Move to Jagran APP

मैडम कामा ने भारत में ब्रिटिश शासन को बताया था मानवता पर कलंक, पहली बार फहराया था राष्‍ट्रीय ध्‍वज

मैडम कामा ने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। उन्‍होने ब्रिटिश शासन को भारत पर लगा कलंक बताकर उनकी जड़े हिलाने का काम किया था। उन्‍होंने ही पहली बार भारत का राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराकर ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी थी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 03:35 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 07:41 AM (IST)
मैडम कामा ने भारत में ब्रिटिश शासन को बताया था मानवता पर कलंक, पहली बार फहराया था राष्‍ट्रीय ध्‍वज
मैडम कामा ने विदेशों में बसे भारतीयों में आजादी की अलख जगाई थी।

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। श्रीमती भीखाजी जी रूस्तम कामा (मैडम कामा) भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं। जिन्होंने लंदन, जर्मनी और अमेरिका की यात्रा कर वहां पर भारत की आजादी के पक्ष में माहौल बनाने का अहम काम किया था। इतना ही नहीं मैडम कामा ने ही जर्मनी के स्टटगार्ट में 22 अगस्त 1907 को हुई 7वीं अंतरराष्‍ट्रीय कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराया था। हालांकि ये तिरंगा वैसा नहीं था जैसा आज दिखाई देता है। हालांकि मौजूदा राष्‍ट्रीय ध्‍वज भी कामा के झंडे से काफी मेल खाता है।

loksabha election banner

राणाजी और कामाजी द्वारा निर्मित यह भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज आज भी गुजरात के भावनगर स्थित सरदारसिंह राणा के पौत्र और भाजपा नेता राजुभाई राणा के घर सुरक्षित रखा गया है। उनके इस झंडे में विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने की कोशिश की गई थी। उसमें इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करने के लिए हरा, पीला और लाल रंग इस्तेमाल किया गया था। साथ ही उसमें बीच में देवनागरी लिपि में वंदे मातरम लिखा हुआ था।

इस अधिवेशन में उन्होंने कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन का जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। इससे भारत के हितों को भारी क्षति पहुंच रही है। यहां पर उन्‍होंने भारतीयों से आजादी के लिए आगे बढ़ने की अपील की थी और कहा था कि हिंदुस्‍तान हिंदुस्‍तानियों का है। यहां पर उनके द्वारा फहराए गए तिरंगे का सीधा असर अंग्रेजों पर भी दिखाई दिया था। यहां पर उन्‍होंने भारतीयों से आजादी के लिए आगे बढ़ने की अपील की थी और कहा था कि हिंदुस्‍तान हिंदुस्‍तानियों का है। यहां पर उनके द्वारा फहराए गए तिरंगे का सीधा असर अंग्रेजों पर भी दिखाई दिया था, ये उनके लिए सीधी चुनौती भी थी।

वो पेरिस से वंदे मातरम और तलवार पत्र का प्रकाशन भी करती थीं जो वहां पर रहने वाले प्रवासियों के बीच काफी लोकप्रिय था। मैडम कामा ने लंदन में दादा भाई नौरोजी की निजी सचिव के तौर पर भी काम किया था। कामा का जन्‍म एक धनी परिवार में हुआ था। इसके बावजूद उन्‍होंने अपने जीवन के इस सुख को त्‍याग कर विदेशों में बसे भारतीयों के दिलों में आजादी की अलख जगाई। इसके लिए उन्‍हें कई खतरे भी उठाने पड़े और मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा। भारत की स्वाधीनता के लिए लड़ते हुए उन्होंने लंबी अवधि तक निर्वासित जीवन बिताया था और स्‍वराज के लिए आवाज उठाती रहीं।

24 सितंबर 1861 को बम्बई में एक पारसी परिवार में जन्‍मीं हुकामा में देशभक्ति की भावना और लोगों की सेवा करने का भाव कूट-कूट कर भरा था। जब 1896 में मुंबई प्‍लेग की चपेट में आई तो उन्‍होंने अपनी परवाह न करते हुए मरीजों की देखभाल की। हालांकि बाद में वो भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं। जब वो कुछ ठीक हुईं तो उन्‍हें इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई थी। 1902 में वो लंदन आई और ब्रिटिश शासन के खिलाफ और भारत की आजादी के लिए झंडा बुलंद किया।

मैडम कामा की लड़ाई केवल ब्रिटिश हुकूमत के ही खिलाफ नहीं बल्कि दुनिया-भर में फैले साम्रज्यवाद के विरुद्ध थी। वह भारत के स्वाधीनता आंदोलन के महत्त्व को खूब समझती थीं। उनका एकमात्र लक्ष्‍य था पूर्ण स्‍वराज। वो चाहती थीं कि पूरी पृथ्वी से साम्राज्यवाद का प्रभुत्व खत्‍म हो। उनके सहयोगी उन्हें भारतीय क्रांति की माता मानते थे; जबकि अंग्रेज उन्हें कुख्यात महिला और खतरनाक अराजकतावादी क्रांतिकारी मानते थे। आजादी के अलख जगाने वाली इस महिला को दुनिया के कई अखबारों ने अपने पेज की सुर्खियां बनाया था। फ्रांसीसी अखबारों में उनका चित्र जोन ऑफ आर्क के साथ आया था जो एक बड़ी घटना थी। 13 अगस्‍त 1936 को उन्‍होंने मुंबई में अंतिम सांस ली थी। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.