गुजरात में भाजपा-कांग्रेस दोनों की नजर आदिवासी मतदाताओं पर
पिछले 20 वर्षो के भाजपा के शासनकाल में गुजरात के जनजातीय क्षेत्रों में कुपोषण की दर 47 फीसद से घटकर दो फीसद पर आ गई है।
ओमप्रकाश तिवारी, वलसाड़। गुजरात की जनजातीय आबादी पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ने निगाहें जमा रखी हैं। कांग्रेस इस वर्ग में अपनी ढीली पड़ती पकड़ को पुन: मजबूत करना चाहती है, तो भाजपा जनजातीय क्षेत्रों से कांग्रेस का पूरी तरह सफाया करना चाहती है।
गुजरात की आबादी में जनजातीय समुदाय लगभग 15 फीसद है। 27 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, तो इसके अलावा करीब आठ और सीटों पर यह वर्ग निर्णायक भूमिका अदा करता है। फिलहाल जनजातियों के लिए आरक्षित 27 सीटों में से भाजपा के पास सिर्फ 11 हैं। 15 सीटें अभी भी कांग्रेस के पास हैं। एक पर जनतादल (यू) का कब्जा है।
गुजरात सरकार अपने बजट का 14.75 फीसद हिस्सा जनजातीय क्षेत्रों के विकास पर खर्च करती आई है। इसी वर्ष फरवरी में मुख्यमंत्री विजय रूपानी एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष जीतू वघानी ने 1500 किलोमीटर लंबी 'आदिवासी विकास गौरव यात्रा' निकाली थी।
इस क्षेत्र में प्रधानमंत्री दो बड़ी रैलियां कर चुके हैं। जवाब में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी मई में जनजातीय बहुल नर्मदा जनपद में रैली की और वहां देव मोगरा स्थित जनजातियों के एक श्रद्धा स्थल पर भी सिर नवा कर आए।
गुजरात अनुसूचित जनजातीय कल्याण समिति के अध्यक्ष एवं उमरगांव से पांच बार के विधायक रमनभाई पाटकर जनजातीय क्षेत्रों के बच्चों में कुपोषण दर में आई कमी को राज्य सरकार की बड़ी सफलता मानते हैं। गुजरात एवं महाराष्ट्र के जनजातीय क्षेत्र लगभग मिले हुए हैं। महाराष्ट्र के पालघर जनपद में कुपोषण से होने वाली मौतों के कारण वहां की राज्य सरकार को अक्सर हाई कोर्ट की फटकार का सामना करना पड़ता है।
पिछले 20 वर्षो के भाजपा के शासनकाल में गुजरात के जनजातीय क्षेत्रों में कुपोषण की दर 47 फीसद से घटकर दो फीसद पर आ गई है। पाटकर बताते हैं कि राज्य के 14 जिलों एवं 43 तालुका में करीब 4000 गांव जनजातियों के हैं। आनंदीबेन पटेल के काल में इन जनजातीय गांवों को सड़क से जोड़ने के लिए बजट से इतर 10,000 करोड़ रुपये दिए गए थे।
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