जंगल से बेदखली के मामले ने पकड़ा तूल, आदिवासियों का भारत बंद आज
सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने के आदेश पर स्टे दे दिया है लेकिन पूरी संभावना यही है कि इस स्टे आदेश को बदला जा सकता है।

रायपुर, राज्य ब्यूरो। जंगल से आदिवासियों की बेदखली के मामले ने अब तूल पकड़ लिया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने 13 फरवरी के फैसले पर स्टे दे दिया है पर आदिवासी इस मसले पर अब भी आक्रोशित हैं। आदिवासी भारत महासभा ने इसी मुद्दे पर पांच मार्च को भारत बंद का आह्वान किया है। उधर, छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने बंद के इस आह्वान से खुद को अलग रखा है। यानी जंगल से बेदखली पर आदिवासी दो फाड़ हो गए हैं।
आदिवासियों का एक वर्ग कह रहा है कि अभी स्टे मिला है और सरकार से लेकर अनुसूचित जनजाति आयोग तक सभी आदिवासियों के हितों की रक्षा के कदम उठा रहे हैं। ऐसे में बड़े आंदोलन का कोई औचित्य नहीं है।
सोशल मीडिया पर भी बंद की अपील
आदिवासी भारत महासभा की अपील सोशल मीडिया में वायरल हो रही है। इसमें कहा गया है कि विभिन्न आदिवासी संगठनों के बंद को समर्थन दिया जाए। भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने के आदेश पर स्टे दे दिया है, लेकिन पूरी संभावना यही है कि इस स्टे आदेश को बदला जा सकता है। जरूरत इस बात की है कि आदिवासियों की जमीन और आजीविका की रक्षा के लिए बन अधिकार कानून के अनुसार एक समुचित कानून बनाया जाए। इस मामले में केंद्र की मोदी सरकार को बेनकाब किया जाना चाहिए।
छत्तीसगढ़ में नौ मार्च को रैली
बंद के इस आह्वान से छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने किनारा कर लिया है। समाज के अध्यक्ष बीपीएस नेताम ने दैनिक जागरण से कहा कि वामसेफ और अन्य संगठनों ने बंद का आह्वान किया है, हमने नहीं। हम लोगों की अलग रणनीति होगी।
निर्णय लिया गया है कि नौ मार्च को एससी, एसटी, ओबीसी संयुक्त मोर्चा के तत्वावधान में रैली निकाली जाएगी। हमारी मांग है कि स्टे नहीं, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पूरी तरह निरस्त किया जाए।
Edited By Bhupendra Singh