Chattisgarh: अयोध्या में कारसेवा के दौरान लगी थी गोली, आज भीख मांगकर कर रहे गुजारा
राम मंदिर निर्माण में शामिल कुछ कारसेवकों को राजनीतिक पहचान मिली तो कुछ कारसेवक गुमनामी के अधर में खो गए। इन गुमनाम कारसेवकों में छत्तीसगढ़ के गेसराम चौहान भी शामिल हैं।
कोरबा,जेएनएन। अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि पर राम मंदिर के पुनरनिर्मांण के लिए साल 1990 में देशभर से राम भक्त हिन्दु कारसेवक के रूप में पहुंचे थे। इन कारसेवकों में छत्तीसगढ़ के कोरबा के नजदीकी गांव के रहने वाले गेससिंह भी शामिल थे।
अयोध्या में इस दौरान स्थिति काफी तनावपूर्ण थी। पुलिस प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसा रही थी और इसी दौरान गेसराम को पेट में एक गोली लगी और वे कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे। ईलाज के बाद उनकी जान बच गई, लेकिन आज गेसराम गुमनामी की जिंदगी गुजार रहे हैं। उनकी मजबूरी का आलम यह है कि वो भीख मांगकर किसी तरह अपना गुजर-बलर कर रहे हैं।
1992 की कारसेवा में भी शामिल हुए
दरसअल, राम मंदिर निर्माण में शामिल कुछ कारसेवकों को राजनीतिक पहचान मिली तो कुछ कारसेवक गुमनामी के अधर में खो गए। इन गुमनाम कारसेवकों में छत्तीसगढ़ के गेसराम चौहान भी शामिल हैं। वो कोरबा जिले की करतला तहसील के ग्राम चचिया के मूलनिवासी है। 1990 की कारसेवा के दौरान वे छत्तीसगढ़ के एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें पेट में गोली लगी। वे 1992 की कारसेवा में भी शामिल हुए थे।
कोरबा जिले से भी एक जत्था अयोध्या गया
1990 की कारसेवा में देश के चप्पे-चप्पे से रामभक्त अयोध्या पहुंचे थे। इस दौरान कारसेवा के लिए छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले से भी एक जत्था अयोध्या गया था। छत्तीसगढ़ के जत्थे में जिले की करतला तहसील के गांव चचिया निवासी गेसराम चौहान भी शामिल थे।
कारसेवकों पर फायरिंग में गेसराम को गोली लगी
कारसेवकों पर हुई फायरिंग में गेसराम को गोली लगी थी। वे छत्तीसगढ़ के इकलौते ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हें कारसेवा के दौरान गोली लगी। जब गेसराम को पता चला कि राममंदिर मामले में सुप्रीमकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है और जल्द ही अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्मांण होने वाला है, तो गेसरम भावुक होकर रो पड़े।
भाईयों ने संपत्ती हड़प ली
गेसराम ने बातचीत के दौरान अपने अतीत के बारे में बताया कि उनके पिता एक किसान थे। उनके पिता की मौत के बाद भाईयों ने संपत्ती हड़प ली और उन्हें इससे बेदखल कर दिया।
धर्म और समाज के लिए जीवन समर्पित
इसके बाद गेसराम ने धर्म और समाज के लिए अपने जीवन को समर्पित करने का फैसला किया और कारसेवक बनगए। कार सेवा के दौरान पेट में लगी गोली से उनका शरीर बिल्कुल कमजोर हो गया था। गेसराम के सामने पेट भरने का सवाल था और इसी वजह से वो भीख मांगने को मजबूर हो गए। गेसराम के दो बेटे हैं जो मजदूरी कर अपने परिवार का गुजर बसर करते हैं।
बार-बार पूछते रहे कि अब तो रामलला का मंदिर सचमुच बनेगा
गेसराम अब अपना गुजर बसर सिमकेंदा करतला के आसपास के गांव में भीख मांग कर रहे हैं। जब उन्हें बताया गया कि जिस राममंदिर के लिए आपने गोली खाई थी, वह अब बनने वाला है। तब 65 साल के हो चुके गेसराम अवाक हो गए। उनके हाथ से लाठी, भिक्षापात्र व झोला गिर गया। इसे सुनकर वे भावुक हो गए और रोने लगे। बार-बार पूछते रहे कि अब तो रामलला का मंदिर सचमुच बनेगा।
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