Book Review: आइडिया से परदे तक : कैसे सोचता है फिल्म लेखक, फिल्म लेखन का प्रशिक्षण
हर लेखक की यह इच्छा होती है कि वह ऐसी फिल्म लिखे जिस पर उसे गर्व हो। लेकिन फिल्म लेखन जैसी तकनीकी और सुनियोजित क्राफ्ट वाली भाषा और लेखन शैली में दक्षता प्राप्त करने के लिए आपको प्रशिक्षण की आवश्यकता भी होगी।
कन्हैया झा। सिनेमा एक ऐसा माध्यम है, जिसका आकर्षण बहुत लोगों में होता है। आप अपने आसपास देखेंगे तो कई लोग आपको यह कहते हुए मिलेंगे कि उनके पास एक कहानी है, जिस पर बहुत बढिय़ा फिल्म बन सकती है। दरअसल हर लेखक की यह इच्छा होती है कि वह ऐसी फिल्म लिखे, जिस पर उसे गर्व हो। लेकिन फिल्म लेखन जैसी तकनीकी और सुनियोजित क्राफ्ट वाली भाषा और लेखन शैली में दक्षता प्राप्त करने के लिए आपको प्रशिक्षण की आवश्यकता भी होगी। ऐसे में इस पुस्तक के लेखकद्वय रामकुमार सिंह और सत्यांशु सिंह ने प्रयास किया है कि लेखकों को हिंदी फिल्म लेखन के बेहतर गुर सिखाए जा सकें।
यह किताब सिनेमा के एक सहयोगी पेशेवर के रूप में फिल्म-लेखक के कामकाज का चरणबद्ध तरीके से किया गया विवरण प्रस्तुत करती है। फिल्म का अपना एक तौर-तरीका होता है, जिसके दायरे में रहकर ही फिल्म-लेखक को काम करना पड़ता है। इसलिए एक हद तक अपनी स्वायत्त भूमिका रखने के बावजूद उसे अपना काम करते हुए निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, कैमरा-निर्देेशक आदि अनेक सहयोगी पेशेवरों के साथ संगति का ध्यान रखना पड़ता है।
फिल्म लेखन जिस हद तक एक कला है, उसी हद तक शिल्प और तकनीक भी है। एक सफल फिल्म लेखक बनने के लिए जितनी जरूरत प्रतिभा की होती है, उतनी ही जरूरत परिश्रम, कौशल, अनुशासन और समन्वय की भी होती है। फिल्म लेखन के विविध आयामों मसलन आइडिया, शोध, किरदार, कहानी, थीम, दृश्य, संवाद, पहला प्रारूप, पुनर्लेखन आदि तथ्यों पर इसमें विस्तार से चर्चा है।
आज देश-दुनिया में फिल्म निर्माण का दायरा विस्तृत होता जा रहा है। एक लोकप्रिय कला के तौर पर सिनेमा आज एक महत्वपूर्ण उद्योग के रूप में विकसित हो चुका है। देशभर के लाखों युवा अपना करियर बनाने के उद्देश्य से फिल्म निर्माण से जुड़ते हैं। ऐसे में फिल्म-लेखन की दिशा में आगे बढऩे वालों के लिए यह किताब उपयोगी साबित हो सकती है।
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पुस्तक : आइडिया से परदे तक : कैसे सोचता है फिल्म लेखक
लेखक : रामकुमार सिंह और सत्यांशु सिंह
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 199 रुपये