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Book Review: राम अवतार कथनम : द रामायण आफ श्री गुरु गोविंद सिंह जी

यह रामकथा कई विशिष्टताओं से भरी है गुरु गोविंद सिंह जी इसी भारतीयता को इस तरह रूपायित करते हैं- सीता बाच मन मैं/ जउ मन बच करमन सहित/ राम बिना नहीं अउर/ तउ ए राम सहित जिए/ कह्यो सिया तिह ठउर।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 23 Aug 2021 11:17 AM (IST)Updated: Mon, 23 Aug 2021 11:21 AM (IST)
Book Review: राम अवतार कथनम : द रामायण आफ श्री गुरु गोविंद सिंह जी
Book Review: गुरु गोविंद सिंह की रामकथा: राम अवतार कथनम

यतीन्द्र मिश्र। हमारे सुधी पाठकों को यह मालूम है कि 15 अगस्त, 2021 से यह स्तंभ पिछली एक सदी की उन कृतियों पर एकाग्र किया जा रहा है, जिसने भारतीयता को पारिभाषित करने और युवाओं को प्रेरणा देने में भूमिका निभाई। इसी क्रम में हम दूसरी किताब सिखों के दसवें गुरु श्रद्धेय गुरु गोविंद सिंह जी की लिखी रामायण पर एकाग्र कर रहे हैं, जिसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने इसी वर्ष प्रकाशित किया है।

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गुरु गोविंद सिंह कृत ‘राम अवतार कथनम’ को उन्होंने 60 शीर्षकों के अंतर्गत रचा है, जिसकी छठवीं पदावली में वे इसे ‘बीन कथा’ कहते हैं- तिह ते कहि थोरिए बीन कथा/ बलि त्वै उपजी बुध मद्धि जथा। आशय यह कि भावना के प्रवाह में राम-कथा के चुनिंदा प्रसंगों पर अपनी बुद्धि के अनुसार सचेतन ढंग से लिखी गई रामायण है, जिसे पारंपरिक छंदों में विन्यस्त किया गया है। तीनों भाषाओं में एक साथ प्रस्तुति के कारण किताब काफी भारी-भरकम है, जिसकी शुरुआत के लगभग 68 पृष्ठों में बहुरंगे संयोजन द्वारा मनोहारी मिनियेचर चित्रों, कलात्मक रेखांकनों और तस्वीरों से सजाया गया है। इसके प्रकाशन में संपादकों डा. वनिता और डा. रवैल सिंह की कलात्मक अभिरुचियां परिपक्व ढंग से देखी जा सकती हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसे ऐतिहासिक मानक ग्रंथ को कुशलता से संपादित करते हुए प्रूफ की अशुद्धियों से लगभग दूर रखा गया है।

‘राम अवतार कथनम’ में 864 पदों में गुरु गोविंद सिंह जी 71 प्रकार के छंदों का प्रयोग करते हैं। बलजीत कौर ने इस रामकथा का पंजाबी में काव्य-भाष्य किया है। इसकी संपादक डा. वनिता ने यह भी लक्ष्य किया है कि इसमें कहीं-कहीं मिश्रित भोजपुरी का प्रयोग किया गया है। यह ग्रंथ रामकथा से संबंधित होने के बावजूद एक स्वतंत्र काव्य की तरह देखा जा सकता है, जिसका एक सिरा गुरुग्रंथ साहिब की बानियों से भी जुड़ता है। सनातन धर्म की मान्यता और उसमें से निकला सिख संप्रदाय, दरअसल एक ही पंथ के अंतर्गत आते हैं। उनमें किसी प्रकार का विरोधाभास नहीं दिखता, बल्कि समाज और मानवीय चेतना के पुनर्निर्माणके लिए उनमें ढेरों रागात्मक सूत्र पाए जा सकते हैं। यह ग्रंथ भी, राम के चरित्र के बहाने रामायण का ही सिख गुरु की दृष्टि से विस्तार है। यह भी लक्ष्य किया जा सकता है कि उन्होंने अपने समकालीन समाज में उस दौर की सत्ता के विरुद्ध एक लंबी संघर्ष यात्र शुरू की थी, जिसमें राम-चरित्र, उस परिवर्तन का एक मुख्य प्रयोजन बन जाता है।

पंजाब के लोकगीतों में यह बात कई तरह से आती है, जिसमें एक गीत का उदाहरण देना शायद प्रासंगिक जान पड़े- राम जेठा जती न कोई/ लक्ष्मण जेठा न भ्राता। गुरु गोबिंद सिंह जी राम के मिथक को ही रूपांतरित नहीं करते, बल्कि उनके लीला-अवतार को, पदावली लिखते हुए काव्य रूप में अभिव्यक्त करते हैं। इसके पीछे उनका आशय, राम के नायकत्व को दानवों के विरुद्ध निरंतर लड़ते हुए युगपुरुष के रूप में स्थापित करने में है। इस पूरे प्रकरण में उन्होंने अपनी भाषाई चेतना, परम पुरुष के संकल्प और मिथक रूपांतरण के साथ कई स्तरों पर इस महागाथा को देखने की कोशिश की है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इसके सृजन में उन्होंने जनमानस को केंद्र में रखा है, जिसमें लोक विश्वास, रुचियों और लोकमानस की प्रतिष्ठा सवरेपरि है। वे इसी आशय से कहते भी हैं- अथ मैं कहो राम अवतारा/ जैस जगत मो करा पसारा।

यह रामकथा कई विशिष्टताओं से भरी है, जिसमें काव्य के अनेक गुणों को समाहित करते हुए उसका संगीत पक्ष प्रबल रहा है। वैसे भी, सिख गुरुओं की बानियों में संगीत तत्व का समावेश अद्भुत ढंग से मौजूद रहता है, जिसे सबद-कीर्तन के दौरान रागियों द्वारा गाया जाना परंपरा और इतिहास का मामला है। ‘राम अवतार कथनम’ भी ऐसी युक्तियों से अलंकृत है, जिसमें सादृश्य, रूपक, ¨बब, अलंकार, छंद, लय-ताल और अर्थो की शास्त्रीय विलक्षणता अलग से रेखांकित होती है। रसों में भी, अधिकतर रसों के द्वारा इसका प्रणयन किया गया है। करुण और वीर रस यहां मुखर ढंग से उभरते हैं, जबकि कुछ पदावलियां श्रृंगार रस में भी पगी हुई हैं। इस रामायण के मूल पाठ के साथ किया गया गुरुमुखी और अंग्रेजी का अर्थ इस ग्रंथ को और भी प्रामाणिक बनाता है। रामकथा ने हमेशा हर सदी में अपनी छाप छोड़ी और सोलहवीं शताब्दी में तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ आने के बाद, तो जैसे ये चरित-काव्य हर एक के संघर्ष और नैतिक आवाज की प्रतिनिधि पुस्तक बन गई, धर्मग्रंथ जैसी प्रतिष्ठा हासिल करते हुए, स्वाधीनता के अमृत-महोत्सव वर्ष में इसका प्रकाशन सार्थक और उद्देश्यपरक है। इस कारण भी कि हम अपनी पुरानी परंपरा के आदि ग्रंथों और विभिन्न मतों, संप्रदायों द्वारा रची जाने वाली रामकथा को पढ़ते हुए समन्वय की एक समग्र भारतीय दृष्टि विकसित कर सकें। गुरु गोविंद सिंह जी इसी भारतीयता को इस तरह रूपायित करते हैं- सीता बाच मन मैं/ जउ मन बच करमन सहित/ राम बिना नहीं अउर/ तउ ए राम सहित जिए/ कह्यो सिया तिह ठउर।

एक ही जिल्द में यह रामायण गुरुमुखी लिपि के अलावा उसके अंग्रेजी और हिंदी अनुवादों के साथ है ताकि कोई पाठक अपनी भाषा को चुनते हुए इसका रसास्वादन कर सके।

पुस्तक : राम अवतार कथनम : द रामायण आफ श्री गुरु गोविंद सिंह जी

लेखिका : बलजीत कौर तुलसी

संपादक : डा. वनीता, डा. रवैल सिंह

प्रकाशक : इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली

मूल्य : 1750 रुपये


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