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भाजपा-जदयू का रिश्ता टूटना अब तय

नई दिल्ली [प्रशांत मिश्र]। भारतीय जनता पार्टी और जनता दल [यू] का 17 साल पुराना रिश्ता टूटना लगभग तय हो गया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने परोक्ष रूप से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर आक्रामक तेवर अपनाए तो भाजपा ने भी जदयू को बता दिया कि नरेंद्र मोदी के नाम पर कोई समझौता मंजूर नहीं। नीतीश ने मोदी से सीधी भिडं़त करते हुए उनके मॉडल और उनकी पीएम उम्मीदवारी को खारिज किया तो भाजपा ने इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताते हुए यह याद दिलाने में देर नहीं लगाई कि भाजपा मुख्यमंत्री पर ि

By Edited By: Published: Sun, 14 Apr 2013 07:51 AM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2013 09:32 AM (IST)

नई दिल्ली [प्रशांत मिश्र]। भारतीय जनता पार्टी और जनता दल [यू] का 17 साल पुराना रिश्ता टूटना लगभग तय हो गया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने परोक्ष रूप से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर आक्रामक तेवर अपनाए तो भाजपा ने भी जदयू को बता दिया कि नरेंद्र मोदी के नाम पर कोई समझौता मंजूर नहीं। नीतीश ने मोदी से सीधी भिडं़त करते हुए उनके मॉडल और उनकी पीएम उम्मीदवारी को खारिज किया तो भाजपा ने इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताते हुए यह याद दिलाने में देर नहीं लगाई कि भाजपा मुख्यमंत्री पर निशाना साधने की बजाय संप्रग को हटाने में ध्यान लगाएं। जाहिर है कि रास्ता तैयार होने लगा है।

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प्रधानमंत्री उम्मीदवार तय करने के लिए जदयू ने डेडलाइन तो इस साल के अंत तक की रखी है, लेकिन दूरी का माहौल अभी से बनने लगा है। दरअसल, बिहार में राजनीतिक और जातिगत समीकरण को साधने के लिहाज से नीतीश और जदयू ने मोदी और उनके मॉडल को कठघरे में खड़ा किया था। लेकिन मोदी को सबसे लोकप्रिय नेता करार देती रही भाजपा और उसके नेताओं को भी राजनीतिक कारणों से यह मंजूर नहीं था। दरअसल दोनों दलों के बीच पिछले दिनों में बढ़ रही दूरी को नीतीश के रविवार के बयानों ने और बढ़ा दिया।

नीतीश ने यूं तो शनिवार की रात भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली से मुलाकात कर बातचीत की थी। लेकिन मोदी पर अनावश्यक आक्रमण भाजपा नेताओं के लिए असहनीय था। लालकृष्ण आडवाणी के आवास पर एक बैठक बुलाई गई थी जिसमें राजनाथ, जेटली समेत सुषमा स्वराज भी थीं। बैठक का एजेंडा कुछ और था लेकिन बताते हैं कि चर्चा नीतीश के बयानों पर हुई और फिर पार्टी की ओर से बयान जारी कर जदयू को प्यार भरी झिड़की दे दी गई। उन्हें याद दिलाया गया कि लड़ाई भाजपा बनाम जदयू नहीं, बल्कि राजग बनाम संप्रग होनी चाहिए। अगर संप्रग को छोड़कर भाजपा के मुख्यमंत्रियों पर हमला किया जाता है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा। नीतीश की आलोचना ने यह साबित कर दिया कि भाजपा चाहे-अनचाहे भी मोदी को नजरअंदाज नहीं कर सकती है। ध्यान रहे कि नीतीश ने रविवार को अपने भाषण में एक बार कांग्रेस का नाम जरूर लिया, लेकिन वर्तमान संप्रग सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा। उनका भाषण मुख्यत: मोदी के आसपास ही रहा। केंद्र में राजग सरकार बनाने की बात तो कही, लेकिन संप्रग की आलोचना न करना भाजपा को अखरा।

दूसरी तरफ नीतीश शायद पहले ही मन बना चुके थे। तेजतर्रार नीतीश को इसका अहसास है कि बिहार में उनका वोटबैंक भाजपा से अलग है और उसमें एक हिस्सा अल्पसंख्यकों का भी है। 2010 विधानसभा चुनाव के वक्त इसका परीक्षण भी कर चुके हैं। वक्त आ गया है कि इस बार लोकसभा चुनाव में वह इसे और आक्रामकता देते हुए आगे बढ़ें।

पीएम प्रत्याशी मुद्दा उठाने की जल्दबाजी पर अकाली दल ने चेताया

नई दिल्ली। भाजपा से दिसंबर तक प्रधानमंत्री पद काप्रत्याशी घोषित करने की मांग कर रहे जदयू से उलट शिरोमणि अकाली दल [एसएडी] ने रविवार को कहा कि इस पद के सर्वसम्मत पसंद पर केवल चुनाव के बाद ही पहुंचा जा सकता है। एसएडी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [राजग] का घटक है। राजग के सहयोगी शिवसेना ने कहा है कि भाजपा किसी का भी नाम प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में पेश करती है तो वह तब तक उसके खिलाफ नहीं है जब तक गठबंधन में शामिल सभी दलों से नाम की घोषित करने से पहले विमर्श किया जाता है।

एसएडी के नेता नरेश गुजराल ने कहा,' मैं सोचता हूं कि हम आज भविष्यवाणी करने की कोशिश करने लगें तो ऐसा जल्दबाजी और बगैर सोचे समझे होगा। उन्होंने कहा, 'जाहिर है यह सवाल अब भी खुला है और मतदान के बाद यदि हम लोगों की सबसे अधिक संख्या हुई तो राष्ट्रपति हमें बुलाएंगे और तब हम संभावित सहयोगियों को बुलाकर उनकी राय पर विचार करेंगे और प्रधानमंत्री के उम्मीदवार पर एक आम सहमति बनेगी।' गुजराल की यह प्रतिक्रिया जदयू की बैठक में प्रस्ताव पारित करने के बाद आई है जिसमें भाजपा को अपने प्रधानमंत्री का ऐसा उम्मीदवार घोषित करने के लिए आठ महीने का समय दिया है जिसकी धर्मनिरपेक्ष साख संदेह से परे हो, ऐसा नहीं होने पर नकारात्मक परिणाम निकलने की चेतावनी भी दी गई है।

एसएडी नेता ने कहा कि राजनीति में सबसे पहले तो कोई अंतिम समयसीमा नहीं होती। दूसरी बात कि हम सभी स्वतंत्र राजनीतिक दल हैं। जब चुनाव की घोषणा होगी, हम चुनाव में उतरेंगे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम उन्हीं नेताओं को आगे दिखाएं जिनसे हमें अधिकतम लाभ मिले। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा अकेले लोकसभा की 272 सीटें नहीं जीत सकती। इसलिए हमें संभावना वाला गठबंधन चाहिए और हम उन्हें ऐसा नहीं कह सकते कि प्रधानमंत्री तय हो गए हैं इसलिए आप कृपा करके हमारे साथ आएं।

शिवसेना का बयान भी जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश करने के खिलाफ परोक्ष धमकी के बाद आया है। शिवसेना के नेता राहुल नार्वेकर ने कहा, राजग के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के बारे में राजग के सभी घटक दलों से विमर्श किया जाना चाहिए। यह प्रत्याशी किसी खास पार्टी का नहीं होगा बल्कि पूरे राजग का होगा।

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