Move to Jagran APP

हमले भी सुनियोजित और भय और आशंका के बीच पलायन भी, अब कोई रातोंरात अपना घर नहीं छोड़ता

ओं पर हो रहे हमले के विरोध में अक्टूबर माह में हुए देशव्यापी प्रदर्शन की तरह फिर ढाका सहित 64 जिलों में प्रदर्शन की तैयारी है। उक्त तस्वीर बांग्लादेश के नरसिंदी जिले का है। सौ. इंडो-बांग्ला फ्रेंडशिप एसोसिएशन

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 11 Nov 2021 09:17 AM (IST)Updated: Thu, 11 Nov 2021 09:28 AM (IST)
हमले भी सुनियोजित और भय और आशंका के बीच पलायन भी, अब कोई रातोंरात अपना घर नहीं छोड़ता
बांग्लादेश में रहने वार्ले हिंदुओं के लिए वाकई पलायन ही एक मात्र विकल्प बचा है।

रुमनी घोष, नई दिल्ली। मैं वह आखिरी हिंदू होऊंगा जो बांग्लादेश की माटी छोड़कर जाना चाहूंगा। छात्र जीवन से लेकर अब तक कई हमले झेले। ज़िंदा कैसे हूं, यह सोचकर भी कई बार हैरान रह जाता हूं...मगर अब अंदर से टूटने लगा हूं। आज से 10 साल पहले तक भी हमारे हक में आवाज उठाने वाले 20-30 प्रतिशत प्रगतिशील मुस्लिम समुदाय के लोग मिल जाते थे, अब दो प्रतिशत भी साथ नहीं आ पाते हैं। सोचने पर मजबूर हूं कि क्या बांग्लादेश में रहने वार्ले हिंदुओं के लिए वाकई पलायन ही एक मात्र विकल्प बचा है।

loksabha election banner

बेशक इस पलायन में अब आपको भारत-पाक विभाजन (1947), हिंदू -मुस्लिम दंगा (1949 से 1962 के बीच), मुक्ति संग्राम (1971 में बांग्लादेश बनना) की तरह रातोंरात घर छोड़कर पलायन करते हुए लोग नजर नहीं आएंगे। यहां हमले भी सुनियोजित ढंग से हो रहे हैं और पलायन भी। बांग्लादेश की राजधानी ढाका निवासी ख्यात पत्रकार (सुरक्षा कारणों ने नाम न देने का अनुरोध) की इन पंक्तियों में जो ‘सुनियोजित’ शब्द है, यह एक अलग ही तस्वीर पेश करता है।

इस तरह हो रहा है सुनियोजित हमला

  • मंदिरों और हिंदू परिवारों पर सीधा हमला, ताकि समुदाय में डर और अस्थिरता पैदा हो और वे देश छोड़कर चले जाएं। उसके बाद उनकी जमीन और संपत्तियों पर कब्जा कर लिया जाए। टांगाइल जिले (तात की साड़ी के लिए ख्यात) में आजादी से पहले 97 प्रतिशत जमीन हिंदुओं की थी। अब यहां 90 प्रतिशत जमीनों पर स्थानीय मुस्लिमों का कब्जा हो गया है
  • जो परिवार व्यापार-व्यवसाय नहीं छोड़ना चाहते हैं, उनमें से कुछ स्वेच्छा तो कुछ मजबूर होकर मतांतरित हो रहे हैं। इसमें निम्न आय वर्गीय व दलित वर्ग के हिंदू ज्यादा है। हाल ही में एक हिंदू परिवार की तीन बेटियों ने मतांतरण कर लिया। हिंदू संगठनों के बीच इस को लेकर काफी चिंता है
  • पाठ्य-पुस्तकों और इतिहास से धीरे-धीरे हिंदू संस्कृति से जुड़े अध्यायों को हटाया जा रहा है। हिंदुओं की चिंता है कि इससे आने वाली पीढ़ियों की स्मृतियों र्से हिंदुओं का अस्तित्व, बलिदान और योगदान मिट जाएगा

...और इस तरह सुनियोजित पलायन: वर्ष 1980 से पहले भारत और बाद में ब्रिटेन-अमेरिका का रुख

केस एक दोहरा बचाव

पत्नी और बेटी को यूके भेजा: सरकार में सचिव स्तर के अधिकारी ने बेटी की पढ़ाई को आधार बनाया। पत्नी और बेटी को यूके भेज दिया। खुद ढाका में ही रुक गए हैं। यूके में बसने का एक कारण यह भी है कि भारत छोड़कर किसी अन्य देश में बसने से संपत्ति शत्रु संपत्ति घोषित नहीं होती।

केस दो 12 साल से तैयारी

पहले बेटी को भेजा, फिर पत्नी को और अब वे खुद आएंगे: रंगपूर संभाग के मध्यम वर्गीय हिंदू परिवार के शिक्षक ने 12 साल पहले बेटी को पढ़ने के लिए भारत भेजा। उसके बाद पत्नी भी आ गई। बेटी की शादी भारत में कर दी। दो साल पहले सेवानिवृत्त हो गए हैं। अब सरकारी खातों से जमा-पूंजी ले चुके हैं। जमीन-जायदाद का सौदा तय कर रहे हैं। इसे बेचकर वह बेटी के पास आने की तैयारी कर रहे हैं।

केस तीन आपात स्थिति के लिए एक घर बंगाल में

भारत और कनाडा में शिफ्ट कर दिया परिवार: ढाका में शाखा (शंख से बनी सफेद चूड़ी, जिसका सबसे बड़ा बाजार भारत है) का व्यवसाय करने वाले हिंदू व्यवसायी परिवार ने 70 के दशक में बड़े बेटे को पढ़ाई के लिए कनाडा भेजा। वो कनाडा में ही बस गए और भारतीय (बंगाली) से शादी की। इधर, बाकी बेटों ने भारत में व्यवसाय फैलाया। अब उनका कोलकाता में एक मकान भी है। बेटियों की शादी वे बांग्लादेश से बाहर तय करेंगे। वे कहते हैं इतना बड़ा व्यवसाय छोड़कर जाना और फिर उसे किसी अन्य देश में विस्तार देना आसान नहीं है, इसलिए अगली पीढ़ी को शिफ्ट कर रहे हैं। (सुरक्षा कानूनी पहलू के कारण सभी नाम गोपनीय रखे गए हैं)

शिक्षा, प्रशासनिक सेवा, अकाउंटेंसी में एक खालीपन आया इस पलायन का असर बांग्लादेश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर किस तरह पड़ा है? इस पर ढाका विश्वविद्याल के अर्थशास्त्री डा. अबुल बरकत का कहना है यहां 90 प्रतिशत शिक्षक हिंदू होते थे। खासतौर पर बांग्ला, अंग्रेजी और गणित के क्षेत्र में उनका बहुत दखल था। शिक्षकों का एक बड़ा वर्ग धीरे-धीरे भारत सहित यूके, यूएस और अन्य देशों में बस गया। बड़ी संख्या में अकाउंटेंट हिंदू थे। इन दोनों ही क्षेत्रों में जो खालीपन आया है, वह उस स्तर के साथ नहीं भर पाया है। चूंकि ज्यादातर हिंदू परिवार या तो जमींदारी, शिक्षा या सरकारी नौकरी से जुड़े रहे, इसलिए आर्थिक रूप से इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा।

बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट व अध्यक्ष एंव बांग्लादेश हिंदू, बौद्ध, ईसाई एकता परिषद के एडवोकेट राणा दासगुप्ता ने बताया कि आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले चट्टोग्राम के क्रांतिकारी वाद्देदार परिवार का वंशज हूं। 1971 में भी बांग्लादेश की आजादी के लिए मुक्ति संग्राम से जुड़ा रहा। मेरे जैसे लाखों हिंदुओं ने बांग्ला भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए लड़ाई लड़ी, मगर अब यहां हिंदू सुरक्षित नहीं हैं। मेरा मानना है कि नौ साल में 5000 से ज्यादा हमले हो चुके हैं। अल्पसंख्यकों के संरक्षण का दावा करने वाली शेख हसीना सरकार के कार्यकाल में लगातार हमले जारी हैं और सरकार इसे रोक नहीं पा रही है। एनिमी एक्ट के तहत जब्त 10 प्रतिशत संपत्तियां भी लौटाई नहीं गई।

बांग्लादेश के सीनियर जाइंट सेक्रेटरी, इंडो- बांग्ला फ्रेंडशिप एसोसिएशन के संगीत निर्देशक सुशील चंद्र सरकार ने बताया कि बांग्लादेश में अब वे हिंदू परिवार ही बचे हैं, जो गरीब व मजबूर हैं या फिर हम जैसे कुछ चुनिंदा लोग, जो अपनी मिट्टी, अपने देश के लिए लड़ रहे हैं। भारत की सीमा से 40 मिनट दूरी पर बसे बोगाड़ शहर में अधिकांर्श हिंदू व्यवसायी (शाहा) हैं। जमा-जमाया व्यवसाय छोड़कर नहीं जा सकते इसलिए वसूली की रकम अदा कर धंधा कर रहे हैं। ऐसे मुद्दों के लिए हम लंबे समय से आयोग बनाने की मांग कर रहे हैं। पाकिस्तान में भी अल्पसंख्यक आयोग है लेकिन बांग्लादेश में नहीं है। भारत की सरकार से अपेक्षा है कि वे हमारी सरकार से इस पर चर्चा करे।

यह भी पढ़ें

बांग्लादेश: हिंदुओं पर हमला...तो अगले 30 साल में बांग्लादेश में कोई भी हिंदू नहीं बचेगा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.