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Ayodhya Ram Mandir Bhumi Pujan: पढ़ें- RSS के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत का पूरा भाषण

Ayodhya Ram Mandir Bhumi Pujan डॉ. मोहन भागवत ने महंत नृत्यगोपाल सहित उपस्थित सभी संतों को प्रणाम कर अपना संबोधन शुरू किया। पढ़ें- उनका पूरा भाषण।

By Amit SinghEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 06:25 PM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 06:30 PM (IST)
Ayodhya Ram Mandir Bhumi Pujan: पढ़ें- RSS के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत का पूरा भाषण
Ayodhya Ram Mandir Bhumi Pujan: पढ़ें- RSS के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत का पूरा भाषण

श्रद्धेय महंत नृत्यगोपाल जी महाराज सहित उपस्थित सभी संत चरण।

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भारत के आदरणीय और जनप्रिय प्रधानमंत्री जी, उत्तर प्रदेश की मा. राज्यपाल जी, उत्तर प्रदेश के मा. मुख्यमंत्री जी, सभी नागरिक सज्जन माता-भगिनी।

आनंद का क्षण है। बहुत प्रकार से आनंद है। एक संकल्प लिया था और मुझे स्मरण है कि तब के हमारे संघ के सर संघचालक बाला साहब देवरस जी ने, ये बात हमको कदम आगे बढ़ाने से पहले बात याद दिलाई थी कि बहुत लग के 20-30 साल काम करना पड़ेगा। तब कभी ये काम होगा और 20-30 साल हमने किया। 30वें साल के प्रारंभ में हमको संकल्प पूर्ति का आनंद मिल रहा है। प्रयास किये हैं, जी-जान से अनेक लोगों ने बलिदान दिए हैं। वह सूक्ष्म रूप में आज यहां उपस्थित हैं। प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित नहीं हो सकते। ऐसे भी हैं जो हैं, लेकिन यहां आ नहीं सकते। रथ यात्रा का नेतृत्व करने वाले अडवानी जी अपने घर पर बैठकर इस कार्यक्रम को देख रहे होंगे। कितने ही लोग हैं जो आ भी सकते हैं, लेकिन बुलाये नहीं जा सकते, परिस्थिति ऐसी है। लेकिन वो भी अपनी-अपनी जगह कार्यक्रम देख रहे होंगे। पूरे देश में देख रहा हूं, आनंद की लहर है। सदियों की आस पूरी होने का आनंद है। लेकिन सबसे बडा आनंद है, भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिस आत्मविश्वास की आवश्यकता थी और जिस आत्मभान की आवश्यकता थी, उसका सगुण-साकार अधिष्ठान बनने का शुभारंभ आज हो रहा है।

वो अधिष्ठान है आध्यामिक दृष्टि का। 'सिया राममय सब जग जानी'। सारे जगत को अपने में देखने और अपने में जगत को देखने की भारत की दृष्टि, जिसके कारण उसके प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार आज भी विश्व में सबसे अधिक सज्जनता का व्यवहार होता है और उस देश का सामूहिक व्यवहार सबके साथ वसुधैव कुटुम्बकम का होता है। ऐसा स्वभाव और ऐसे अपने कर्तव्य का निर्वाह, व्यवहारिक जगत के माया के दुविधा में से रास्ते निकालते हुए, जितना हो सके सबको साथ लेकर चलने की जो विधि एक बनती है, उसका अधिष्ठान आज यहां पर बन रहा है। परमवैभव संपन्न और सबका कल्याण करने वाला भारत, उसके निर्माण का शुभारंभ आज ऐसे निर्माण के व्यवस्थागत का नेतृत्व जिनके हाथ से है, उनके हाथ से हो रहा है, ये और आनंद की बात है। और इसलिए उन सबका स्मरण होता है, लगता है अशोक जी यहां रहते तो कितना अच्छा होता। महंत परमहंस दास जी आज होते तो कितना अच्छा होता। लेकिन जो इच्छा उसकी है वैसा होता है। लेकिन मेरा विश्वास है जो हैं वो मन से और जो नहीं हैं, वो सूक्ष्म रूप से आज यहां उस आनंद को उठा रहे हैं। उस आनंद को शतगुणित भी कर रहे हैं। लेकिन इस आनंद में एक स्फुरण है। एक उत्साह है। हम कर सकते हैं, हमको करना है, वही करना है।

'एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः

स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः'

जीवन जीने जीने की शिक्षा देनी है। अभी कोरोना का दौर चल रहा है, सारा विश्व अंर्तमुख हो गया है। विचार कर रहा है, कहां गलती हुई, कैसे रास्ता निकले? दो रास्तों को देख लिया, तीसरा रास्ता कोई है क्या? हां है। हमारे पास है। हम दे सकते हैं, देने का काम हमको करना है। उसकी तैयारी करने के संकल्प करने का भी आज दिवस है। उसके लिए आवश्यक तप पुरुषार्थ हमने किया है। प्रभु श्रीराम के चरित्र से आज तक हम देखेंगे तो सारा पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरवृत्ति हमारे रग-रग में है, उसको हमने खोया नहीं है, वो हमारे पास है। हम शुरू करें हो जाएगा। इस प्रकार का विश्वास, प्ररेणा, स्फुरण आज हमको इस दिन से मिलता है। सारे भारतवासियों को मिलता है, कोई भी अपवाद नहीं है, क्योंकि 'सबके राम हैं और सबमें राम है'।

और इसलिए अब यहां भव्य मंदिर बनेगा, सारी प्रक्रिया शुरू हो गई है। दायित्व बांटे गए हैं, जिनका जो काम है वो करेंगे। उस समय हम सब लोगों को क्या काम रहेगा, हम सब लोगों को अपने मन की अयोध्या को सजाना संवारना है। इस भव्य कार्य के लिए प्रभु श्रीराम जिस धर्म के विग्रह माने जाते हैं, वह जोड़ने वाला। धारण करने वाला। ऊपर उठाने वाला। सबकी उन्नति करने वाला धर्म, सबको अपना मानने वाला धर्म, उसकी ध्वजा को अपने कंधे पर लेकर संपूर्ण विश्व को सुख-शांति देने वाला भारत हम खड़ा कर सकें, इसलिए हमको अपने मन की अयोध्या बनाना है। यहां पर जैसे-जैसे मंदिर बनेगा, वो अयोध्या भी बनती चली जानी चाहिए और इस मंदिर के पूर्ण होने से पहले हमारा मन मंदिर बनकर तैयार रहना चाहिए। इसकी आवश्यकता है और वह मन मंदिर कैसा रहेगा, बताया है -

"काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा॥

जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया॥

जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई।प्रिय परिवार सदन सुखदाई॥

सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई॥"

हमारा हृदय भी राम का बसेरा होना चाहिए। इसलिए सभी दोषों से, विकारों से, द्वेषों से, शत्रुता से मुक्त, दुनिया की माया कैसी भी हो उसमें सब प्रकार के व्यवहार करने के लिए समर्थ और हृदय से सब प्रकार के भेदों को तिलांजलि देकर, केवल अपने देशवासी ही क्या, संपूर्ण जगत को अपनाने की क्षमता रखने वाला इस देश का व्यक्ति और इस देश का समाज, यह गढ़ने का काम है। उस गढ़ने के काम का एक सगुण साकार प्रतीक, जो सदैव प्रेरणा देता रहेगा वो यहां खड़ा होने वाला है। भव्य राम मंदिर बनाने का काम भारतवर्ष के लाखों मंदिरों में और एक मंदिर बनाने का काम नहीं है। उन सारे मंदिरों में मूर्तियों का जो आशय है, उस आशय के पुनर्प्रकटीकरण और उसका पुनर्स्थापन करने का शुभारंभ आज यहां बहुत ही समर्थ हाथों से हुआ है। इस मंगल अवसर पर, इस सब आनंद में मैं आप सबका अभिनंदन करता हूं। और जो मेरे मन में इस समय विचार आए उसको आपके चिंतन के लिए आपके सामने रखता हुआ, आपसे विदा लेता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद


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