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जानें कैसे टाइगर रिजर्व के जानवरों की सुरक्षा करते-करते दो दोस्त बन गए नेचर गाइड

अगर चाह हो तो रास्ते मिल ही जाते हैं। इस बात को चरितार्थ किया है पुष्पेंद्रनाथ द्विवेदी और अशोक सिंह ने जिन्होंने नेचर वॉक को नया रोजगार बनाया। इससे न केवल वे आत्मनिर्भर बने बल्कि क्षेत्र के अन्य लोगों को भी रोजगार उपलब्ध कराया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2020 02:53 PM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2020 03:01 PM (IST)
जानें कैसे टाइगर रिजर्व के जानवरों की सुरक्षा करते-करते दो दोस्त बन गए नेचर गाइड
पर्यटकों के साथ पुष्पेंद्रनाथ द्विवेदी (एकदम दाएं)। नईदुनिया

संजय कुमार शर्मा, जबलपुर। सकारात्मक सोच के साथ चलना शुरू किया जाए और मंजिल की चिंता भी न हो तो हर पड़ाव रोमांचक हो सकता है। यह रोमांच चलने की ताकत भी बढ़ाता है। मध्य प्रदेश के उमरिया में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के युवा वन्य जीव संरक्षणकर्ता पुष्पेंद्रनाथ द्विवेदी और इसी जंगल में बसे ग्राम गाटा के मोटर मैकेनिक अशोक सिंह ऐसे ही रोमांचक पड़ावों को तय करते हुए नेचर गाइड के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं। पुष्पेंद्रनाथ और अशोक ने बांधवगढ़ के मानपुर, धमोखर और खितौली रेंज के करीब 16 गांवों में पर्यटकों को बफर जोन (घने जंगल के बाहर का इलाका) की सैर कराने लगे। आज स्थिति यह है कि तीनों रेंज के 16 गांव में प्रतिदिन 40 से 50 पर्यटकों को ये दोनों युवा सैर करवा रहे हैं।

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पुष्पेंद्रनाथ द्विवेदी बताते हैं कि उन्होंने लगभग 15 साल पहले जंगल में घूमने के अपने शौक के चलते एक संस्था के साथ वन्यजीव संरक्षण का काम शुरू किया था। जंगल में बसे गांव के लोगों को वह जंगल के जानवरों से दूरी बनाकर रखने और उनकी सुरक्षा के लिए जागरूक करने जाते थे। दो साल पहले तक वह अलग-अलग संस्थाओं के साथ जुड़कर इस काम को करते हुए विचार करने लगे कि उन गांवों का भी संरक्षण होना चाहिए जो जंगल की गोद में बसे हुए हैं। साथ ही, उनका अपना और अपने जैसे युवाओं का भी संरक्षण जरूरी है। इस विचार के मन में आते ही जंगल के अंदर बिताए 18 साल किसी फिल्म की तरह उनकी आंखों के सामने नाचने लगते हैं।

तब बनाई नेचर वॉक की योजना : गांवों में जाने के दौरान अशोक सिंह पुष्पेंद्रनाथ के मित्र बन चुके थे। दोनों ने मिलकर विचार किया कि पर्यटकों के आने से सिर्फ होटल संचालकों, जिप्सी संचालकों, गाइड-जिप्सी चालकों और पार्क प्रबंधन को ही फायदा हो रहा है। गांव के लोगों की तो फसलें बर्बाद हो रही हैं और उनकी जान भी खतरे में रहती है। तब उन्होंने नेचर वॉक की योजना बनाई और पिछले एक साल से जंगल से लगे गांव के लोगों तक लाभ पहुंचाने के लिए यहां आने वाले पर्यटकों को पैदल ही गांवों में ले जाने लगे।

ऐसे की तैयारी : जंगल के रास्ते गांव तक पर्यटकों को ले जाने के लिए गाइड, जिप्सी चालक, होटल स्टाफ के जरिये पर्यटकों तक नेचर वॉक की बात पहुंचाना शुरू किया। गांव के चुनिंदा आदिवासियों के घरों में पर्यटकों के रुकने की व्यवस्था के लिए संपर्क किया। गांव की सैर, गांव से लगे जंगल की सैर, बर्ड वॉचिंग, नदी-नालों की सैर, आदिवासियों के निवास की सैर, आदिवासियों के बनाए भोजन की व्यवस्था, आदिवासी नृत्य कर्मा और शैला की प्रस्तुति, आदिवासी स्नैक्स की व्यवस्था सहित कई तरह की पैकेजिंग तैयार की गई और पर्यटकों के लिए प्रस्तुत किया गया।

पर्यटकों की इच्छाओं की पूर्ति : पुष्पेंद्रनाथ और अशोक सिंह का कहना है कि जंगल में पैदल घूमना हर पर्यटक की इच्छा होती है, लेकिन कोर जोन के जंगल में वाहन से नीचे उतरना प्रतिबंधित होता है। इस वजह से पर्यटकों की कई इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं, जबकि बफर जोन के जंगल में पर्यटक जमीन से जुड़ जाता है और जंगल को पूरी तरह से महसूस करता है। नेचर वॉक के दौरान पर्यटकों को आदिवासियों के बीच रुकने, ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था तो मिलती ही है, साथ ही उनकी संस्कृति को समझने का अवसर भी मिलता है, जो उन्हें एक ऐसी अनुभूति देता है जो जंगल सफारी में नहीं होती।

यह तो पड़ाव है : पुष्पेंद्रनाथ द्विवेदी और अशोक सिंह का कहना है कि यह तो पड़ाव है। पता नहीं मंजिल कहां है और कैसी है। फिलहाल पड़ावों को ही सजाना है। बांधवगढ़ के बाद कान्हा और संजय धुबरी टाइगर रिजर्व में भी नेचर वॉक की प्लानिंग है। अमरकंटक और पचमढ़ी में भी इसी काम के लिए स्थानीय लोगों से संपर्क किया जा रहा है। जल्द ही नेचर वॉक की वेबसाइट भी बन रही है। जाहिर है इनकी सफलता जंगल में भी रोजगार के नए मुकाम हासिल कर रही है। ग्रामीणों के जीवन में भी आíथक बहार आ रही है।


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