बीवीआर सुब्रह्मनयम बोले, तय था जम्मू-कश्मीर में चल रहे लूटतंत्र का ध्वस्त होना
सुब्रह्मनयम के अनुसार पिछले 70 सालों में जम्मू-कश्मीर में अविश्वसनीय स्तर पर फ्राड किया गया। चाहे जॉब स्कीम हो या फिर परियोजनाएं हों।
[नीलू रंजन]। जम्मू-कश्मीर में पिछले 70 सालों से लोकतंत्र के नाम पर चल रहे सामंती निजाम का एक दिन बिखरना तय था। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से यह काम जल्दी हो गया। पिछले दो साल से जम्मू-कश्मीर प्रशासन को संभाल रहे मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मनयम ने इसकी तुलना 'पोंजी स्कीम' से की, जिसका उद्देश्य सरकारी धन को कुछ परिवारों के निजी इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराना था। उनके अनुसार यही कारण है कि जब पिछले साल राजनीतिक और अलगाववादी नेताओं को गिरफ्तार किया तो पूरे कश्मीर में किसी को दुख नहीं हुआ।
1987 बैच के तेलंगाना कैडर के आइएएस अधिकारी सुब्रह्मनयम ने कहा कि 'यहां पर पत्थर फेंकने वाले युवक अलगाववादी नहीं थे, उनमें सिस्टम के खिलाफ गुस्सा था। उनका पत्थर सरकार के लिए था।' उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश के अनुसार वे पिछले दो सालों में वे पूरे प्रशासनिक प्रणाली को सुधार पर उन्हें जनता के प्रति जवाबदेह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद इस दिशा में काफी काम हुआ है, लेकिन जनता तक पूरी तरह इसका लाभ पहुंचने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा। उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बनाने के बाद प्रधानमंत्री ने एक बात कही थी कि 'यहां गंदगी को साफ करो, इस इलाके को सुधारे और इनकी अमानत इनको वापस लौटा दो।'
अविश्वसनीय स्तर पर किया गया फ्रॉड
सुब्रह्मनयम के अनुसार पिछले 70 सालों में जम्मू-कश्मीर में 'अविश्वसनीय स्तर पर फ्रॉड किया गया। चाहे जॉब स्कीम हो या फिर परियोजनाएं हों।' उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में स्थानीय खेल को प्रोत्साहित करने की योजना लाई गई। इसमें 2700 शारीरिक शिक्षा के स्नातकों का 3000 रुपये प्रतिमाह के मानदेय पर चयन किया गया। जिला स्तरीय समिति ने इसका चयन किया गया। सात साल बाद उन्हें इसी मानदेय पर इस वायदे के साथ नियमित कर दिया गया कि भविष्य में शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों की सीटें बनने के बाद वे काम करेंगे। यानी भविष्य में पैदा होने 2700 पदों को बैकडोर से पहले ही भर दिया गया।
इसी तरह नेशनल यूथ कोर योजना के तहत 2010 में कॉलेज के 12,500 लड़के-लड़की को दो साल के लिए 2000 रुपये प्रतिमाह के मानदेय पर रखा गया। इस योजना में किसी छात्र को अधिकतम दो साल के लिए मानदेय दिया जा सकता था। लेकिन 2017 में इन्हें नियमित कर दिया गया और 10 साल बाद यानी 2027 में स्थायी नौकरी देने का प्रावधान कर दिया गया।
भ्रष्टाचार के लिए विशेषरूप से किया जाता है तैयार
सुब्रह्मनयन ने कहा कि 80 फीसदी केंद्रीय सहायता से चलने वाले जम्मू-कश्मीर में लूटतंत्र का आलम यह था कि श्रीनगर के रिंग रोड के लिए जमीन अधिग्रहण में जमीन की कीमत दक्षिण मुंबई से भी ज्यादा है। इसी तरह यह देश में एकमात्र ऐसा राज्य है जहां प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत सड़क बनाने के लिए जमीन खरीदने का प्रावधान है। बारामूला में झेलम नदी पर 26 साल पहले बनी परियोजना में अभी तक केवल दो खंबे बनने का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि 'ऐसा नहीं है कि देश के अन्य राज्यों में भ्रष्टाचार नहीं है। लेकिन जम्मू-कश्मीर में योजनाओं को भ्रष्टाचार के लिए विशेष रूप से तैयार किया जाता रहा।' इसका जबरदस्त उदाहरण मनरेगा है, जिसकी निगरानी के लिए 3500 लोगों को नियुक्त किया गया, जबकि किसी भी राज्य ऐसा नहीं किया गया। यहां पूरे सिस्टम ध्वस्त है।'
सुब्रह्मनयम के अनुसार जम्मू-कश्मीर में जेएंडके बैंक पैसे बनाने का सबसे नायाब रास्ता था। 60 फीसदी राज्य की हिस्सेदारी वाले इस बैंक को जानबूझ कर निजी हाथों में रखा गया, ताकि वह जांच के हर दायरे से दूर रहे। जेएंडके बैंक के मार्फत यहां अपने लोगों को लोन दिलाया जाता था, बाद में वह एनपीए बन जाता था। फिर सरकार उस एनपीए की भरपाई करती थी। इस तरह हर साल हजारों करोड़ रुपये गायब कर दिये जाते थे। राज्य के 25 या अधिकतम 30 परिवार सालों-साल इसका फायदा उठाते रहे।