Move to Jagran APP

मध्य प्रदेश का खजुराहो ‘मंदिरों का गांव’ और ‘कलाप्रेमियों का तीर्थ’, चलें एक यादगार सफर पर...

मध्य प्रदेश में स्थित खजुराहो विश्व धरोहर देश-विदेश के पर्यटन प्रेमियों की पहली पसंद है। यह ‘मंदिरों के गांव’ और ‘कलाप्रेमियों के तीर्थ’ के रूप में चर्चित है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 03:42 PM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 03:54 PM (IST)
मध्य प्रदेश का खजुराहो ‘मंदिरों का गांव’ और ‘कलाप्रेमियों का तीर्थ’, चलें एक यादगार सफर पर...
मध्य प्रदेश का खजुराहो ‘मंदिरों का गांव’ और ‘कलाप्रेमियों का तीर्थ’, चलें एक यादगार सफर पर...

[सीमा झा]। साफ-सुथरी, खुली-सी सड़कें। विंध्य पर्वत शृंखला के विशाल दायरे। सूरज की किरणों संग धूप-छांव खेलते ऊंचे-ऊंचे पेड़, दूर-दूर तक पसरे खेत और कहीं-कहीं इन खेतों के बीच स्थित प्राचीन मंदिरों के छोटे-छोटे कलात्मक अवशेष। इन अवशेषों को देखकर लगता है कि जल्द ही मंदिरों के गांव खजुराहो पहुंचने वाले हैं। यदि आप ओरछा होते हुए आते हैं तो इस खास सफर में वीर बुंदेलों की शौर्य गाथाएं भी आपके साथ चलेंगी और यदि आप पहली बार खजुराहो जा रहे हैं तो यकीनन यह किसी सुपरहिट फिल्म को देखने का रोमांच सरीखा अनुभव होगा। ऐसी फिल्म, जिसकी प्रशंसा तो खूब सुनी हो पर बहुत दिन बाद देखने का अवसर मिला हो।

loksabha election banner

पहली नजर में खजुराहो एक छोटा कस्बा जान पड़ेगा, लेकिन जैसे ही आप मंदिर परिसर में प्रवेश करेंगे, आपका सामना उस विश्व धरोहर से होगा, जहां पूरा विश्व एक हो रहा है। जापानी, रशियन, चाइनीज और फर्राटे सेअंग्रेजी बोलने वाले स्थानीय टूरिस्ट गाइड और उन्हें ध्यानमग्न सुनते विदेशी पर्यटकों को देखना एक सुखद अनुभव है। यहां हर मोड़ पर विदेशी पर्यटकों की मौजूदगी से विदेश में बसे किसी देसी मोहल्ले में दाखिल होने का आभास भी हो सकता है!

कभी खजूर के पेड़ थे यहां: मंदिरों की नगरी में हरियाली व प्राचीन अवशेषों के साथ-साथ आधुनिक पांच सितारा होटलों की उपस्थिति देखकर आप समझ जाएंगे कि पर्यटन की दृष्टि से खजुराहो का व्यावसायिक महत्व कितना है। पहले इसे ‘खजिरवाहिला’ कहा जाता था। छठी सदी में भारत आये चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी भाषा में इसे ‘चि चि तौ’ लिखा है। मध्यकाल में भारत आये मोरक्को के यात्री इब्नबतूता ने इस स्थान को ‘कजारा’ कहा। हालांकि चंदवरदाई की कविताओं में इसे ‘खजूरपुर’ कहा गया, जिसे अधिकतर लोग मानते हैं। कहते हैं कि इस समय नगर द्वार पर लगे खजूर वृक्षों के कारण यह नाम पड़ा होगा, जो कालांतर में खजुराहो कहलाने लगा।

पत्थरों पर उकेरी गई संवेदनाएं: यहां मंदिरों पर मूर्तिकला के जरिए इंसानी जीवन और उसकी संवेदनाओं को बारीकी से उकेरा गया है। शहर के नजदीक पहुंचते ही आपका स्वागत छेनी से पत्थर को तराशती एक जीवंत मूर्ति करती है। यह किसी कलाधर नामक शिल्पी की कृति बताई जाती है। इससे मिलते ही आपका कौतूहल बढ़ता जाएगा और आप जल्दी मंदिर परिसर पहुंचना चाहेंगे। यहां की ऐसी कलात्मक अभिव्यक्ति न केवल शिल्पियों की, बल्कि यहां के चंदेल राजाओं की असाधारण दृष्टि को भी दर्शाती है। देवताओं की प्रतिमाओं के अलावा नारी सौंदर्य और काम-कला को दर्शाती मूर्तियां देर तक रोके रखने का सामथ्र्य रखती हैं। नारी शरीर की कोमलता और सौष्ठव का हर पहलू उभारने के ऐसे सुंदर प्रयास मंत्रमुग्ध करते हैं। यहां नारी-जीवन के अनेक प्रसंग मौजूद हैं। जैसे, कहीं वह अपनी वेणी गूंथ रही है, कहीं दर्पण में अपने सौंदर्य को निहार रही है, तो कहीं आलता लगा रही है। करीबएक हजार साल पहले कलाकारों में ऐसी कल्पनाशीलता आज भी हर किसी को हैरान करती है।

कलात्मक स्थापत्य का भव्य संसार: चंदेलों के शासन के बाद यानी 14वीं शताब्दी के बाद खजुराहो के मंदिर अतीत की परतों में गुम होते गए। फिर बीसवीं सदी के आरंभ में एक अंग्रेज इंजीनियर टी.एस. बर्ट ने नए सिरे से इन मंदिरों को दोबारा दुनिया के सामने रखा। ये मंदिर पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी मंदिर समूह के रूप में विभाजित हैं। अधिकतर महत्वपूर्ण मंदिर पश्चिमी समूह में स्थित हैं। इनका निर्माण रथ शैली में हुआ है। चित्रगुप्त मंदिर, जगदंबी मंदिर और चतुर्भुज मंदिर रथ शैली में बने हुए छोटे मंदिर हैं। लक्ष्मण मंदिर, विश्वनाथ मंदिर और दूल्हादेव मंदिर पंचरथ शैली में बने हैं। मशहूर कंदारिया महादेव मंदिर सप्तरथ शैली का शानदार नमूना है। भले ही आप कला-पारखी न हों, लेकिन यहां का स्थापत्य हैरान कर देगा। प्रत्येक मंदिर ऊंचे चिनाईदार चबूतरे पर निर्मित है। इनकी बनावट ऊघ्र्वगामी है यानी इनका प्रक्षेपण नीचे से ऊपर की ओर है।

काम-कलाओं का जीवंत चित्रण: यहां के मंदिरों में कामकलाओं का इतना सजीव चित्रण कैसे हुआ, इसकी क्या वजह रही होगी? मंदिर की दीवारों पर सजी असंख्य मूर्तियों को देखकर ऐसी जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। हालांकि इसका जवाब किंवदंतियों के रूप में दिया जाता रहा है। एक कहानी के अनुसार, चंद्र देव यानी चंद्रमा हेमावती नामक कन्या के प्रति आकर्षित हो गए। उनके प्रणय-संबंध से एक बालक का जन्म हुआ। समाज ने हेमावती और बालक को अपनाने से मना कर दिया। बालक का पालन-पोषण वन में हुआ और वह बड़ा होकर राजा चंद्र वर्मन बना, जिसने चंदेल वंश की नींव रखी। हेमावती ने पुत्र को ऐसी मूर्तियां बनाने का आदेश दिया, जिसमें मानव मन के अंदर दबी कामनाओं का चित्रण हो सके, पर जब वह मंदिर में प्रवेश करे तो उसके अंदर ऐसी भावनाएं न रहें। दूसरी मान्यताओं के अनुसार, यह माना जाता है कि गौतम बुद्घ के उपदेशों से प्रेरित होकर जब आमजन में कामकला के प्रति रुचि खत्म हो रही थी तो उन्हें दोबारा इस ओर आकर्षित करने के लिए ऐसे मंदिरों का निर्माण हुआ होगा।

सैर साइकिल पर: मंदिरों के इस शहर में कभी भी निकल जाएं, ताजगी का एहसास होगा। यहां घूमने के लिए मंदिरों के आसपास साइकिल भी किराए पर मिल जाती है। दिलचस्प यह है कि यहां रात में भी सड़कों पर बैडमिंटन खेलते या साइकिल चलाते पर्यटक आराम से मिल जाएंगे। इससे आपको एहसास होगा कि एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल पर देश-विदेश से आए पर्ययक भी कितनी खूबसूरती से यहां की कस्बाई संस्कृति में रम गए हैं।

महानायक की आवाज में इतिहास: सूर्यास्त के समय पश्चिमी मंदिर परिसर का नजारा फोटोग्राफी के लिए लाजवाब होता है। यहां ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम में शिरकत जरूर करें। महानायक अमिताभ बच्चन की आवाज में यह आयोजन खजुराहो के इतिहास से रूबरू कराएगा। कार्यक्रम का आनंद उठाने के लिए भारतीय नागरिकों से प्रति व्यक्ति 250 रुपये का प्रवेश शुल्क लिया जाता है। सितंबर से फरवरी के बीच यह कार्यक्रम शाम 7 बजे से 7.50 तक अंग्रेजी भाषा में होता है, जबकि हिंदी में रात आठ से नौ बजे तक आयोजित किया जाता है। मार्च से सितंबर तक इस कार्यक्रम का समय बदल जाता है। इस अवधि में अंग्रेजी में कार्यक्रम शाम 7.30 से 8.25 के बीच होता है और हिंदी में 8.40 से 9.35 तक।

आसपास : प्रकृति-विरासत के बीच पर्यटन भारतीय कला व संस्कृति के संगम स्थल खजुराहो के आसपास भी कई ऐसे स्थान हैं, जो आपकी यात्रा को पूर्णता प्रदान करने में मदद करते हैं। इनमें खजुराहो से 25 किमी. दूर स्थित राजगढ़ पैलेस (हेरिटेज होटल), रंगून झील (पिकनिक स्पॉट), रनेहफॉल (17 किमी.) पन्ना राष्ट्रीय उद्यान (34 किमी.) आदि प्रमुख स्थल हैं।

रनेहफाल

केन नदी पर स्थित यह जलप्रपात सैलानियों को खूब लुभाता है। खजुराहो से राजनगर होते हुए नेशनल पार्क के जंगलों के बीच से गुजरती केन नदी पर बने रनेह जलप्रपात को देखकर आपको एकबारगी जबलपुर के भेड़ाघाट की याद आ जाएगी। विशाल पत्थरों की चोटी से केन नदी की जलधार ने नीचे विशाल कुंड का रूप ले लिया है।

पन्ना नेशनल पार्क

यहां सर्दियों के मौसम में केन नदी के तट पर धूप सेंकते घड़ियाल नजर आ सकते हैं। इस नेशनल पार्क में देश की सबसे उम्रदराज हथिनी कभी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी, लेकिन अब वनराज, हाथी, चीता, हिरन और अन्य जानवर भी आपको नजर आ जाएंगे।

नृत्यसाधकों का अनूठा मंच

मंदिरों के दर्शन के बाद जो चीज देश-विदेश के पर्यटकों को यहां सबसे ज्यादा लुभाती है वह है यहां का वार्षिक उत्सव खजुराहो नृत्य समारोह। यह अक्सर फरवरी-मार्च माह में आयोजित किया जाता है। इसमें विभिन्न शास्त्रीय नृत्यों की जानी-मानी प्रतिभाएं भाग लेती हैं। वैसे भी भारत के शास्त्रीय नृत्य प्राय: मंदिरों से ही जुड़े रहे हैं, पर खजुराहो उत्सव में भाग लेना नृत्यकला पारखियों के लिए गौरव का विषय है। यहां मंच पर पृष्ठभूमि में नजर आते आलीशान मंदिर हर नृत्य को अनोखी भव्यता प्रदान करते हैं। इससे कलाकारों को ऊर्जा भी मिलती है। प्रख्यात केलुचरण महापात्र की शिष्या ओडिसी नृत्यांगना राजश्री कहती हैं, ‘मैंने पहली बार यहां के मंच पर नृत्य किया। वाकई यहां जैसी अनुभूति हुई, वैसी कहीं और नहीं हुई।’

हेरिटेज रन का जोश

मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा यहां प्रतिवर्ष हेरिटेज रन का आयोजन किया जाता है। इसमें शामिल होने के लिए प्रतिभागियों में खासा उत्साह होता है। निर्धारित तिथि को सुबह 5, 7 और 10 किमी. का यह हेरिटेज रन मंदिर परिसर के आसपास ही होता है। यह आयोजन पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच मेलजोल का भी एक सुंदर अवसर है। यही वजह है कि हर कोई इसमें जोश-खरोश के साथ शामिल होना चाहता है।

स्ट्रीट फूड से फाइव स्टार तक के स्वाद

यहां देसी संस्कृति तो है ही, विश्वभर से आने वाले पर्यटकों की अधिकता के कारण आपको उसी परिवेश में चाइनीज व कांटिनेंटल भी मिलेगा और जापानी, कोरियन, इजरायली आदि देशों का स्वाद भी। यह जानना दिलचस्प है कि यहां के दुकानदारों ने पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विदेशी भाषाओं में भी अपने बोर्ड लगवा रखे हैं। यहां के राजनगर तहसील मार्ग पर अमल बंगाली की चाय और पश्चिमी मंदिर समूह के सामने जैन मंदिर मार्ग पर जहीर का आलू पराठा पूरे शहर में मशहूर है। जहीर भाई का आलू पराठा यहां गाइड बुक में भी शामिल हो चुका है। स्ट्रीट फूड के शौकीनों को यह शहर निराश नहीं करेगा।

जूट-हस्तकलाओं व मूर्तियों की खरीदारी

यदि आप यहां से शॉपिंग करना चाहते हैं तो मध्य प्रदेश पर्यटन के एंपोरियम के अलावा लोकल मार्केट भी जरूर जाएं। यहां से बांस के कॉटन फैब्रिक के स्टोल, दुपट्टे और साड़ियों की खरीदारी की जा सकती है। मंदिर के आसपास ज्यादातर दुकानों में धातु की बनी अप्सराएं, मूर्तियां खूब लुभाएंगी। यहां पिक्टोरियल बुक्स तथा पिक्चर पोस्टकार्ड आदि बहुतायत में बिकते हैं। ध्यान रहे, यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, इसलिए यहां के बाजारों में मोलभाव भी खूब होता है।

कैसे और कब पहुंचें?

खजुराहो वायु मार्ग द्वारा दिल्ली, वाराणसी, आगरा और काठमांडू से जुड़ा है। खजुराहो रेलवे स्टेशन से दिल्ली और वाराणसी के लिए रेल सेवा भी है। दिल्ली और मुंबई से आने वाले पर्यटकों के लिए झांसी सुविधाजनक रेलवे स्टेशन है, जहां से खजुराहो की दूरी 172 किमी. है। चेन्नई और वाराणसी से आने वाले सतना रेलवे स्टेशन उतर सकते हैं, जहां से खजुराहो117 किमी. की दूरी पर है। रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस के माध्यम से आप खजुराहो पहुंच सकते हैं। खजुराहो पहुंचने के लिए सड़क मार्ग भी सुगम है। महोबा, हरपालपुर, छतरपुर, सतना, पन्ना, झांसी, आगरा, ग्वालियर, सागर, जबलपुर, इंदौर, भोपाल, वाराणसी और इलाहाबाद से नियमित और सीधी बस सेवा है। खजुराहो आने के लिए सर्दियों का मौसम अनुकूल है। ठहरने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन के कई शानदार होटल हैं।

अभिभूत हो जाते हैं पर्यटक

मेरी जन्मभूमि यानी गांव कर्री इसी तहसील में है। जन्म से ही अपने क्षेत्र की इस अनूठी धरोहर से परिचित हूं। मैंने देखा है कि कैसे दुनियाभर से आने वाले सैलानियों को यहां न सिर्फ देव दर्शन का सुख मिलता है, बल्कि इन्हें देखकर वे अभिभूत हो जाते हैं। यह पहले एक छोटा-सा शहर था, लेकिन विश्व धरोहर बनने के बाद यह पर्यटन नगरी विस्तार ले चुकी है।

सावित्री सोनी

छतरपुर जिले की पहली महिला पुलिस (एएसआई, अवकाशप्राप्त)

मिलता है मूल तत्व का ज्ञान मैं खजुराहो में पिछले करीब 15 वर्षों से रह रही हूं। फ्रांस से हूं पर भारतीय संस्कृति से प्रभावित हूं। यहां के आदिवासी गांव कुंदरपुरा में आदिवासी बच्चों के उत्थान के लिए काम करती हूं। खजुराहो के पास रहने का सुख शब्दों में बयां नहीं हो सकता। दरअसल, जीवन दर्शन की अनुभूति होती है यहां। इन्हें देखकर व्यक्ति को मूल तत्व का ज्ञान प्राप्त होता है।

गीता जुरीनी फ्रांसीसी समाजसेविका

ऐसा लगता है, जैसे महादेव साक्षात यहां दर्शन दे रहे हों। उनकी ऊर्जा मेरे अंदर समाहित हो रही हो। दर्शकों को मेरा नृत्य अच्छा लगता है तो इसका बड़ा कारण यह अनंत ऊर्जा ही है।’

एस. वासुदेवन, भरतनाट्यम नर्तक 

[इनपुट सहयोग : खजुराहो से दिलीप सोन]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.