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ये कैसा रिवाज...शादी से पहले ही दुल्‍हन पहुंच जाती है ससुराल

आम तौर पर कोई भी लड़की शादी के बाद मायके से ससुराल विदा होती है, मगर यहां बिल्‍कुल उलट ही रिवाज है। कई ऐसी बातें हैं जिसे जान आप हैरान रह जाएंगे।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Sun, 21 May 2017 09:24 AM (IST)Updated: Sun, 21 May 2017 10:55 AM (IST)
ये कैसा रिवाज...शादी से पहले ही दुल्‍हन पहुंच जाती है ससुराल
ये कैसा रिवाज...शादी से पहले ही दुल्‍हन पहुंच जाती है ससुराल

विकास कुमार, हजारीबाग। शादी से दो दिन पहले दुल्हन की विदाई...बात सुनने में भले ही अटपटी लगे, लेकिन यह हकीकत है। झारखंड के उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल में शादी की यह अनोखी परंपरा काफी वर्षों से चली आ रही है। यहां दूल्हे के परिजन लग्नबंधी (स्थानीय रिवाज) करने दुल्हन के घर जाते हैं और बिन शादी के ही कन्या को विदा करा अपने घर ले आते हैं।

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एक से दो दिनों तक दुल्हन घर की बुजुर्ग महिलाओं के साथ रहती है। फिर दुल्हन के पिता और परिजन बारात लेकर पहुंचते हैं। अपने घर पहुंचे बारात में दूल्हा भी शामिल होता है। यहीं पिता कन्यादान करते हैं। लड़के के घर ही शादी की रस्म पूरी की जाती है। फिर दुल्हन को वहीं छोड़ बारात विदा हो जाती है। प्रमंडल में यह रिवाज दोला नाम से जाना जाता है। हाल के वर्षों में कई हिंदू जातियों में इस परंपरा से शादियां हो रही हैं। इसका प्रचलन भी तेजी से बढ़ा है। खासकर दहेज प्रथा के खिलाफ यह एक बड़ा उदाहरण है।

वर पक्ष ही उठाता है शादी का पूरा खर्च

परंपरा के साथ-साथ ये शादियां सामाजिक संदेश भी देती हैं। अधिकांश शादियां बिना दान-दहेज की ही होती हैं। सबसे बड़ी बात यह होती है कि शादी का पूरा खर्च भी लड़के पक्ष के द्वारा किया जाता है। बारातियों का स्वागत भी वे अपने घरों में सामान्य शादी की तरह ही करते हैं।

दोला परंपरा से हाल में हुई हैं ये शादियां

30 अप्रैल को हरली की लक्ष्मी कुमारी की शादी बड़कागांव के सेवक कुमार से हुई। 28 अप्रैल को ही लग्नबंधी कर लक्ष्मी अपने ससुराल पहुंच गई थी। 30 को धूमधाम से दूल्हे के घर पर ही बारात पहुंची। धूमधाम से शादी संपन्न हुई। उधर, आठ मई को बड़कागांव हरली की खुशबू की शादी बड़कागांव दौहर नगर में हीरामणि कुमार से दोला परंपरा से संपन्न हुई। यहां भी छह मई को खुशबू अपने ससुराल पहुंच गई थी। बड़कागांव के बुजुर्ग मोहन महतो कहते हैं कि काफी लंबे समय से यह परंपरा है। इस परंपरा में शादी का बोझ दुल्हन पक्ष पर काफी कम हो जाता है।

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