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Ayodhya Case: कानून की निगाह में रामलला हैं नाबालिग, भगवान को आम नागरिक जैसे अधिकार

हिन्दू पक्ष की ओर से यही दलील दी गई है कि देवता पर समयसीमा का सिद्धांत लागू नहीं होगा और न ही देवता के खिलाफ प्रतिकूल कब्जे का दावा किया जा सकता।

By Manish PandeyEdited By: Published: Sun, 06 Oct 2019 07:11 PM (IST)Updated: Sun, 06 Oct 2019 09:27 PM (IST)
Ayodhya Case: कानून की निगाह में रामलला हैं नाबालिग, भगवान को आम नागरिक जैसे अधिकार
Ayodhya Case: कानून की निगाह में रामलला हैं नाबालिग, भगवान को आम नागरिक जैसे अधिकार

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुकदमें की सुनवाई अंतिम दौर में है। इस मुकदमें में अन्य पक्षों के अलावा रामलला विराजमान और जन्मस्थान की ओर से अलग से मुकदमा दाखिल कर जन्मभूमि पर मालिकाना हक का दावा दिया गया है। मुकदमें में दोनों को अलग अलग देवता और न्यायिक व्यक्ति बताते हुए निकट मित्र की ओर से मुकदमा किया गया है। हिन्दू पक्ष का पूरा जोर दोनों को देवता और न्यायिक व्यक्ति साबित करने पर है जबकि मुस्लिम पक्ष जन्मभूमि को देवता और अलग से न्यायिक व्यक्ति मानने का विरोध कर रहा है। राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील इस मुकदमें में दोनों ओर से किये जा रहे प्रतिस्पर्धी दावे को देखते हुए देवता के बारे में कानूनी स्थिति पर विचार करना अहम हो जाता है।

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कानून की निगाह में मूर्ति यानी हिन्दू देवता न्यायिक व्यक्ति माना जाता है और उसे वही सारे अधिकार प्राप्त होते है जो कि किसी जीवित व्यक्ति के होते हैं। लेकिन देवता के संबंध में सबसे बड़ी खासियत यह भी है कि कानून की निगाह में देवता हमेशा नाबालिग होते हैं। देवता के नाबालिग होने के कारण उनकी संपत्ति को लेकर सामान्य बालिग व्यक्ति की संपत्ति पर लागू नियम से भिन्न नियम लागू होते हैं।

कानून की नजर में देवता नाबालिग

सुप्रीम कोर्ट के बहुत से फैसलों के बाद कानून का यह तय सिद्धांत है कि देवता नाबालिग ही माने जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिस तरह बच्चा अपने बारे में स्वयं निर्णय नहीं कर सकता उसी तरह देवता भी स्वयं अपने हित नहीं देख सकते उनकी जगह कोई और उनके हित देखता है जैसे निकट मित्र। कानून कहता है कि किसी भी समझौते के तहत नाबालिग को संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता और ऐसा समझौता नाबालिग पर लागू नहीं होता।

देवता पर समयसीमा का सिद्धांत लागू नहीं

इस मुकदमें में हिन्दू पक्ष की ओर से यही दलील दी गई है कि देवता पर समयसीमा का सिद्धांत लागू नहीं होगा और न ही देवता के खिलाफ प्रतिकूल कब्जे का दावा किया जा सकता। उनका कहना है कि जब देवता को हटाया नहीं जा सकता तो फिर प्रतिकूल कब्जे का दावा कैसे हो सकता है। हालांकि मुस्लिम पक्ष की दलील है कि देवता की संपत्ति पर भी समयसीमा और प्रतिकूल कब्जे का सिद्दांत लागू होगा, लेकिन पेच हिन्दू पक्ष की ओर से जन्मस्थान को ही देवता और न्यायिक व्यक्ति बताए जाने को लेकर है।

जन्मस्थान स्वयं में देवता 

हिन्दू पक्ष का कहना है कि यहां बात देवता की संपत्ति की नहीं हो रही है बल्कि देवता की हो रही है। जन्मस्थान स्वयं में देवता है, देवता पर कोई कैसे कब्जा या प्रतिकूल कब्जे का दावा कर सकता है। हिन्दू पक्ष की ओर से जन्मस्थान को देवता और न्यायिक व्यक्ति का दर्जा दिये जाने से यह मुकदमा विशिष्ट स्थिति में आ गया है। बहस के दौरान मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि जानबूझकर स्थान को देवता और न्यायिक व्यक्ति बनाया गया है ताकि बाकी सभी पक्षों का जमीन पर अधिकार समाप्त हो जाएं और मामले में समयसीमा और प्रतिकूल कब्जे का सिद्धांत लागू न हो।

जन्मस्थान देवता और न्यायिक व्यक्ति

बताते चलें कि इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन में से दो न्यायाधीशों ने माना है कि जन्मस्थान देवता और न्यायिक व्यक्ति है। देवता की मूर्ति यानी रामलला को नाबालिग और न्यायिक व्यक्ति तीनों न्यायाधीशों ने माना है क्योंकि इस बारे में कानून तय है। अब सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि वह जन्मस्थान को अलग से न्यायिक व्यक्ति और देवता मानता है कि नहीं और अगर मानता है तो उसके क्या अधिकार होंगे।

किरायेदारी का हक नहीं

देवता की संपत्ति और अधिकार पर राजस्थान हाईकोर्ट का जगन्नाथ बनाम बोर्ड आफ रेवेन्यू का फैसला देखा जा सकता है जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि मामले से जुड़ी जमीन देवता की है जो कि नाबालिग और न्यायिक व्यक्ति हैं, कानून के मुताबिक कोई भी व्यक्ति चाहें कितना भी समय क्यों न बीत गया हो देवता के खिलाफ उस जमीन पर किरायेदारी या उप किरायेदारी का हक प्राप्त नहीं कर सकता।


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