राज्यों में घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों पर क्यों नहीं हो रही कार्रवाई, जानें सीबीआइ की मजबूरियां
सीबीआइ को दी गई जनरल कंसेंट वापस लेने वाले राज्यों में घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों की मौज हो गई है। राज्यों की स्वीकृति के अभाव में सीबीआइ उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। पढ़ें यह रिपोर्ट...
नीलू रंजन, नई दिल्ली। सीबीआइ को दी गई सामान्य स्वीकृति (जनरल कंसेंट) वापस लेने वाले राज्यों में घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों की मौज हो गई है। राज्यों की स्वीकृति के अभाव में सीबीआइ उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। ध्यान देने की बात है कि महाराष्ट्र समेत देश के आठ गैर भाजपा शासन वाले राज्यों ने सीबीआइ को दी गई सामान्य स्वीकृति को वापस ले लिया है। सीबीआइ के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार आठ राज्यों में 50 हजार करोड़ रुपये के बैंक जालसाजी के मामले की जांच सिर्फ सामान्य स्वीकृति के अभाव में शुरू नहीं हो पा रही है।
सामान्य स्वीकृति नहीं मिलने से बंधे हाथ
इन मामलों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने घोटालेबाजों के खिलाफ जांच के लिए बाकायदा सीबीआइ से शिकायत भी की है लेकिन सामान्य स्वीकृति नहीं मिलने के कारण सीबीआइ के हाथ बंधे हुए हैं। इनमें से अकेले महाराष्ट्र में 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले हैं। दरअसल महाराष्ट्र सरकार ने पिछले साल अगस्त में सीबीआइ को दी गई सामान्य स्वीकृति वापस ले ली थी। इसके अलावा बंगाल, छत्तीसगढ़, मिजोरम, केरल, राजस्थान, झारखंड और पंजाब ने सीबीआइ को दी गई सामान्य स्वीकृति वापस ले ली है।
राज्य नहीं दे रहे जवाब
सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सामान्य स्वीकृति नहीं होने के कारण एजेंसी को हर मामले में एफआइआर दर्ज करने के पहले संबंधित राज्य से स्वीकृति लेनी होती है। सामान्य स्वीकृति की स्थिति में इसकी जरूरत नहीं पड़ती थी। बैंकों से धोखाधड़ी की शिकायत मिलने या केंद्र सरकार के किसी अधिकारी के खिलाफ आय से अधिक संपत्तियां या भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने के बाद सीबीआइ एफआइआर दर्ज कर जांच शुरू करने के लिए संबंधित राज्यों से स्वीकृति के लिए पत्र तो लिख रही है लेकिन राज्यों की ओर से इसका कोई जवाब नहीं आ रहा है।
सभी राज्यों में एक जैसे हालात
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अकेले महाराष्ट्र सरकार को पिछले एक साल में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ धोखाधड़ी के मामले में एफआइआर दर्ज करने के लिए 71 पत्र भेजे जा चुके हैं लेकिन इनमें से किसी का भी जवाब नहीं आया। लगभग सभी राज्यों की यही स्थिति है। सीबीआइ इन राज्यों में केवल उन्हीं मामलों में एफआइआर दर्ज कर जांच शुरू कर पा रही है, जिनमें हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है।
स्वीकृति लेने का अनिवार्य प्रविधान
वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सीबीआइ का गठन केंद्रीय जांच एजेंसी के रूप में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून के तहत किया गया था। इस कानून में किसी राज्य में जांच शुरू करने के पहले उसकी स्वीकृति लेने का अनिवार्य प्रविधान बना हुआ है।
वापस लेनी शुरू कर दी है मंजूरी
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में केंद्रीय भूमिका निभाने के कारण सभी राज्यों ने सीबीआइ को सामान्य स्वीकृति दे रखी थी, ताकि भ्रष्टाचार के मामले की जांच में देरी नहीं हो लेकिन भ्रष्टाचार के मामलों में कई वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ शिकंजा कसने पर विपक्ष शासित राज्यों ने सामान्य स्वीकृति वापस लेनी शुरू कर दी। इन राज्यों ने सीबीआइ पर केंद्र सरकार के इशारे पर विपक्षी नेताओं को परेशान करने का आरोप लगाया था। लेकिन पक्ष और विपक्ष की इस राजनीतिक लड़ाई में घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों की बल्ले-बल्ले हो गई है।