Ayodhya Rammandir : ओरछा में चलता है श्रीराम राजा सरकार का शासन, रात को जाते हैं अयोध्या, जानें पूरी कहानी
मान्यता है कि ज्योति के रूप में भगवान श्रीराम को हनुमान मंदिर ले जाया जाता है जहां से हनुमान जी शयन के लिए भगवान श्रीराम को अयोध्या ले जाते हैं।
मनीष असाटी, टीकमगढ़। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण शुरू होने से देश-दुनिया के साथ मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड की अयोध्या कहे जाने वाले ओरछा में विशेष उल्लास है। इसकी वजह है कि करीब 600 साल पहले यहां भी अयोध्या से आए प्रभु राम के लिए भव्य मंदिर बनवाया गया था। कहते हैं कि भगवान राम स्वयं यहां की महारानी कुंवरि गणेश की गोद में आए थे। हालांकि उनके लिए बनवाए गए भव्य मंदिर में न विराजकर भगवान उनकी रसोई में ही विराज गए थे और मंदिर अभी सूना है। तब से बुंदेलखंड में गूंजता है 'राम के दो निवास खास, दिवस ओरछा रहत, शयन अयोध्या वास।' यानी श्रीराम के दो निवास हैं, दिनभर ओरछा में रहने के बाद शयन के लिए भगवान राम अयोध्या चले जाते हैं। यहां राजा श्रीराम का शासन चलता है।
मंदिर के पुजारी विजय गोस्वामी बताते हैं कि प्रतिदिन रात में ब्यारी (संध्या) की आरती होने के बाद ज्योति निकलती है, जो कीर्तन मंडली के साथ पास ही स्थित पाताली हनुमान मंदिर ले जाई जाती है। मान्यता है कि ज्योति के रूप में भगवान श्रीराम को हनुमान मंदिर ले जाया जाता है, जहां से हनुमान जी शयन के लिए भगवान श्रीराम को अयोध्या ले जाते हैं।
सरयू में छलांग लगाते ही गोद में आ गए थे राम
पौराणिक कथाओं के अनुसार, संवत 1631 में ओरछा स्टेट के शासक मधुकर शाह कृष्ण भक्त तो उनकी रानी कुंवरि गणेश रामभक्त थीं। राजा मधुकर शाह ने एक बार रानी कुंवरि गणेश को वृंदावन चलने का प्रस्ताव दिया पर उन्होंने अयोध्या जाने की जिद की। राजा ने कहा था कि राम सच में हैं तो ओरछा लाकर दिखाओ। महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या गईं। जहां उन्होंने प्रभु राम को प्रकट करने के लिए तप शुरू किया। 21 दिन बाद भी कोई परिणाम नहीं मिलने पर वह सरयू नदी में कूद गईं। जहां भगवान श्रीराम बाल स्वरूप में उनकी गोद में बैठ गए।
भगवान ने ओरछा चलने को लेकर रखीं थी तीन शर्तें
श्रीराम जैसे ही महारानी की गोद में बैठे तो महारानी ने ओरछा चलने की बात कह दी। भगवान ने तीन शर्तें महारानी के समक्ष रखीं। पहली शर्त थी कि ओरछा में जहां बैठ जाऊंगा, वहां से उठूंगा नहीं। दूसरी यह है कि राजा के रूप में विराजमान होने के बाद वहां पर किसी ओर की सत्ता नहीं चलेगी। तीसरी शर्त यह है कि खुद बाल रूप में पैदल पुष्य नक्षत्र में साधु-संतों के साथ चलेंगे।
मंदिर अब भी है सूना
श्रीराम के ओरछा आने की खबर सुन राजा मधुकर शाह ने उन्हें बैठाने के लिए चतुर्भुज मंदिर का भव्य निर्माण कराया था। मंदिर को भव्य रूप दिए जाने की तैयारी के चलते महारानी कुंवरि गणेश की रसोई में भगवान को ठहराया गया था। भगवान श्रीराम की शर्त थी कि वह जहां बैठेंगे, फिर वहां से नहीं उठेंगे। यही कारण है कि उस समय बनवाए गए मंदिर में भगवान नहीं गए। वह आज भी सूना है और भगवान महारानी की रसोई में विराजमान हैं। जहां वर्तमान में अलग मंदिर बनाया गया है।
राजा के रूप में पूजे जाते हैं राम, दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर
ओरछा में रामराजा सरकार का ही शासन चलता है। चार पहर आरती होती है। सशस्त्र सलामी दी जाती है। राज्य शासन द्वारा यहां पर 1-4 की सशस्त्र गार्ड तैनात की गई है। मंदिर परिसर में कमरबंद केवल सलामी देने वाले ही बांधते हैं। इन जवानों को करीब दो लाख रुपए प्रतिमाह वेतन राज्य शासन की ओर से दिया जाता है। ओरछा की चार दीवारी में कोई भी वीवीआइपी हो या प्रधानमंत्री, उन्हें सलामी नहीं दी जाती है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था आधा घंटे इंतजार
31 मार्च 1984 में सातार नदी के तट पर चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ओरछा पहुंची थीं। वह मंदिर में दर्शन करने पहुंची लेकिन दोपहर के 12 बज चुके थे। भगवान को भोग लग रहा था। पुजारी ने पट गिरा दिए थे। अफसरों ने पट खुलवाने की बात कही, लेकिन तत्कालीन क्लर्क लक्ष्मण सिंह गौर ने इंदिरा गांधी को नियमों की जानकारी दी। इसके बाद इंदिरा गांधी करीब 30 मिनट इंतजार करती रहीं।