ना सरकार, ना सीएम, दो नदियों की साजिश और डूब जाएगा 'माजूली'
असम में आज देश के सबसे बड़े पुल का उद्घाटन पीएम मोदी ने किया है। लेकिन इसी राज्य के सीएम के चुनावी क्षेत्र में आने वाला माजुली टापू जल्द ही नदी में समा जाएगा।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। प्रधानमंत्री ने आज असम में देश के सबसे बड़े पुल ढोला-सदिया का उद्घाटन कर यहां के लोगों की वर्षों पुरानी समस्या को हल कर दिया है। यह पुल साढ़े नौ किमी लंबा है जिसका अपना सामरिक महत्व भी है। इस पुल के ऊपर से 70 टन से अधिक वजन का टैंक भी गुजर सकता है। यही वजह है कि इसकी बेहद खास अहमियत है। इस पुल का एक छोर अरुणाचल प्रदेश के ढोला में मिलता है तो एक असम के सदिया में है। इसलिए ही इसका नाम ढोला-सदिया है। लेकिन इस पुल को सरकार ने भूपेन हजारिका का नाम दिया है, जो राज्य के ही नहीं बल्कि देश के भी बड़े गायकों में से एक थे। उनका जिक्र यहां पर करना इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि वर्षों पहले हजारिका ने असम के ही एक टापू को 'माहबाहू' का नाम दिया था। लेकिन उनका यही माहबाहू अब मौत के कगार पर पहुंच चुका है।
माहबाहू या माजुली
दरअसल, हजारिका ने जिस टापू को माहबाहू का नाम दिया था उसका असली नाम माजुली है। दो नदियों के बीच स्थित यह दुनिया का सबसे बड़ा टापू है। लेकिन इसकी उम्र अब महज 15 से बीस वर्ष के बीच ही रह गई है। कुछ वर्षों के बाद माजुली टापू इतिहास का हिस्सा होकर रह जाएगा और मुमकिन है कि सिर्फ यह किताबों में ही सिमट कर रह जाएगा। माजुली टापू का महत्व इसलिए भी बेहद खास हो जाता है क्योंकि असम के मुख्यमंत्री सरबानंद सोनोवाल का यही विधानसभा क्षेत्र भी है। इतना ही नहीं इस टापू पर जो जातियां रहती हैं उनमें राज्य के सीएम की जाति सोनोवाल के साथ-साथ देवरी जाति भी यहां रहती है।
जल्द ही इतिहास बन जाएगा 'माजुली'
माजुली टापू का वजूद तो 19वीं सदी से ही है, लेकिन कुछ वर्षों से यह लगातार छोटा होता जा रहा है। इसकी वजह ब्रह्मपुत्र नदी है। दरअसल, माजुली टापू ब्रह्मपुत्र और सुबनसिरी नदी के बीच में मौजूद है। सुबनसिरी जहां इस टापू के उत्तर में बहती है वहीं ब्रह्मपुत्र नदी इसके दक्षिण में बहती है। कभी यह टापू 1250 वर्ग किमी तक फैला था, लेकिन अब यह सिकुडकर महज 530 वर्ग किमी रह गया है। ब्रह्मपुत्र नदी हर वर्ष इस टापू के आठ वर्ग किमी हिस्से को अपने में समा लेती है। यदि इस टापू के कटाव की रफ्तार यही रहती है तो आने वाले 15 से 20 वर्षों में यह टापू पूरी तरह से नदी में समा जाएगा और इतिहास का हिस्सा बन जाएगा।
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लगातार हो रहा है पलायन
माजुली पर लगातार हो रहे कटाव की वजह से यहां के कई लोग दूसरी जगह मजबूरी में पलायन भी कर चुके हैं। मौजूदा समय में यहां की आबादी महज ड़ेढ लाख तक सिमट कर रही गई है। लगातार हो रहे कटाव को लेकर यहां के लोग काफी चिंतित हैं। ऐसा नहीं है कि सरकारों ने इस टापू को बचाने के लिए कभी कुछ नहीं किया है। हर सरकार ने इसको बचाने की कोशिश जरूर की है लेकिन यह विफल होती दिखाई दे रही है। मौजूदा सरकार ने भी इस टापू को बचाने के लिए ब्रह्मपुत्र बार्ड 243 करोड़ रुपये की मदद दी है। यूं तो माजुली को राज्य के अन्य स्थानों से जोड़ने का एकमात्र साधन नाव ही है लेकिन अब सरकार कोरियाई कंपनी के सहयोग से एक पुल का निर्माण करवाने पर भी विचार कर रही है। फिलहाल सरकार ने इस टापू के कटाव को रोकने के लिए इसके चारों तरफ कंकरीट की ढाल बनाई है।
260 प्रजातियों के पक्षियों का डेरा है 'माजुली'
इस टापू की एक यही खासियत नहीं है बल्कि यहां पर पाए जाने वाले पक्षी भी इस टापू की अहम खासियत हैं। यहां पर करीब 260 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं जिनमें से कई प्रवासी भी हैं। यह टापू प्रकृति की इंसान को एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। इस टापू का एतिहासिक महत्व होने के साथ ही धार्मिक महत्व भी है। यह टापू भारतीय इतिहास और संस्कृति का केंद्र है। इस टापू पर 15 वी सदी के आध्यात्मिक संत शंकरदेव ने दक्षिण पथ के नव वैष्णों पंथ के प्रचार-प्रसार के लिए 22 सत्रों की स्थापना की थी, जो यहां पर आज भी मौजूद हैं। इन सत्रों को असम पर राज करने वाले लगभग हर राजा ने ही सरंक्षण दिया।
'माजुली' पर कई दुर्लभ वस्तुएं संग्रहित
माजुली पर मौजूद 500 वर्ष पूर्व के बर्तन और कपड़े आज भी यहां पर देखे जा सकते हैं। इसके अलावा इन सत्रों को जो राजघरानों से उपहार मिले थे वह भी यहां पर संग्रहित हैं। इसके अलावा करीब 500 वर्ष पुरानी मूर्तियां और शंख इत्यादि भी यहां पर सही सलामत अवस्था में मौजूद हैं। इस टापू पर मौजूद इन सत्रों की एक खासियत यह भी है कि यहां के एक सत्र के एक कमरे में करीब 364 वर्षों से एक दीया लगातार जल रहा है, जो अपने आप में आश्चर्य है। इन सत्रों में धार्मिक शिक्षा के अलावा किसी न किसी कला को भी सिखाया जाता है।
असम में बना देश का सबसे लंबा पुल Video Embedded Code –
वर्ल्ड हैरिटेज साइट घोषित करने की कवायद
माजुली का यह टापू जोराहट में आता है, लेकिन इसके बाद भी सरकार ने इस टापू को स्वतंत्र जिला घोषित किया है। सरकार की कोशिश इस टापू को वर्ल्ड हैरिटेज साइट घोषित कराने की है। इसके लिए सरकार प्रयास भी कर रही है। यहां पर स्थित समागुडी सेक्टर तरह-तरह के मुखौटों के लिए जाना जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 1663 में हुई थी, तब से लेकर आज तक यह बादस्तूर जारी है। यहां पर हर वर्ष नवंबर में होने वाली रासलीला को देखने के लिए राज्य के ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से भी पर्यटक यहां आते हैं।