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कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, दासौ ने पूरी नहीं की राफेल करार की शर्त, एमबीडीए ने भी भारत को नहीं सौंपी तकनीक

कैग ने युद्धक विमान राफेल पर संसद में अपनी रिपोर्ट रखी है। इसमें कहा गया है कि फ्रांस की विमान निर्माता कंपनी दासौ एविएशन और एमबीडीए ने अभी तक करार के तहत दी जाने वाली तकनीक भारत को नहीं सौंपी है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 06:03 AM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 06:03 AM (IST)
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, दासौ ने पूरी नहीं की राफेल करार की शर्त, एमबीडीए ने भी भारत को नहीं सौंपी तकनीक
युद्धक विमान राफेल पर कैग ने संसद में अपनी रिपोर्ट रखी है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। युद्धक विमान राफेल पर नियंत्रक और लेखा परीक्षक (कैग) ने संसद में अपनी रिपोर्ट रखी है। इसमें 36 राफेल की खरीद पर कहा गया है कि फ्रांस की युद्धक विमान निर्माता कंपनी दासौ एविएशन और यूरोपीय मिसाइल निर्माता एमबीडीए ने अभी तक करार के तहत दी जाने वाली तकनीक भारत को नहीं सौंपी है। दासौ एविएशन ने राफेट जेट बनाए हैं जबकि एमबीडीए विमान के मिसाइलों की आपूर्ति करने वाली कंपनी है।

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भारतीय उद्योग को नहीं सौंपी तकनीक

बुधवार को संसद में पेश रिपोर्ट में भारत की ऑफसेट नीति की क्षमता पर भी सवाल उठाए गए हैं। कैग का कहना है कि उसने अभी तक एक भी मामला ऐसा नहीं देखा है जिसमें विदेशी कंपनी ने भारतीय उद्योग को उच्चस्तरीय तकनीक हस्तांतरित की हो। साथ ही यह भी कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के मामले में रक्षा क्षेत्र का स्थान कुल 63 क्षेत्रों में से 62वां है।

DRDO को 30 फीसद उच्च तकनीक देने की कही थी बात

कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि रक्षा सौदे के तहत दासौ एविएशन और एमबीडीए ने डीआरडीओ को 30 फीसद उच्च तकनीक देने का प्रस्ताव किया था। कैग के मुताबिक हल्के युद्धक विमान एलसीए के इंजन कावेरी के निर्माण में डीआरडीओ तकनीकी सहायता चाहता है। अब तक कंपनी ने तकनीक के ट्रांसफर की पुष्टि नहीं की है।

फ्रांस से हुआ था अंतर-सरकारी सौदा

पांच राफेल विमानों की पहली खेप की आपूर्ति फ्रांस की कंपनी कर चुकी है। 29 जुलाई को मिसाइलों से सुसज्जित यह विमान भारत पहुंच गए थे। करीब चार साल पहले भारत सरकार ने फ्रांस से अंतर-सरकारी सौदा किया था। इसके तहत 59,000 करोड़ रुपये में 36 राफेल युद्धक विमान भारत को सौंपे जाने हैं। भारत की ऑफसेट नीति के तहत विदेशी रक्षा कंपनियों को अनिवार्य रूप से भारत से करार की कुल लागत का तीस फीसद हिस्सा भारत में खर्च करना होता है।

तकनीक का हस्तांतरण की शर्त

इस व्यय के जरिये उत्पाद के पा‌र्ट्स को भारत हासिल करता है या फिर शोध एवं विकास इकाइयों को स्थापित किया जाता है। ऑफसेट मानकों के तहत आयात के जरिये 300 करोड़ रुपये से अधिक की पूजीगत खरीद की जाती है। एफडीआइ के जरिये भी ऑफसेट बाध्यताओं को पूरा किया जा सकता है। इसमें भारतीय कंपनियों को तकनीक का हस्तांतरण और भारतीय कंपनियों के बनाए उत्पादों की खरीद भी इसमें शामिल है।

बाध्यताओं को पूरा करने में विफल

कैग ने कहा कि वर्ष 2005 से लेकर मार्च, 2018 तक विदेशी कंपनियों के साथ कुल 66,427 करोड़ रुपये के कुल 48 ऑफसेट करार हुए हैं। दिसंबर, 2018 तक कंपनी को 19,223 करोड़ के ऑफसेट करार की भरपाई करनी थी। हालांकि अभी तक केवल 11,396 करोड़ का काम हुआ है जो कुल करार का 59 फीसद है। करार के तहत बाकी विमान 55,000 करोड़ रुपये के विमान 2024 तक दिए जाने हैं। ऑडिटर का कहना है कि ऑफसेट करार के तहत निर्माता कंपनियों इन बाध्यताओं को पूरा करने में विफल रही हैं। चूंकि करार का अधिकांश समय निकल चुका है इसलिए इस देरी में निर्माता कंपनी को ही फायदा होता है।

अपग्रेड प्रोग्राम में देरी

एमआइ-17 हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने में हुई देरी पर कैग ने रक्षा मंत्रालय की आलोचना की है। आपूर्ति की समय सीमा में निरंतर देरी के कारण इन हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने में केवल दो साल का समय बचा है। इन हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने का प्रस्ताव वर्ष 2002 में रखा गया था। लेकिन 18 साल बाद भी इन्हें उन्नत नहीं बनाया जा सका है। इसीलिए इन हेलीकॉप्टों के उड़ने की क्षमता बेहद सीमित हो गई है।


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