Move to Jagran APP

Ayodhya Case Verdict 2019: हिंदू और मुस्लिम पक्ष की दलीलों के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर...

Ayodhya Verdict 2019उल्लेखनीय है कि भारतीय कानून में हिंदू देवता (मूर्ति) को न्यायिक व्यक्ति माना जाता है और उसे वही सारे अधिकार प्राप्त होते हैं जो किसी जीवित व्यक्ति को होते हैं

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 08:51 AM (IST)Updated: Sat, 09 Nov 2019 11:57 AM (IST)
Ayodhya Case Verdict 2019: हिंदू और मुस्लिम पक्ष की दलीलों के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर...
Ayodhya Case Verdict 2019: हिंदू और मुस्लिम पक्ष की दलीलों के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर...

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। Ayodhya case Verdict 2019: देश के सबसे बड़े और संवेदनशील मामले में सर्वोच्च न्यायालय में 40 दिन चली लंबी सुनवाई में वकीलों के बीच बहस देवता की परिभाषा से लेकर विवादित संपत्ति के नष्ट हो जाने पर मालिकाना हक के दावे के मायनों तक पहुंची। हिंदू पक्ष की ओर से देश की सबसे बड़ी अदालत में विवादित भूमि को भगवान श्रीराम का जन्मस्थान बताते हुए उस स्थान को लेकर अगाध आस्था की दलीलें दी गईं। सुनवाई के दौरान मांग की गई कि भगवान श्रीराम विराजमान को पूरी जमीन का मालिक घोषित किया जाए।

loksabha election banner

देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष चले इस मुकदमे में भगवान श्रीराम विराजमान की ओर से भी एक मुकदमा था जिसमें भगवान श्रीराम विराजमान के अलावा जन्मस्थान को भी अलग पक्षकार बनाया गया था। मुकदमे पर सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष की ओर से संविधान पीठ के समक्ष यह दावा किया गया था कि जन्मस्थान स्वयं देवता है और उसे न्यायिक व्यक्ति माना जाएगा। उल्लेखनीय है कि भारतीय कानून में हिंदू देवता (मूर्ति) को न्यायिक व्यक्ति माना जाता है और उसे वही सारे अधिकार प्राप्त होते हैं जो किसी जीवित व्यक्ति को होते हैं। इस मुकदमे में मुख्य बहस अयोध्या में जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति मानने के मुद्दे पर थी। जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति मानने के संबंध में हिंदू पक्ष की ओर से पुष्कर, कैलास और संगम आदि पवित्र स्थानों का हवाला दिया गया था।

हिंदू पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं और कानूनविदों की ओर से साक्ष्यों और तर्कों के आधार पर यह साबित करने की कोशिश की गई कि भगवान राम का जन्म ठीक उसी स्थान पर हुआ था जहां भगवान रामलला विराजमान हैं और जो जगह विवादित ढांचे में केंद्रीय गुंबद के नीचे थी।

वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने संविधान

पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान पौराणिक ग्रंथों, धार्मिक पुस्तकों, इतिहास में दर्ज बातों को रखा। अपनी दलीलों के समर्थन में स्कंद पुराण, वाल्मीकि रामायण और विदेशी यात्रियों के वर्णन का हवाला दिया। हिंदू पक्ष की ओर से न्यायालय में यह भी दलील दी गई कि अयोध्या में बहुत सी मस्जिद हैं, मुसलमान इनमें से कहीं पर भी नमाज कर सकते हैं, लेकिन हिंदुओं के आराध्य भगवान श्रीराम के जन्मस्थान को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। हिंदू पक्ष ने अपने दावे को और मजबूती देते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रिपोर्ट पर जोर दिया जिसमें कहा गया है कि विवादित ढांचे के नीचे उत्तर भारत के मंदिरों से मेल खाती विशाल संरचना मिली है।

हिंदू पक्ष की दलीलों के मुख्य बिंदु

  • वह स्थान भगवान राम का जन्मस्थान है। वहां हिंदुओं की अगाध आस्था है। उस पूरी जमीन को राम जन्मभूमि घोषित किया जाए।
  • जन्मस्थान स्वयं में देवता है। उसे न्यायिक व्यक्ति माना जाएगा। बिना किसी मूर्ति के भी स्थान की दिव्यता होती है और उसे देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • जन्मस्थान की महत्ता है और देवता का बंटवारा नहीं हो सकता।
  • कानून की निगाह में भगवान हमेशा नाबालिग होते हैं। उन पर प्रतिकूल कब्जे या मुकदमा दाखिल करने की समयसीमा का कानून लागू नहीं होगा।
  • एएसआइ रिपोर्ट से साबित होता है कि विवादित ढांचे के नीचे मंदिर था जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई।
  • मस्जिद में तोड़े गए मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ।
  • निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि वह भगवान राम का सेवादार है और उसे पूजा प्रबंधन व जमीन पर कब्जे का अधिकार दिया जाए।

मुस्लिम पक्ष के तर्क और मुख्र्य बिंदु

  • हिंदू सिद्ध नहीं कर सके कि ढांचे के गुंबद के नीचे ही भगवान राम का जन्मस्थान है। इसे देवता व न्यायिक व्यक्ति नहीं माना जा सकता।
  • खोदाई में मिली बड़ी दीवार ईदगाह है। एएसआइ की रिपोर्ट या विवादित ढांचे में लगे खंभे पर स्पष्ट तौर पर किसी भी देवता की मूर्ति नहीं मिली है।
  • बाबर संप्रभु शासक था और उसके कार्यों को 500 वर्षों के बाद कोर्ट नहीं परख सकती। मामले को देश के कानून व साक्ष्यों पर तय होना चाहिए।
  • मस्जिद में भी फूल पत्ती के चित्र हो सकते हैं। इस आधार पर मस्जिद को अवैध नहीं कह सकते। न ही वहां की गई नमाज को अवैध ठहरा सकते हैं।
  • स्कंद पुराण, वाल्मीकि रामायण जैसे धर्मशास्त्र को सबूत नहीं माना जा सकता। विदेशी यात्रियों के वृतांत व गैजेटियर सुनी बातों पर आधारित हैं।
  • 1528 में मस्जिद निर्माण के बाद से मुसलमान वहां नमाज करते चले आ रहे हैं, इसलिए उस पर मुसलमानों का हक बनता है।

मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद होने का किया दावा, मांगा जमीन पर मालिकाना हक

  • विवादित जमीन पर मालिकाना हक मिले और पूरी जमीन को मस्जिद घोषित किया जाए।
  • मुस्लिम पक्ष का कहना था कि ढांचे के नीचे भगवान राम का विशाल मंदिर नहीं था और न ही बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया। बाबर ने खाली जगह पर मस्जिद बनवाई थी।
  • एएसआइ रिपोर्ट कमजोर साक्ष्य है उसे मात्र विशेषज्ञों की राय माना जा सकता है, क्योंकि एएसआइ रसायन शास्त्र आदि की तरह निश्चित विज्ञान नहीं जिसे जांचा जा सके।
  • एएसआइ रिपोर्ट में खोदाई में पाए गए खंडहरों को मंदिर कहना गलत है। जिस विशाल संरचना के पाए जाने की बात की गई है वह अलग-अलग काल और अलग-अलग स्तर पर पाई गई हैं। खोदाई में पाई गई विशाल दीवार ईदगाह हो सकती है।

1934 (दंगा हुआ), 1949 (अंदर मूर्ति रखी गई) और 6 दिसंबर 1992 (विवादित ढांचा ढहा दिया गया) में हुए सारे काम गैरकानूनी थे और गैरकानूनी कृत्यों के आधार पर हिंदू उस जगह पर अधिकार का दावा नहीं कर सकते।

हिंदू पक्ष की ओर से इन दिग्गजों ने सुप्रीम कोर्ट में रखे थे ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्य

के. परासरन

पूर्व अटार्नी जनरल परासरन ने पौराणिक तथ्यों के आधार पर मंदिर होने की दलीलें पेश की।

सीएस वैद्यनाथन

एएसआइ की रिपोर्ट की प्रासंगिकता व वैधता के आधार पर पक्ष को सबल किया।

पीएस नरसिम्हा

पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नरसिम्हा ने पुराणों की बात को मजबूती से पेश किया।

रंजीत कुमार

पूर्व सॉलिसिटर जनरल, इन्होंने पूजा का हक मांगने वाले गोपाल सिंह विशारद की ओर से बहस की।  

पीएन मिश्रा

इन्होंने अखिल भारत श्रीराम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से बहस की।

हरिशंकर जैन

अखिल भारत हिंदू महासभा की ओर से मंदिर के पक्ष में दलीलों को पेश किया।

सुशील कुमार जैन

इन्होंने निर्मोही अखाड़ा की ओर से न्यायालय बहस की और मंदिर पर दावा पेश किया।

जयदीप गुप्ता

वरिष्ठ वकील, इन्होंने निर्वाणी अखाड़ा के धर्मदास की ओर से अदालत में बहस की।

मुस्लिम पक्ष के वकील, जिन्होंने मस्जिद के पक्ष में पेश कीं दलील

राजीव धवन

वरिष्ठ अधिवक्ता ने मालिकाना हक के मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से मुख्य बहस की।

जफरयाब जिलानी

इमाम के वेतन, पुताई आदि के सबूत पेश कर वहां मस्जिद होना साबित करने की कोशिश की।

शेखर नाफड़े

रेसजुडीकेटा और एस्टोपल के कानूनी सिद्धांत पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि मालिकाना हक के केस पर कोर्ट अब सुनवाई नहीं कर सकता।

निजामुद्दीन पाशा

मुस्लिम पक्ष की ओर से इन्होंने पवित्र कुरान की आयतों के आधार पर देश की सबसे बड़ी अदालत में इस्लामिक कानून पर बहस की।

मीनाक्षी अरोड़ा

वरिष्ठ अधिवक्ता, मुस्लिम पक्ष की ओर से एएसआइ की रिपोर्ट के खिलाफ बहस की।

यह भी पढ़ें:

Ayodhya cash Vardict 2019: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी बनें रहेंगे दो विकल्प

Ayodhya Case Verdict 2019 : तारीखों के आईने में जानिए अयोध्या मामला, जानिए कब-कब क्या हुआ?


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.