कैंसर)
गौरतलब है कि कि अमेरिकन एफडीए ने प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों में डेन्ड्राइटिक सेल वैक्सीन के प्रयोग का अनुमोदन किया है। चूंकि डेन्ड्राइटिक सेल वैक्सीन मरीज के रक्त और टयूमर टिश्यू से बनाई जाती है। इसलिए रक्त और बॉयोप्सी सैम्पल दोनों की उपलब्धता अनिवार्य है। इस वैक्सीन का प्रयोग अन्य ट्यूमरों जैसे मीलेनोमा, ओवेरियन कैंसर एवं रीनल सेल कार्सिनोका (किडनी का कैंसर) में भी किया जाता है।
क्या है एन.के. सेल थेरेपी
नेचुरल किलर(एन.के.) सेल थेरेपी यह थेरेपी फिलहाल अपने देश के कैंसर के मरीजों के लिए खुशहाली के एक पैगाम की तरह है जो सस्ती एवं प्रभावी होने के साथ ही मरीजों को किसी प्रकार के दुष्परिणाम नहीं दे रही है। इसका प्रयोग ब्लड कैंसर के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के कैंसरों में हो रहा है। देश की चुंनिदा प्रयोगशालाओं को इसके निर्माण की अनुमति भी मिल गई है।
एन. के. सेल थेरेपी के फायदे
- आटोलोगस (स्वयं से प्राप्त) होने की वजह से पूर्णतया सुरक्षित थेरेपी है।
- इसे मरीज के रक्त से बनाया जा सकता है
- लगभग सभी प्रकार के प्राइमरी या मेटास्टेटिक ट्यूमर में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
- एन. के. सेल्स सिर्फ कैंसर सेल्स को ही मारती हैं और शरीर के किसी अन्य टिश्यू को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। एन. के. सेल थेरेपी की अधिक मारक क्षमता ब्लड कैंसर जैसे एक्यूट मायलायड ल्यूकीमिया में पाई गई है।
सेलुलर थैरेपी के पिछले अनुभव
बोन कैंसर के वे रोगी जिनको हाथ या पैर कटवाने (एम्पुटेशन) की विभिन्न डॉक्टरों के द्वारा सलाह दी गयी थी, वे पिछले तीन साल से टयूमर सर्जरी के बाद, सेलुलर इम्यूनो थेरेपी लेकर स्वस्थ हैं। ऐसे लोग अपने हाथ और पैरों का भी प्रयोग कर रहे हैं।
कार-टी सेल्स थेरेपी
अमेरिकन एफ डीए द्वारा हाल ही में अनुमति प्राप्त कार- टी सेल्स थेरेपी ने इम्यूनोथेरेपी के इतिहास में मील के पत्थर की तरह कार्य किया है। यह थेरेपी ल्यूकीमिया या ब्लड कैंसर को जड़ से समाप्त करने में सक्षम है। इसे जीन इंजीनियरिंग द्वारा बनाया जाता है। फिलहाल यह थेरेपी देश में उपलब्ध नहीं है। हालांकि आई.आई.टी.मुंबई के बॉयो-इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर राहुल पुरवार के अनुसार उन्होंने इसे तैयार करने की एक सस्ती टेक्नोलॉजी का आविष्कार किया है।
[डॉ. बी.एस.राजपूत /आर्थो-ऑन्को व स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सर्जन
मुंबई]