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25 से 30 साल की महिलाएं भी हो रहीं स्तन कैंसर का शिकार, जानें- इसके लक्ष्ण और इलाज

Breast Cancer Symptoms कुछ सुझावों पर अमल कर महिलाएं जहां ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर से बच सकती हैं वहीं इसका समय रहते अब कारगर इलाज भी संभव है...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 14 Nov 2019 04:11 PM (IST)Updated: Fri, 15 Nov 2019 08:43 AM (IST)
25 से 30 साल की महिलाएं भी हो रहीं स्तन कैंसर का शिकार, जानें- इसके लक्ष्ण और इलाज
25 से 30 साल की महिलाएं भी हो रहीं स्तन कैंसर का शिकार, जानें- इसके लक्ष्ण और इलाज

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Breast Cancer Symptoms: बदलती जीवन-शैली ने स्तन कैंसर का खतरा और बढ़ा दिया है। आम तौर पर स्तन कैंसर 45 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को होता था, लेकिन अस्वास्थ्यकर जीवन-शैली के चलते आज यह उम्र घटकर लगभग 25 से 30 साल तक हो गई है।

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क्या हैं कारण

देर से मां बनना, बच्चे को कम समय तक दूध पिलाना और माहवारी का कम उम्र में ही शुरू होना स्तन कैंसर के कुछ प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा रजोनिवृत्ति (मैनोपॉज) देर से होना, मोटापा और हार्मोन से संबंधित दवाएं भी स्तन कैंसर का कारण बन सकती हैं।

लक्षणों को जानें

  • स्तन में सूजन, लालिमा आना।
  • ब्रेस्ट में गांठ होना और समय के साथ इसका आकार बढ़ना।
  • स्तन की त्वचा पर कोई फोड़ा या अल्सर जो ठीक न होता हो।
  • ब्रेस्ट या स्तन के अग्रभाग के आकार में असामान्य बदलाव होना।
  • स्तन के अग्रभाग का भीतर की तरफ खिंचना, उसका लाल पड़ना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी तरल पदार्थ निकलना।

प्रारंभिक जांच

20 साल की उम्र से हर महिला को हर महीने माहवारी शुरू होने के 5 से 7 दिनों के बीच किसी दिन खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। शीशे के सामने खड़े होकर अपने हाथों को धीरे-धीरे स्तनों पर ऊपर से नीचे की तरफ लाएं। कोई गांठ होगी तो महिलाओं को इसका अहसास होगा। 20 से 39 वर्ष की आयु की महिलाएं विशेषज्ञ से परीक्षण प्रत्येक तीन वर्ष में और 40 वर्ष की आयु के बाद हर वर्ष कराएं। डॉक्टर के परामर्श पर 40 वर्ष की आयु के बाद मैमोग्राफी (डिजिटल/ अल्ट्रासोनिक मैमोग्राफी अवश्य कराएं।

ये हैं परीक्षण : बॉयोप्सी करने के बाद अल्ट्रासाउंड, सी.टी स्कैन,बोन स्कैन, पेट (पीईटी) स्कैन द्वारा कैंसर के फैलाव का पता करते हैं।

इलाज के बारे में : कैंसर का इलाज इस मर्ज की अवस्था के अनुसार सर्जरी, रेडिएशन थेरेपी, कीमोथेरेपी, हार्मोनल थेरेपी और टार्गेटेड थेरेपी से मिलाजुलाकर किया जाता है।

हार्मोनल थेरेपी: कैंसर कोशिकाओं पर कुछ रिसेप्टर्स होते हैं। जैसे ‘ई आर’ और ‘पी आर’, जिसकी जांच बॉयोप्सी के दौरान कर लेनी चाहिए। हार्मोनल थेरेपी इन्हीं रिसेप्टर्स (जिनके कारण कैंसर फैलता है) के विरुद्ध काम करती है।

टार्गेटेड थेरेपी: टार्गेटेड थेरेपी का कीमोथेरेपी की तरह साइड इफेक्ट नहीं होता। यह थेरेपी सिर्फ कैंसर ग्रस्त भाग के समीप वाली स्वस्थ कोशिकाओं या टिश्यूज पर खराब प्रभाव नहीं डालती है।

डॉ.अंकिता पटेल

रेडिएशन ऑनकोलॉजिस्ट


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