जन्मदिन विशेष : महात्मा गांधी ने इस महान गायिका को दी थी आधुनिक मीरा की उपाधि
1953 में दिल्ली में आयोजित कर्नाटक संगीत के एक समारोह में उनके गीत सुनकर नेहरू जी ने कहा, ‘‘शुभलक्ष्मी के संगीत में दिल के तारों को हिला देने की शक्ति है। वे संगीत की रानी हैं।
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। 1998 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत तथा एमएस के नाम से प्रसिद्ध मदुरै षण्मुखवडिवु शुभलक्ष्मी का जन्म 16 सितंबर, 1916 को तमिलनाडु के मदुरै नगर में हुआ था। उनकी माता वीणा तथा दादी वायलिन बजाती थीं। उन्होंने शुभलक्ष्मी को आर्यकुड़ी, श्रीनिवास अय्यर तथा रामानुज आयंगर जैसे गुरुओं से संगीत की शिक्षा दिलाई।
कई भाषाओं में गीत गाए
शुरू से ही कर्नाटक संगीत की ओर रुझान होने के कारण कक्षा पांच तक पढ़ने के बाद वे अपना पूरा समय संगीत शिक्षण में ही लगाने लगीं। 10 वर्ष की अवस्था में ही उनकी पहली संगीत डिस्क बाजार में आ गयी थी। 17 वर्ष की होने पर उन्होंने चेन्नई की प्रसिद्ध ‘संगीत अकादमी’ में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया। इसके बाद उन्होंने पंडित नारायण व्यास से भारतीय शास्त्रीय गायन सीखकर भारत की अनेक भाषाओं में गीत गाए। इस प्रकार तीन पीढ़ियों की विरासत के साथ अच्छे गुरुओं का स्नेह भी उन्हें मिला।
अभिनय की प्रशंसा गांधी जी ने की
उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय भी किया। इसमें सबसे प्रसिद्ध तमिल तथा हिन्दी में बनी ‘मीरा’ थी। 1945 में बनी इस फिल्म में उन्होंने मीरा के कई भजनों को स्वर भी दिया। इसके प्रारम्भ में ‘भारत कोकिला’ सरोजिनी नायडू ने उनका परिचय दिया है। उनके अभिनय की प्रशंसा गांधी जी ने भी की। गांधी जी के कहने पर उन्होंने हिंदी सीखकर हिंदी में भी गीत गाये।
नेहरू को गायन से किया भाव विभोर
1947 में 'मीरा' फिल्म के उद्घाटन के बाद वे दिल्ली के बिड़ला हाउस में गांधी जी से मिलीं। वहां उन्होंने रामधुन तथा मीरा के भजन सुनाए। गांधी जी ने कहा कि यदि तुम बिना गाये भी मीरा के भजन बोलो तो वे बहुत अच्छे लगते हैं। सुचेता कृपलानी के आग्रह पर उन्होंने गांधी जी का प्रिय भजन ‘हरि तुम हरो, जनन की पीर’ रिकॉर्ड कर भेजा। 1941 में सेवाग्राम की प्रार्थना सभा में उनके भजन सुनकर गांधी जी ने उन्हें ‘आधुनिक मीरा’ की उपाधि दी।
1953 में दिल्ली में आयोजित कर्नाटक संगीत के एक समारोह में उनके गीत सुनकर नेहरू जी ने कहा, ‘‘शुभलक्ष्मी के संगीत में दिल के तारों को हिला देने की शक्ति है। वे संगीत की रानी हैं। उनके सामने मैं क्या हूं, केवल भारत का प्रधानमंत्री ही तो।’’ गायनाचार्य श्री ओंकार ठाकुर उनके कंठ से ‘शंकराभरणम्’ सुनकर अभिभूत हो उठे। उन्होंने मंच पर जाकर शुभलक्ष्मी को बधाई दी।
उस्ताद अल्लादिया खां की आंखों में आंसू आ गये
एक समारोह में जब उन्होंने ‘पन्तुवराली राग’ गाया तो 90 वर्षीय उस्ताद अल्लादिया खां की आंखों में आंसू आ गये। भारत के सभी प्रसिद्ध गायकों और संगीतकारों ने उन्हें तपस्विनी, सुस्वरलक्ष्मी, सुखलक्ष्मी, संगीत का आठवां स्वर जैसी उपाधियां दीं। लता मंगेशकर ने आपको 'तपस्विनी' कहा, उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ां ने आपको 'सुस्वरलक्ष्मी' पुकारा, तथा किशोरी आमोनकर ने आपको 'आठ्वां सुर' कहा, जो संगीत के सात सुरों से ऊंचा है। उन्होंने गायन की अपनी शैली भी विकसित की।
उन्होंने भारत के सांस्कृतिक राजदूत के नाते दुनिया भर के संगीत समारोहों में भाग लिया। 24 अक्तूबर, 1966 को संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस पर आयोजित महासभा में उन्होंने कांची पीठ के श्रीमद् परमाचार्य द्वारा रचित ‘मैत्री राग’ गाया। देश-विदेश से उन्हें सैकड़ों उपाधियां तथा मान-सम्मान प्राप्त हुए।
1940 में उनका विवाह एक क्रांतिकारी श्री त्यागराज सदाशिवन् से हुआ। उन्होंने शुभलक्ष्मी की प्रतिभा को बहुत निखारा। 1996 में पति की मृत्यु के बाद उन्होंने सार्वजनिक गायन बंद कर दिया। चार दिसंबर, 2004 को चेन्नई में स्मृतिभ्रंश की शिकार होकर यह ‘आधुनिक मीरा’ सदा के लिए मौन हो गयीं।