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संस्थागत प्रसव के मामले में देश और प्रदेश के औसत से आगे निकला बस्तर, औसत आंकड़ा पहुंचा 96 फीसद

बस्तर में हर दो गांव के बीच औसतन एक स्वास्थ्य केंद्र है। जिले में 433 ग्राम पंचायतों के अंतर्गत 584 गांव हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 03 Sep 2020 09:18 PM (IST)Updated: Thu, 03 Sep 2020 09:21 PM (IST)
संस्थागत प्रसव के मामले में देश और प्रदेश के औसत से आगे निकला बस्तर, औसत आंकड़ा पहुंचा 96 फीसद
संस्थागत प्रसव के मामले में देश और प्रदेश के औसत से आगे निकला बस्तर, औसत आंकड़ा पहुंचा 96 फीसद

जगदलपुर, जेएनएन। संस्थागत प्रसव के मामले में बस्तर जिले ने राष्ट्रीय और प्रदेश के औसत को पीछे छोड़ दिया है। नक्सल समस्या, सड़कों का अभाव, जंगल-पहाड़, नदी-नालों, साक्षरता की कमी के बावजूद राष्ट्रीय औसत से आगे निकलना बड़ी उपलब्धि है। इसमें लोगों की जागरूकता, सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन, प्रशासन के अतिरिक्त प्रयास और स्वास्थ्य अमले के समर्पण का महत्वपूर्ण योगदान है।

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राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) द्वारा हाल ही में जारी स्वास्थ्य सूचकांक के अनुसार संस्थागत प्रसव का राष्ट्रीय औसत 78.9 है। छत्तीसगढ़ में यह औसत 70.2 फीसद है। वहीं बस्तर जिले में 96 फीसद संस्थागत प्रसव हो रहे हैं। मिलेनियम गोल के अंतर्गत वर्ष 2030 तक संस्थागत प्रसव को 100 फीसद तक ले जाने का लक्ष्य है। चार-पांच साल पहले तक संस्थागत प्रसव के मामले में फिसड्डी बस्तर आज दूसरे जिलों के लिए नजीर पेश कर रहा है। बता दें कि चार-पांच साल पहले बस्तर में संस्थागत प्रसव का औसत 70 फीसद से ज्यादा नहीं था।

टीम वर्क से मिल रही सफलता

जननी सुरक्षा योजना और प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना के सफल क्रियान्वयन के साथ जिला प्रशासन द्वारा हाल ही में शुरू की गई मांझी योजना की इस उपलब्धि में बड़ी भूमिका है। गर्भवती माताओं की उचित देखभाल हो रही है। संस्थागत प्रसव पर नगद राशि दी जा रही है। उच्चधिकारियों से लेकर मितानिन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आदि सभी विषम परिस्थितियों के बावजूद कर्तव्य के निर्वहन में डटे हैं।

हर दो गांव पर एक स्वास्थ्य केंद्र

बस्तर में हर दो गांव के बीच औसतन एक स्वास्थ्य केंद्र है। जिले में 433 ग्राम पंचायतों के अंतर्गत 584 गांव हैं। इसके अनुपात में 235 उप स्वास्थ्य केंद्र, 37 प्राथमिक, सात सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला मुख्यालय में एक सिविल हॉस्पिटल व मेडिकल कॉलेज है। जिले में ढाई हजार से अधिक मितानिन हैं, जिनकी संस्थागत प्रसव में अहम भूमिका है।

क्या है मांझी योजना

इस उपलब्धि के पीछे जिला प्रशासन की मांझी योजना की भी भूमिका रही है। इसमें ऐसे अंदरूनी गांव जहां एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती। वहां की प्रसूता को बाइक से अस्पताल तक पहुंचाने वाले को 400 से 700 रुपये दिए जाते हैं।

बस्तर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ आरके चतुर्वेदी ने बताया कि संस्थागत प्रसव में मिल रही उपलब्धियों की वजह जागरूकता और गर्भवती माता व नवजात के लिए चलाई जा रही सरकार की योजनाओं का सफल क्रियान्वयन है। जिला प्रशासन के साथ स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास विभाग के मैदानी अमले की भी महती भूमिका है।


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