देशभर में दुर्लभ बाम्बे ब्लड ग्रुप का 65वां व्यक्ति बना दुर्गेश
सिम्स के आर्थोपेडिक वार्ड में भर्ती मरीज दुर्लभ बाम्बे ब्लड ग्रुप का मिला है। इस ग्रुप के रक्त वाले अब तक 64 लोग ही देशभर में मिले हैं और अब वह 65 वां व्यक्ति बना है।
बिलासपुर (जेएनएन)। सिम्स के आर्थोपेडिक वार्ड में भर्ती मरीज दुर्लभ बाम्बे ब्लड ग्रुप का मिला है। इस ग्रुप के रक्त वाले अब तक 64 लोग ही देशभर में मिले हैं और अब वह 65 वां व्यक्ति बना है। लिहाजा सिम्स प्रबंधन मरीज की पूरी देखभाल में जुट गया है। अनुपात के हिसाब से एक करोड़ के पीछे कोई एक व्यक्ति इस ब्लड ग्रुप का होता है।
सिम्स के आर्थोपेडिक वार्ड में 8 फरवरी को पेंड्रा के ग्राम भरारी के 19 साल के दुर्गेश भरिया पिता मैकूलाल को भर्ती किया गया था। उसके दाहिने पैर की हड्डी में फ्रेक्चर है। उसका ऑपरेशन करना जरूरी है। 14 फरवरी को जब उसके ब्लड ग्रुप की जांच की गई, तो पहले ओ पॉजीटिव पाया गया।
वहीं जब ओ प्लस ग्रुप से क्रॉस चेकिंग की गई तो वह मैच नहीं हो सका, जो डॉक्टरों के लिए चौंकाने वाली बात थी। इसके बाद अन्य परीक्षण किए जाने पर मरीज का रक्त दुर्लभ बाम्बे ब्लड ग्रुप का पाया गया। यह खबर मिलते ही सभी वरिष्ठ डॉक्टर सक्रिय हो गए, क्योंकि यह दुनिया का सबसे दुर्लभ ब्लड ग्रुप है।
वही देश में इस ग्रुप के सिर्फ 64 लोगों को खोजा जा सका है। दुर्गेश अब 65वां व्यक्ति हो गया है। अब सिम्स प्रबंधन दुर्गेश की विशेष देखभाल रखते हुए उसका उपचार कर रहा है। कुछ ही दिन में उसका ऑपरेशन किया जाएगा। सिम्स ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ.बीपी सिंह ने बताया कि यह बड़ी बात है कि बिलासपुर जिले में इस दुर्लभ ब्लड ग्रुप का व्यक्ति मिला है। बाम्बे ब्लड ग्रुप खोजने में सिम्स ने एक बड़ा योगदान दिया है।
संभाग में तीसरा व राज्य में सातवां
सिम्स के प्रभारी डीन डॉ.रमणेश मूर्ति ने जानकारी दी कि इससे पहले छत्तीसगढ़ में इस ग्रुप के 6 लोग मिल चुके हैं। दुर्गेश सातवां व्यक्ति बना है। वहीं बिलासपुर संभाग का तीसरा व्यक्ति बना है। संभाग के कोरबा, पेंड्रा के अलावा शहर के जरहाभाठा में इसके एक-एक दानदाता रहते हैं।
क्या है बाम्बे दुर्लभ ब्लड ग्रुप
सामान्य रूप से ऐसा माना जाता है कि सबसे दुर्लभ रक्त समूह ओ निगेटिव होता है, जो बहुत मुश्किल से मिलता है। यह रक्त चुनिंदा लोगों में पाया जाता है। वहीं ओ निगेटिव ब्लड ग्रुप से भी दुर्लभ ब्लड ग्रुप एक ऐसा है जो लगभग एक करोड़ में किसी एक का पाया जाता है। उसका नाम बाम्बे ब्लड ग्रुप है। इस रक्त समूह कोरेयर ऑफ द रेयरेस्ट रक्त समूह कहते हैं। बाम्बे ब्लड ग्रुप की खोज वर्ष 1952 में डॉ.वायएम भेंडे ने बाम्बे में की थी।