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38 साल बाद सेना ने किया था रिटायर, बाबा हरभजन सिंह और उन पर आस्था की पूरी कहानी

Baba Harbhajan Singh Mysteryमात्र 22 साल की उम्र में सेना के जवान हरभजन सिंह ग्लेशियर से गिर गए थे उससे उनकी मौत हो गई थी।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 03 Oct 2019 07:18 PM (IST)Updated: Fri, 04 Oct 2019 10:27 AM (IST)
38 साल बाद सेना ने किया था रिटायर, बाबा हरभजन सिंह और उन पर आस्था की पूरी कहानी
38 साल बाद सेना ने किया था रिटायर, बाबा हरभजन सिंह और उन पर आस्था की पूरी कहानी

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Baba Harbhajan Singh Mystery भारतीय सेना में जांबाजों की कभी कमी नहीं रह गई। एक से बढ़कर एक जांबाज भारतीय सेना में रहे जिसकी वजह से बाकी जवानों के हौसले भी बुलंद रहते हैं। सेना में एक ऐसा ही जांबाज जवान शामिल था उसका नाम था सिपाही हरभजन सिंह। मात्र 22 साल की उम्र में ग्लेशियर से गिरने के कारण उनकी जान चली गई थी। बर्फ में दफन हो जाने के बाद भी लगभग 38 साल तक सेना ने उन्हें रिटायर नहीं किया। 38 साल के बाद साल 2006 में उन्हें सेना से अधिकारिक तौर पर रिटायर किया गया। इस दरम्यान उनको प्रमोशन भी दिया गया।

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दिन रात जगकर करते थे रखवाली

दरअसल उन दिनों चीनी सेना डोकलाम के मुद्दे पर लगातार भारतीय सेना को धमकी दे रहा था। चीन भारत को उखाड़ फेंकने की बात कह कर भारतीय सेना के जवानों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा था मगर उनको भारतीय सेना में हरभजन सिंह जैसे जवानों के होने का अंदाजा नहीं था। हरभजन सिंह दिन रात जागकर चीनी सेना की हर हिमाकत पर कड़ी नजर रखते थे। वो सीमा पर होने वाली हर गतिविधि के बारे में भारतीय सेना को पहले ही सतर्क कर देते थे। 

चीनी सेना को बाबा हरभजन के बारे में मालूम

ऐसा नहीं है कि बाबा हरभजन सिंह के बारे में चीन के सैनिकों को नहीं मालूम है। चीन के सैनिकों को भी बाबा हरभजन सिंह के बारे में जानकारी है। पीएलए और भारतीय फौज के बीच जब फ्लैग मीटिंग रखी गई तो बाबा हरभजन के लिए एक कुर्सी खाली रखी गई थी। ऐसे में भारतीय फौज को पूरी आस्था है कि अगर चीन की तरफ से हमला होता है तो बाबा हरभजन सिंह पहले ही उन्हें इस बात की सूचना दे देंगे।

नाथू ला में बाबा हरभजन के नाम से जाने जाते हरभजन

नाथू ला में सिपाही हरभजन सिंह को बाबा हरभजन के नाम से जाना जाता है। हरभजन की जान भी निगरानी के दौरान ही हुई थी, वो घोड़ों पर बैठकर ग्लेशियर के पास निगरानी कर रहे थे, इसी दौरान असंतुलित होने पर वो ग्लेशियर में गिर गए, उसके बाद उनका कुछ पता नहीं चला। सेना की टुकड़ी ने उनको खोजने की कोशिश की मगर कुछ पता नहीं चल पाया।

अविभाजित भारत में हुआ था जन्म

हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) हुआ था। सेना के रिकॉर्ड के मुताबिक हरभजन सिंह 1966 में पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुए। कुछ समय बाद उनकी तैनाती नाथू ला में हुई। 1968 में एक दिन वे खच्चर पर सवार होकर पहाड़ी रास्ते पर जा रहे थे। ड्यूटी के दौरान सिक्किम में एक दुर्घटना का शिकार हो गए और ग्लेशियर में गिरने से उनकी मौत हो गई। उन्हें खोजा गया, लेकिन वे नहीं मिले। सेना के किसी जवान ने यह खबर भी फैला दी कि हरभजन सिंह गायब हो गए हैं। 

सपने में आए और खुद बताया कहां मिलेगा शव

बाबा हरभजन के बारे में एक बात ये भी प्रचलित है कि वो अपने एक फौजी दोस्त के सपने में आए। उन्होंने अपने दोस्त को उनका शव पड़ा होने की जगह के बारे में बताया। बताया जाता है कि हरभजन ने अपने एक फौजी दोस्त प्रीतम सिंह के सपने में आये और खुद बताया कि उनका शव कहां पड़ा है। प्रीतम ने इस बारे में अपने अधिकारियों को जानकारी दी। प्रीतम सिंह के सपने के आधार पर उस जगह पर जाकर हरभजन के शव की तलाश की गई, तब सेना को वहां पर बाबा हरभजन का शव पड़ा मिला। उसके बाद बाबा हरभजन अपने मित्र प्रीतम को सपने में जो भी संदेश देते थे भारतीय सेना उस पर लगातार अमल करती रही।

खुद बताया शव के साथ क्या करना है

सिपाही हरभजन सिंह ने एक बार अपने दोस्त प्रीतम सिंह के सपने में आकर उन्हें ये बताया कि उनके शव के साथ आगे क्या करना है। उन्होंने सपने में निर्देश दिया कि शव का अंतिम संस्कार नाथू ला में ही किया जाए और इस जगह पर उनकी याद में एक मंदिर बनवा दिया जाए। उसके बाद सैनिकों में बाबा हरभजन को लेकर इस कदर आस्था बढ़ी कि उन्होंने एक बंकर को ही मंदिर का रूप दे दिया। बाद में जब उनके चमत्कार बढ़ने लगे और वो जगह विशाल जनसमूह की आस्था का केन्द्र हो गया, उसके बाद उनके लिए एक मंदिर बनाया गया। ये मंदिर गंगटोक में जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे में करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई पर आज भी बना हुआ है।

ट्रेन में टिकट बुक कराकर भेजा जाता था घर

बाबा हरभजन सिंह अपनी मृत्यु के बाद से लगातार ही अपनी ड्यूटी देते आ रहे हैं। इनके लिए उन्हें बाकायदा तनख्वाह भी दी जाती है, उनकी सेना में एक रैंक थी, नियमानुसार उनका प्रमोशन भी किया जाता रहा। यहां तक कि उन्हें कुछ साल पहले तक 2 महीने की छुट्टी पर गांव भी भेजा गया था। इसके लिए ट्रेन में सीट रिजर्व की जाती थी, तीन सैनिकों के साथ उनका सारा सामान उनके गांव भेजा जाता था तथा दो महीने पूरे होने पर फिर वापस सिक्किम लाया जाता था। जिन दो महीने बाबा छुट्टी पर रहते थे उस दरमियान पूरा बॉर्डर हाई अलर्ट पर रहता था क्योंकि उस वक्त सैनिकों को बाबा की मदद नहीं मिल पाती थी। ऐसे में सीमा पर तैनात जवान हाइ अलर्ट पर रहते थे।

बाबा से जुड़ी गहरी आस्था

भारतीय सैनिकों में बाबा हरभजन से काफी आस्था जुड़ी है। भारतीय सेना के जवान वहां पर जरूर अपनी ड्यूटी जाने के दौरान बाबा मंदिर में मत्था टेकने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि बाबा हरभजन सिंह जेलेप दर्रे से लेकर नाथू ला दर्रे तक भारतीय सीमा की रक्षा करते हैं। नाथू ला में बाबा हरभजन की याद में दो स्मृति-स्थल बने हैं। इनमें से एक है ओल्ड बाबा मंदिर जो ओल्ड सिल्क रोड पर बना है जबकि दूसरा न्यू बाबा मंदिर कहलाता है। यह नाथू ला में ही है, लेकिन डोकलाम से नजदीक है। ये न्यू बाबा मंदिर उस डोकलाम से सिर्फ चार किलोमीटर की दूरी पर है। 


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