Book Review: प्रॉडिगल- आतंकवाद और पाकिस्तान के रिश्तों की पोल खोलती है यह किताब
यह उपन्यास पाक और आतंकवाद के संबंधों की पोल खोलता है और संकेत देता है कि पाक जब तक आतंक का पोषण बंद नहीं करेगा अंतरराष्ट्रीय जगत में उसे स्थान हासिल नहीं हो पाएगा।
ब्रजबिहारी। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाए जाने पर बौखलाया पाकिस्तान पुलवामा जैसे हमलों की गीदड़भभकी दे रहा है, ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर क्या बात है, जिससे हमारा यह पड़ोसी देश आतंकवाद को खाद-पानी देने वाला दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है। प्रतिष्ठित लेखक इरशाद अब्दुल कादिर के अंग्रेजी उपन्यास 'प्रॉडिगल' में इसका गहराई से विश्लेषण किया गया है। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद पाठक को खुद-ब-खुद पाकिस्तान की इस बदनसीबी का उत्तर मिल जाएगा और यह भी समझ आ जाएगा कि वह कौन-सा रास्ता है, जिस पर चलकर यह अभागा देश अपने दामन पर लगे दागों को धो सकता है।
पेशे से वकील रहे लेखक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी मशहूर रहे हैं। राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर बेबाक लिखने वाले इस विद्वान ने उपन्यास में इस्लाम को लेकर पूरी दुनिया में चल रही जद्दोजहद के बीच कई आध्यात्मिक और धार्मिक सवालों पर वाद-विवाद का काफी विस्तार से वर्णन है, जो कुछ पाठकों को उबाऊ लग सकता है, लेकिन इस्लामिक दुनिया को समझने के लिए यह जानना जरूरी है। इससे पहले 'क्लिफ्टन ब्रिज' और 'देरियाबाद क्रोनिकल्स' नामक दो पुस्तक लिख चुके अब्दुल कादिर ने पहली बार आध्यात्मिक इस्लाम पर कलम चलाई है।
इस उपन्यास का नायक है अकबर। सिंध हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जावेद अली और इंग्लैंड के पादरी रेवरेंड आर्मस्ट्रांग की बेटी लिलियन आर्मस्ट्रांग की संतान अकबर को वह हर सुविधा उपलब्ध है, जिसके लिए आम पाकिस्तानी पूरी जिंदगी जद्दोजहद में गुजार देता है। यूरोप के एक प्रतिष्ठित स्कूल से शिक्षा प्राप्त अकबर जब पाकिस्तान लौटता है तो खुद को एक अजीब-सी कशमकश में पाता है, क्योंकि उसके चाचा अहमद अली उसे पश्चिमी शिक्षा छोड़कर अल्लाह की राह पर धकेलना चाहते हैं। आखिर में वह अपने कट्टरपंथी चाचा के प्रभाव में अल्लाह के रास्ते को चुनता है और खैबर पख्तूनख्वा के एक मदरसे में दाखिला लेता है। लेकिन जब उपन्यास का अंत होता है तो हम पाते हैं कि अकबर गलत रास्ते पर चलते हुए खुद को एक ऐसे मुकाम पर पाता है, जहां उसे कट्टरपंथी इस्लाम की हकीकत का एहसास होता है और वह मानवता को बचाने के काम में जुट जाता है।
इस्लाम का असली अर्थ जानने के बाद उपन्यास का नायक न सिर्फ आतंकवादियों की खतरनाक चालों का खुलासा करता है, बल्कि उस अस्पताल में भर्ती लोगों की जान भी बचाता है, जिसे आतंकियों ने टारगेट बनाया था। यह उपन्यास अपने नायक अकबर के जीवन में आए इस बदलाव को रेखांकित करता हुआ चलता है और अंत में ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचता है, जो एक सर्वमान्य हल की ओर इशारा करता है।
उपन्यास में पाक के लिए एक स्पष्ट संदेश छुपा हुआ है कि जब तक वह आतंक का रास्ता नहीं छोड़ेगा, तब तक वह न तो अपनी घरेलू समस्याओं का समाधान कर पाएगा और न ही अंतरराष्ट्रीय जगत में उसे स्थान हासिल होगा।
लेखक का तर्क है कि जिस कुरआन और हदीस का हवाला देकर पाकिस्तान के मुल्ला और मौलवी युवाओं को आतंकवाद और बर्बादी के रास्ते पर धकेल रहे हैं, उसकी सही समझ हासिल करना बहुत मुश्किल है। इसके लिए आपको फारसी, अरबी और तुर्की भाषा का ज्ञान होना चाहिए। इसके अभाव में कट्टरपंथी जो समझाते हैं, जनता उसे सही मान लेती है। ऐसे लोगों को जिहाद के नाम पर कभी अफगानिस्तान में घुसे रूसियों के खिलाफ तो कभी कश्मीर में भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता रहा है। पाक का यह स्टेट टेररिज्म उसके लिए भस्मासुर साबित हो रहा है, फिर भी उसकी अक्ल ठिकाने नहीं आ रही।
इस उपन्यास में अब्दुल कादिर ने कट्टरपंथी इस्लाम की बखिया उधेड़कर रख दी है। यह उपन्यास पाकिस्तान के उन उन्मादी नेताओं को जरूर पढ़ना चाहिए, जो भारत की बर्बादी की तराने गाते रहते हैं। इसे पढ़ने के बाद शायद उन्हें यह बखूबी एहसास हो जाएगा कि इस तरह से वह भारत की नहीं, बल्कि खुद अपनी बर्बादी के रास्ते पर बढ़ रहे हैं।
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