Book Review: महात्मा गांधी को लेकर लेखक रामचंद्र गुहा ने नई छवि गढ़ने का किया प्रयास
महात्मा गांधी की जीवनी के बहाने रामचंद्र गुहा ने उनकी एक ऐसी छवि गढ़ने का प्रयास किया है ताकि उसे दक्षिणपंथ के विरुद्ध एक कारगर औजार बनाया जा सके लेकिन इस प्रयास में वह बुरी तरह से विफल साबित हुए हैं।
ब्रज बिहारी। महात्मा गांधी की जीवनी लिखना आसान नहीं है। वे अपने जीवनकाल में पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा के स्रोत थे और मृत्यु के बाद विश्व पटल पर उनकी उपस्थिति पहले से कहीं ज्यादा विराट ही हुई है। दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में उन पर शोध किया जा रहा है। उन पर पाठ्यक्रम बनाए गए हैं और आज भी वह शोषितों और वंचितों के अधिकारों के लिए आंदोलनरत लोगों को रौशनी दिखा रहे हैं। पिछले 100 वर्षो में उनकी सैकड़ों जीवनियां आ चुकी हैं। ऐसे में यह स्वाभाविक प्रश्न है कि अब गांधीजी की जीवनी में लिखने को बचा क्या है? इसके बावजूद लेखक रामचंद्र गुहा ने उनकी जीवनी लिखी है।
दरअसल, गांधीजी जैसे ऐतिहासिक चरित्रों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे हर देश, काल और परिस्थिति में प्रासंगिक बने रहते हैं। यही वजह है कि ब्रिटेन में विंस्टन चर्चिल पर और फ्रांस में डी गाल पर हर पीढ़ी के रचनाकारों ने कलम चलाई। उन्हें अपने समयानुसार ढालने की कोशिश की या उनके जरिये वर्तमान की जटिल स्थितियों को समझने व उनसे बाहर निकलने का रास्ता तलाशने का प्रयास किया।
पुस्तक में गांधीजी के जीवन का विशद वर्णन
लेखक ने इस जीवनी को लिखने के लिए 100 खंडों वाले गांधी समग्र और उनके जीवन एवं कर्म पर पहले उपलब्ध विपुल सामग्री के अलावा 1942-48 के बीच उनके सचिव रहे प्यारेलाल के निजी संकलन से हाल ही में सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों का भी गहरा अध्ययन किया है। इस पुस्तक में गांधीजी के जीवन का विशद वर्णन किया गया है। लेकिन लेखक ने घटनाओं के वर्णन में भेदभाव किया है। अपनी पसंद की घटनाओं का उन्होंने विस्तृत ब्योरा दिया है, जबकि कई जगह पर वे बहुत जल्दबाजी में दिखते हैं। ऐसा लगता है कि इस पुस्तक की रचना किसी खास उद्देश्य के लिए की गई है।
लेखक की मानें तो मोदी सरकार से पहले देश का लोकतंत्र था सबसे सर्वश्रेष्ठ
केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को लेकर लेखक के विचार किसी से छिपे हुए नहीं हैं। लेखक की नजर में 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले इस देश का लोकतंत्र दुनिया में सर्वश्रेष्ठ था। यहां धर्मो और जातियों में गजब की समरसता थी। देश के लोग असहिष्णुता जैसे किसी शब्द से परिचित नहीं थे, लेकिन पिछले सात साल में देश का बेड़ा गर्क हो गया है। लोकतंत्र खतरे में है। संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट किया जा रहा है। प्रतिशोध की राजनीति हो रही है। अल्पसंख्यकों का बुरा हाल है और ऐसे अराजक माहौल से हमें कोई बचा सकता है तो वह गांधी हैं। इसमें कोई दोराय नहीं है कि गांधीजी आने वाले युगों में भी हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे, लेकिन इससे उनकी पहचान नहीं बदलेगी। वे 20वीं सदी के उत्तरार्ध में समाज व राजनीति में व्याप्त सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि समय के साथ उनके अंदर कई बदलाव आए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे अपनी कमियों से मुक्त हो चुके थे।
रामचंद्र गुहा की इस जीवनी में भी ऐसे ब्योरे शामिल हैं जिनसे पता चलता है कि गांधी से मिलने वाली कई शख्सियतों को उनमें कुछ भी असाधारण नहीं दिखा। उनसे मुलाकात करने वाली कई जानीमानी हस्तियों की नजर में वे बहुत जिद्दी थे। नोबेल पुरस्कार विजेता विज्ञानी सीवी रमन ने उनसे मिलने के बाद कहा था कि वे दोनों ही बहुत अभिमानी हैं। गुहा ने गांधी की जीवनी को कई मामलों में उनकी कट्टर सोच और अनुदार विचार को काट-छांटकर पेश किया है, ताकि नई पीढ़ी के सामने उनकी एक उदार छवि प्रस्तुत की जा सके और गांधी को दक्षिणपंथ से लड़ने का औजार बनाया जा सके। इस कोशिश में वे बुरी तरह विफल रहे हैं। बेहतर होता कि वे अपने राजनीतिक दोस्तों को गांधी के सत्य और अहिंसा से कुछ सीखने के लिए प्रेरित करते।
पुस्तक : गांधी
लेखक : रामचंद्र गुहा
प्रकाशक : पेंगुइन बुक्स
मूल्य : 499 रुपये