Budget 2020-21: हांफ रही अर्थव्यवस्था का मर्ज समझकर लगाना होगा मरहम, करने होंगे ये उपाय
भारत की अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही है। कुछ दीर्घ और सूक्ष्म स्थितियां इसको और तेज कर रही हैं। इनसे निपटने के लिए सरकार को इस बजट में बड़े फैसले लेने होंगे।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Union Budget 2020-21 गरीबी मिटाने और गरीबों को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने के लिए अर्थव्यवस्था को नौ फीसद की दर से बढ़ाना होगा। ये बात केंद्रीय वित्तमंत्री अच्छी तरह जानती हैं। लेकिन बजट का दिन उनके लिए आसान नहीं होने वाला। विभिन्न सेक्टर के लिए खर्च और आवंटन की सरकार की मंशा बजट से पारिभाषित होती है। हर आर्थिक भागीदार इसे समझता है। भारत की अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही है। कुछ दीर्घ और सूक्ष्म स्थितियां मंदी को और तेज कर रही हैं। ये बातें अतिशयोक्ति लग सकती हैं लेकिन यहां कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
संकेत और शोर
18 दीर्घ संकेतांकों के अध्ययन का निचोड़ यह है कि इनमें से 11 तो पांच साल के औसत में सबसे निचले स्तर पर हैं। उपभोक्ताओं से जुड़े क्षेत्रों के कमजोर संकेत औद्योगिक क्षेत्र को भी प्रभावित कर रहे हैं। आधारभूत संकेतक जैसे मूल्य संकेत (मांग बनाम आपूर्ति) भी गिर रहे हैं। इसी तरह, आर्थिक वृद्धि के चार स्तंभ निजी निवेश, सरकारी व्यय, घरेलू उपभोग और निर्यात की स्थिति भी बदतर होती जा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था उपभोक्ता आधारित है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 60 फीसद का योगदान देती है। लेकिन यह हांफ रही हैं।
रियल स्टेट की स्थिति भी डावांडोल
तीन सौ सहायक उद्योगों को जोड़ने वाले रियल स्टेट की स्थिति भी डावांडोल है। ऑटो सेक्टर उबड़-खाबड़ रास्ते पर है। इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति भी ठीक नहीं है। सरकार इन्कार की मुद्रा में बिल्कुल नहीं हैं। जीएसटी, आइबीसी, डिजिटाइजेशन जैसे सुधारात्मक कदम अच्छे हैं लेकिन इनका फायदा नहीं दिख रहा। वैसे यह आने वाले कल की बात है, और उससे पहले आज है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह इकॉनामिक इकोसिस्टम को उद्यमियों के अनुकूल बनाएं। किसानों को सहायता दें और गरीबों का जीवन स्तर सुधारें।
आशा से समृद्ध होती है अर्थव्यवस्था
अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए समग्र नीतिगत ढांचे और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र जरूरी है जो विनियामक मंजूरी, कड़ी प्रक्रियाएं, समान भूमि अधिग्रहण, शीघ्र कार्यान्वयन, नवाचार को बढ़ावा और परिणामों को बढ़ावा देने में सक्षम बनाए। बोझिल विनियमन, खराब नीति, इंस्पेक्टर राज, जांच और गहन निगरानी से विकास कार्य बाधित होता है। प्रचलित श्रम कानून, जटिल कर संरचना और नौकरशाही के झंझट केवल प्रतिस्पर्धा में बाधक बनते हैं। वित्तमंत्री को चाहिए कि वे युवाओं को आशा दें।
विकास से आएगा रोजगार
रोजगार सृजन की सरकार की क्षमता सीमित है। बड़े उद्योग भी देश की बेरोजगारी की समस्या दूर नहीं कर सके हैं। करोड़ों का निवेश करने वाली कंपनियां भी दस से अधिक नौकरियां नहीं दे सकीं। एमएसएमई सेक्टर की संख्या इसमें 250 है। एमएसएमई सेक्टर के लिए टॉनिक दिए जाने की दरकार है। बढ़ती बेरोजगारी वाली अर्थव्यवस्था में उद्यमशीलता ही नौकरी और आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है। उद्यमशीलता को सींचने और उसे बढ़ावा देने के लिए उद्यमशीलता कोष और संस्थागत नीतियां वित्तमंत्री बना सकती हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था बने मजबूत
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र की पहचान, उन्हें प्रोत्साहित और पोषित करने के साथ एक न्यूनतम लेकिन गारंटीयुक्त आय जरूरी है। निर्माण, आधारभूत संरचना, चमड़ा और हस्तकरघा जैसे सहायक उद्योग रोजगार का सृजन कर सकते हैं। किसानों की आमदनी भी इससे बढ़ेगी। एक ऐसे सक्षम पारिस्थितिक तंत्र की जरूरत है जो उपभोग, आमदनी और समान विकास को सही गति दे। ग्रामीण विकास गरीबी को तीन गुना अधिक गति से कम करता है। वित्त मंत्री को चाहिए कि समग्र, सुधारवादी और किसान केंद्रित नीतियों के निर्माण को बढ़ावा दें। बजट में किसान धन का प्रावधान करें।
वंचित निकलें गरीबी से बाहर
असमानता और गरीबी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। नकद वितरण योजनाओं ने कई मायने में गरीबी घटाई है। यदि सरकार लक्ष्यहीन और बेतरतीबी से लागू सामाजिक व्यय योजनाओं को विघटित कर दे और प्रतिकर योग्य छूट व कॉरपोरेट करों, पूंजीगत लाभ व कर क्रेडिट जैसी रियायतों को छोड़ दे तो यह जीडीपी को छह प्रतिशत मुक्त करेगा। जनसांख्यिकी लाभांश आर्थिक-सामजिक रूप से अविकसित भौगोलिक स्थिति और अशांति राष्ट्र और समाज विरोधी ताकतों के लिए चारे का काम करती है। विकासशील अर्थव्यवस्था में सरकार उद्योग जगत की साझेदार होती है। ऐसे में रोजगार और मौकों का सृजन करने पर दोनों ही क्षेत्रों को ध्यान देने की जरूरत है।
मध्यम वर्ग के हितों पर देना होगा ध्यान
वित्तमंत्री को इससे आगे बढ़ना होगा। उन्हें ऐसा ढांचा तैयार करना होगा जिससे पाई-पाई की निगरानी और उनका हिसाब हो सके। साथ ही एक मजबूत ढांचा जिससे आवंटित पैसे का प्रभाव पड़े। आवंटन और प्रभाव का अंतर स्पष्ट है। कुछ बजट भाषणों पर सरसरी निगाह डालें तो कई गलतियां नजर आती हैं। अधिकांश बजट बड़ी सरकार के पास जाती हैं। परिव्यय से परिणाम तक और निवेश से भुगतान तक पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मध्यम वर्ग के वोट के साथ उनकी जेब का ध्यान रखना जरूरी है। सरकार की निष्क्रियता बेरोजगारी, सामाजिक अशांति बढ़ाएगी।
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