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स्टीविया की खेती ने बस्तर के किसानों को दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान

जिस नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग (छत्तीसगढ़) से अच्छी खबरें जरा कम ही निकलती हैं, वहां के प्रगतिशील किसानों ने मुस्कुराने का एक मौका जरूर दिया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 17 Jul 2018 01:15 PM (IST)Updated: Tue, 17 Jul 2018 02:15 PM (IST)
स्टीविया की खेती ने बस्तर के किसानों को दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान
स्टीविया की खेती ने बस्तर के किसानों को दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान

रायपुर [मृगेंद्र पांडेय]। जिस नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग (छत्तीसगढ़) से अच्छी खबरें जरा कम ही निकलती हैं, वहां के प्रगतिशील किसानों ने मुस्कुराने का एक मौका जरूर दिया है। स्टीविया (मीठी तुलसी) की खेती ने यहां के किसानों को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है। दरअसल, कोंडागांव के 400 किसानों ने मां दंतेश्वरी हर्बल समूह बनाकर स्टीविया की खेती शुरू की। मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा और उच्च रक्तचाप में बतौर औषधि स्टीविया रामबाण के रूप में सामने आया है।

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किसानों के इस अनोखे प्रयोग को अब भारत सरकार के उपक्रम सीएसआइआर (काउंसिल ऑफ सांइटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) ने भी मान्यता दे दी है। बहुत जल्द केंद्र के सहयोग से कोंडागांव में मीठी तुलसी की पत्ती से शक्कर बनाने का कारखाना भी शुरू होने जा रहा है। यह देश का ऐसा पहला कारखाना होगा जहां मीठी तुलसी से शुगर फ्री शक्कर बनेगी। मां दंतेश्वरी हर्बल समूह से जुड़े राजाराम त्रिपाठी बताते हैं कि अब छत्तीसगढ़ के साथ-साथ आंध्र प्रदेश और ओडिशा के भी किसान इस समूह से जुड़ने लगे हैं।

बस्तर में एक हजार एकड़ में इसकी औषधीय खेती की जा रही है। इसकी मार्केटिंग के लिए किसानों ने मां दंतेश्वरी हर्बल समूह का गठन किया है। यह समूह किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध करने का भी काम कर रहा है। बस्तर के स्टीविया की मांग दूसरे कई देशों में भी बढ़ रही है। कई विदेशी कंपनियां स्टीविया का इस्तेमाल दवा बनाने के लिए कर रही हैं।

यह है स्टीविया की खास बात

गन्ने से बने शक्कर की तुलना में स्टीविया के स्टीवियासाइड में 300 गुना ज्यादा मिठास होती है। यह मिठास एक प्राकृतिक विकल्प है। इसमें अनेक औषधीय गुण और जीवाणुरोधी तत्व हैं। स्टीविया शरीर में चीनी की तरह दुष्प्रभाव भी नहीं डालता। शुरुआती दौर में स्टीविया के पौधों में थोड़ी कड़वाहट थी, लेकिन सीएसआइआर और दंतेश्वरी समूह ने मिलकर नई प्रजाति तैयार की। इससे इसकी कड़वाहट अब बेहद कम हो गई है। 


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