तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था में शामिल हो रहा बांग्लादेश, आप भी जानिए कैसे
भौगोलिक सरहदें संस्कृति-सभ्यता को नष्ट नहीं कर सकतीं। जो राष्ट्र अपनी जड़ों को भूलने का प्रयास करते हैं वे पाकिस्तान जैसे नाकाम देशों में शामिल हो जाते हैं।
डॉ. ब्रह्मदीप अलूने। भौगोलिक सरहदें संस्कृति-सभ्यता को नष्ट नहीं कर सकतीं। जो राष्ट्र अपनी जड़ों को भूलने का प्रयास करते हैं वे पाकिस्तान जैसे नाकाम देशों में शामिल हो जाते हैं और जो अपने अतीत को सहेजते हैं वे भारत और बांग्लादेश जैसे सफल बनने की राह पर होते हैं। बांग्लादेश दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है। बीते दशक में बांग्लादेश ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर आर्थिक प्रगति की है, वहीं धार्मिक नीति को समावेशी विकास व सामाजिक न्याय से संबद्ध कर अल्पसंख्यकों को आगे बढ़ने के व्यापक अवसर दिए हैं। दरअसल इस साल दुर्गा पूजा के अवसर पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ढाका में स्थित प्रसिद्ध ढाकेश्वरी मंदिर को करीब 50 करोड़ टका की कीमत की जमीन देने की घोषणा कर यह संदेश दिया कि तरक्की और स्थायित्व के लिए सभी का सर्वागीण विकास होना चाहिए। प्रधानमंत्री शेख हसीना के अनुसार समानता, सौहार्दता और परस्पर धार्मिक सद्भाव से ही देश मजबूत हो रहा है और सफलता की ओर बढ़ रहा है।
भरोसा जीतने का प्रयास
इस्लामिक राष्ट्र होने के बावजूद बांग्लादेश में हिंदुओं का भरोसा जीतने का सरकार का प्रयास जारी है और मौजूदा सरकार ने इस बार देशभर में 30 हजार से ज्यादा दुर्गा पूजा पंडालों में पूजा उत्सव के शांति प्रिय आयोजन सुनिश्चित कर यह संदेश देने की कोशिश भी की है कि धर्म किसी का भी व्यक्तिगत अधिकार है, लेकिन त्योहार का संबंध सबसे होता है। भारतीय उपमहाद्वीप में बहुसंस्कृतिवाद आचरण और व्यवहार में रहा है और बांग्लादेश ने इसे अपनी नीतियों में लागू करने का प्रयास किया है। बांग्लादेश की मौजूदा अवामी लीग सरकार धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बढ़ावा देती रही है और उसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। कुछ सालों पहले तक दुनिया के पिछड़े देशों की सूची में शामिल बांग्लादेश की जीडीपी इस समय बढ़कर 7.86 प्रतिशत तक पहुंच गई है। आने वाले साल में यह आठ प्रतिशत तक होने की उम्मीद है।
अर्थव्यवस्था में मजबूती
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में इस मजबूती के लिए वहां पर कृषि का योगदान और महिलाओं के कौशल विकास की अहम भूमिका है। बांग्लादेश के योजना मंत्री मुस्तफा कमाल इसे स्वीकार करते हुए दावा करते हैं कि महिला सशक्तिकरण की योजनाओं से ही उनके देश का कायाकल्प हो रहा है। वर्ष 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर अस्तित्व में आया बांग्लादेश धार्मिक कट्टरता से अभिशप्त रहा है। भारत के सहयोग से बांग्लादेश को पाकिस्तान के अत्याचार से मुक्ति तो मिल गई, लेकिन वह अव्यवस्थाओं से जूझता रहा। बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद वहां के संविधान में राज्य के एक सिद्धांत के रूप में धर्मनिरपेक्षता को मान्यता दी गई थी, लेकिन 1977 में उसे भी औपचारिक रूप से संविधान से हटा दिया गया।
इरशाद का तख्तापलट
1988 में बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति इरशाद ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए देश को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर इसे सरकारी तंत्र का हिस्सा बनाने की भी चेष्टा की जिसमें रविवार की जगह शुक्रवार का अवकाश और हर समारोह में कुरान का पाठ अनिवार्य करने जैसे कदम शामिल रहे। इस बीच इरशाद का तख्तापलट तो हो गया, लेकिन कट्टरपंथी ताकतें भी मजबूती से स्थापित हो गईं। बंगालियों के उत्पीड़न में बढ़-चढ़ कर भाग लेने वाले जमात ए इस्लामी का सामाजिक के बाद राजनीतिक दल के रूप में प्रभुत्व से आतंक का नया ताना बाना तैयार होने लगा और राजनीतिक व सामाजिक अस्थिरता तेजी से बढ़ी जिससे बांग्लादेश का आम नागरिक बदहाली और बेरोजगारी से जूझने लगा।
महिलाओं की दशा
इन चुनौतियों के बीच बांग्लादेश के एक अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस ने अपने देश को बदहाली से उबारने के लिए महिलाओं की दशा सुधारने की ठानी और एक ऐसे बैंक का खाका तैयार किया जिसकी पहुंच हर जरूरतमंद के दरवाजे तक हो। वर्ष 1976 में प्रोफेसर यूनुस ने चटगांव विश्वविद्यालय के सहयोग से प्रयोग के तौर पर कुछ गांवों में इस योजना को लागू किया। लोगों में जागरुकता बढ़ी और इस बैंक की मदद से स्वयं सहायता समूहों ने स्वरोजगार का रास्ता अपनाना शुरू किया। बैंक की सफलता को देखते हुए बांग्लादेश सरकार से वर्ष 1983 में इसे कानूनी तौर पर बैंक के रूप में मान्यता मिल गई। इस बैंक की योजना बुनियादी स्तर पर बेहद सफल रही है।
प्रगति ने पकड़ी रफ्तार
महिलाओं को स्वरोजगार मिलने से देश की प्रगति ने रफ्तार पकड़ी है और अब यह मजबूती से अपने कदम आगे बढ़ा रही है। मोहम्मद यूनुस और ग्रामीण बैंक को सामाजिक और लोकतांत्रिक विकास में योगदान के लिए वर्ष 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। बांग्लादेश की आबादी करीब 15 करोड़ है। बीते दिनों संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बताया कि बांग्लादेश में हिंदुआ की आबादी बढ़ कर 10.7 फीसद तक पहुंच चुकी है। कई मुश्किल चुनौतियों का सामना करता यह देश अपनी जिजीविषा और उदार धार्मिक मूल्यों की बदौलत तेजी से प्रगति कर रहा है। तोड़ दिए गए मंदिरों का जीर्णोद्धार हो या सुप्रीम कोर्ट का पहला हिंदू मुख्य न्यायाधीश एसके सिन्हा को बनाना, मौजूदा सरकार उदार नीतियों को बढ़ावा दे रही है। कट्टरपंथी ताकतों पर नकेल कसने जैसे कड़े कदम भी इस सरकार ने उठाए हैं।
भारत में जीवन प्रत्याशा
इस समय भारत में जीवन प्रत्याशा 68.3 साल है जबकि बांग्लादेश में यह 72 साल है। बांग्लादेश रेडीमेड कपड़ों के निर्यात का बड़ा केंद्र बन गया है। चीन के बाद अमेरिका और यूरोप में सबसे अधिक रेडीमेड कपड़ों की सप्लाई बांग्लादेश ही करता है। यहां की 5,000 से भी ज्यादा गारमेंट फैक्टियों की रफ्तार तेज है और 40 लाख से ज्यादा लोगों को इससे रोजगार मिला है। मछलीपालन यहां एक प्रमुख व्यवसाय है। सरकार ने समुद्री संसाधनों के विकास के लिए खास कार्यालय स्थापित किया है जो बंगाल की खाड़ी के जल क्षेत्र में मत्स्य संसाधन, प्राकृतिक गैस और तेल, पर्यटन संसाधनों के विकास में संलग्न रहेगा। साथ ही इस कार्यालय को जल क्षेत्र में खनिज, भारी धातु और रेडियोधर्मी खनिजों के संसाधनों की खोज करने के लिए भी उन्नत किया जा रहा है। जाहिर है भारतीय उपमहाद्वीप की भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियां बहुसंस्कृतिवाद के लिए मुफीद है। बांग्लादेश ने पाकिस्तान की नाकामियों से सबक लेकर उदार इस्लामिक मूल्यों के बूते बहुसंस्कृतिवाद को स्थापित करने का बेहतर प्रयास किया है और इसके बेहतर परिणाम समूचे दक्षिण एशिया के लिए सुकून देने वाले हैं।
(लेखक विक्रम विश्वविद्यालय सहायक प्राध्यापक है)