CDS ने सियाचिन बचाने वाले हीरो कर्नल नरेंद्र 'बुल' के निधन पर जताई संवेदना, कहा- समृद्ध सैन्य इतिहास में दर्ज रहेगा नाम
दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों पर तिरंगा लहराने वाले और सियाचिन बचाने वाले हीरो कर्नल नरेंद्र ‘बुल’ कुमार (87) का गुरुवार को निधन हो गया। उनके निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी ने भी शोक व्यक्त किया। सीडीएस रावत ने आज उनके निधन पर संवेदना जताई।
नई दिल्ली, एएनआइ। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ(सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने सियाचिन बचाने वाले हीरो कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार के निधन पर अपनी संवेदना व्यक्त की है। कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार (Colonel Narendra 'Bull' Kumar) के निधन पर सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि एक सैनिक के दृढ़ संकल्प और ऊंची पर्वत चोटियों को पा लेने की तड़प के कारण सेना को उन स्थानों(सियाचिन) पर कब्जा बनाए रखने में मदद मिली। सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने कहा कि कर्नल नरेंद्र 'बुल' ने हमारी रक्षात्मक मुद्रा को मजबूत करने में मदद की थी।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ(सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने आगे बताया कि साल्टोरो रिज पर और लद्दाख के अन्य क्षेत्रों में हमारी मजबूत उपस्थिति उनकी साहसिक यात्राओं का एक हिस्सा है। जनरल रावत ने कहा कि उनका नाम हमेशा हमारी सेना के समृद्ध इतिहास में दर्ज रहेगा।
बता दें कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों में से एक सियाचिन ग्लेशियर पर भारत की पकड़ बनाए रखने में कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार(Colonel Narendra 'Bull' Kumar) की अहम भूमिका रही है। उनकी रिपोर्ट की वजह से भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा बनाए रखने में मदद मिली थी।
सेना के पूर्व कर्नल नरेंद्र 'बुल' ने ही 1934 में भारतीय सेना के ऑपरेशन मेघदूत शुरू करने से पहले सियाचिन में कई कार्रवाई की और उसी की बदौलत भारत, सियाचिन पर अपना कब्जा बनाए रखने में कामयाब रहा था।
सेना ने उनके निधन की जानकारी देते हुए ट्वीट किया, कर्नल बुल ऐसे सोल्जर माउंटेनियर थे, जो कई पीढ़ियों के प्रेरणास्रोत रहेंगे। आज वह नहीं रहे, लेकिन अपने पीछे साहस, बहादुरी और समर्पण की गाथा छोड़ गए हैं। 1933 में रावलपिंडी में जन्मे कर्नल बुल को 1953 में कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला। उनके तीन और भाई सेना में थे। कर्नल बुल ने 1977 में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने का पाकिस्तानी मंसूबा भांप लिया। उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने सेना को ऑपरेशन मेघदूत चलाने की इजाजत दी। इसके बाद सेना पूरे सियाचिन पर कब्जा बरकरार रखा।