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भीषण गर्मी में ठंडक का एहसास, कसौली पर्यटन का ‘शीतल’ पड़ाव

हिमाचल प्रदेश का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है सोलन जिले में स्थित कसौली। नायाब कुदरती नजारों के साथ यहां रोमांचक खेलों का लुत्फ भी उठाया जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 07 Jun 2018 04:13 PM (IST)Updated: Thu, 07 Jun 2018 04:55 PM (IST)
भीषण गर्मी में ठंडक का एहसास, कसौली पर्यटन का ‘शीतल’ पड़ाव
भीषण गर्मी में ठंडक का एहसास, कसौली पर्यटन का ‘शीतल’ पड़ाव

[जागरण स्पेशल]। मैदानी इलाकों में जहां एक ओर पारा अपने चरम पर है तो वहीं दूसरी ओर भीषण गर्मी से बचने के लिए पहाड़ की ओर जाने की सरगर्मियां भी तेज हो गई हैं। देश में ऐसे हिल स्टेशनों की कमी नहीं, जो आग बरसाते इस मौसम में आदर्श बने हुए हैं। ऐसा ही कसौली शहर है, जिसे हाल ही में स्वच्छता के लिए विशेष तमगा भी मिला है। इसके तहत इसे देशभर में बाह्य शौचमुक्त छावनी क्षेत्र होने का सम्मान मिला। यहां कई विख्यात संस्थान और पर्यटन स्थल हैं। सर हेनरी लॉरेंस द्वारा स्थापित यहां के लॉरेंस स्कूल, सनावर की दुनिया भर में पहचान है।

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वर्ष 1847 में कसौली के कैंट में रहने वाले लॉरेंस ने युद्ध में शहीद होने वाले सैनिकों के बच्चों के लिए यह स्कूल बनवाया था। यहां से परीक्षित साहनी, संजय दत्त, सैफ अली खान, राहुल रॉय, पूजा बेदी जैसे सितारों और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुला, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी, भूटान की क्वीन जेटसन पेमा, पूर्व नौसेना प्रमुख विष्णु भागवत आदि ने पढ़ाई की है। हिमाचल प्रदेश का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है सोलन जिले में स्थित कसौली। नायाब कुदरती नजारों के साथ यहां रोमांचक खेलों का लुत्फ भी उठाया जा सकता है। स्वच्छता के लिहाज से भी अव्वल है यह शहर। इस बार चलते हैं हर लिहाज से खूबसूरत और कूलकूल कसौली के सुहाने सफर पर...

सुहावने मौसम का जादू
कसौली अपने शांत-स्वच्छ वातावरण के लिए टाइम मैगजीन द्वारा एशिया के बेस्ट हिल स्टेशन का खिताब भी पा चुका है। यहां आप पल-पल बदलते मौसम के मिजाज का रोमांचक एहसास कर सकते हैं। देखते ही देखते हवा का रुख बदल जाता है और बादलों का समूह क्षण भर में ही सूरज की किरणों के नीचे आकर बरसने लगता है। फिर थोड़ी ही देर में मौसम साफ और सुहावना हो जाता है। इस लुकाछिपी के बीच यहां रोमांचकारी रोप-वे और फिर पहाड़ों पर ट्रैकिंग का लुत्फ उठाने का भी अलग ही आनंद है।

यहां वर्ष भर सैलानियों की आवाजाही लगी रहती है, पर अप्रैल से जून के बीच पर्यटकों का जमघट सा लग जाता है। जुलाई में मानसून आने के बाद मौसम और खुशगवार हो जाता है। उस वक्त भी लोग इस नजारे को गंवाना नहीं चाहते। दरअसल, कसौली बान, चीड़, चशनेट, देवदार के पेड़ों आदि के अलावा जीवों की लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए भी विख्यात है। बरसाती मौसम में खिलने वाले फूल भी कसौली को अलग और खुशनुमा रंग से भर देते हैं।

कुसुमावली से कसौली तक
ऊंची चोटी पर बसे कसौली को दो सदी पहले कुसुमावली के नाम से जाना जाता था। यह नाम यहां मिलने वाले तरह-तरह के फूलों व रंगबिंरगी वनस्पतियों को देखते हुए रखा गया था। ब्रिटिश काल में जब यहां छावनी परिषद बनी तो अंग्रेजों ने कुसुमावली को कुसोवली कहना शुरू कर दिया। कालांतर में इसे कसौली कहा जाने लगा।

रेबीज वैक्सीन की खोज
कसौली में न केवल कई मशहूर स्कूल हैं, बल्कि यहां स्थापित है प्रसिद्ध संस्थान सीआरआइ। पहले वर्ष 1900 में इस संस्थान ने पास्चर अनुसंधान संस्थान के नाम से काम करना शुरू किया था। 3 मई, 1905 को इसे सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआइ) के रूप में स्थापित किया गया। पागल कुत्तों के काटे जाने पर लगने वाली एंटी रेबीज वैक्सीन की खोज उसी साल देश में पहली बार संस्थान के पहले निदेशक डॉ. डेविड सैंपल ने की थी। बैक्टीरियल वैक्सीन, एंटी सीरम, टायफाइड वैक्सीन, येलो फीवर के वैक्सीन के अलावा यह संस्थान दक्षिण-पूर्व एशिया का एकमात्र ऐसा संस्थान है, जहां दिमागी बुखार निरोधक टीके तैयार किए जाते हैं। डीपीटी ग्रुप ऑफ वैक्सीन भी यहीं बनाई जाती है। देश में बनने वाली व विदेश से आयात होने वाली वैक्सीन की गुणवत्ता जांचने के लिए सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेटरी भी यहीं स्थापित है।

मशहूर हस्तियों का बसेरा
कसौली बॉलीवुड की भी खास पसंद रहा है। शशि कपूर की ‘शेक्सपीयर वाला’, शाह रुख खान की ‘माया मेमसाब’, जॉन अब्राहम की ‘मद्रास कैफे’ जैसी फिल्मों और कई पंजाबी व बांग्ला फिल्मों की शूटिंग यहां हो चुकी है। कई बड़ी हस्तियों ने इसे अपना दूसरा घर बना लिया। लेखक खुशवंत सिंह, धावक मिल्खा सिंह, हॉकी टीम के पूर्व कप्तान अजीत पाल सिंह, अभिनेता राहुल बोस ने अपने आशियाने यहां बनाए हैं। मोहन राकेश, निर्मल वर्मा, उपेंद्रनाथ अश्क, गुलशन नंदा, कमलेश्वर जैसे जाने-माने लेखकों का घर भी यहां है। राजेंद्र यादव साहित्य सृजन के लिए यहां प्रवास करते रहे। मशहूर चित्रकार अमृता शेरगिल के भतीजे और कलाकार विवान सुंदरम ने यहां आट्र्स सेंटर बनाया है, जहां सेमिनार व कला प्रदर्शनियां नियमित रूप से आयोजित होती रहती हैं।

पैदल चलने का लुत्फ
हर तरफ हरियाली, कुदरती नजारे और सुकून का मंजर। यही वजह है कि पर्यटक पहाड़ी इलाकों में पैदल चलने का लुत्फ उठाते हैं। आप यहां भी यह नजारा देख सकते हैं। माउंट वॉक, गिलबर्ट ट्रेल व खुशवंत सिंह ट्रेल पर सुबह व शाम यह नजारा आमतौर पर दिख जाता है।

मंकी प्वाइंट हिल से निहारें कसौली की वादियां
कसौली का सबसे ऊंचा मंकी प्वाइंट (तकरीबन 6322 फीट) यहां की सर्वाधिक लोकप्रिय जगह है। इसका पौराणिक महत्व भी है। मंकी प्वाइंट हिल पर संजीवनी हनुमान मंदिर बना है। जिस पहाड़ी पर मंदिर बना है, उसका आकार बायें पांव की तरह है। ऐसा माना जाता है कि जब लक्ष्मण के मूर्छित होने पर हनुमान जी हिमालय पर संजीवनी बूटी लेने गए थे, तो जाते समय उनका बायां पांव यहां लगा था। इस प्वाइंट पर स्थित हनुमान मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है। यहां से कसौली की वादियों को निहार सकते हैं। कसौली से एक ओर चंडीगढ़ सहित मैदानी क्षेत्र तो दूसरी ओर शिमला, चैल, धौलाधार की बर्फ से ढकी पहाड़ियां देखी जा सकती हैं।

वायुसेना स्टेशन की सैर
यहां वायुसेना का स्टेशन देखने दुनियाभर से लोग पहुंचते हैं। सुरक्षा कारणों से इस क्षेत्र यानी वायुसेना स्टेशन परिसर में कैमरा, मोबाइल सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ले जाने पर पूर्ण प्रतिबंध है। यहां बिना एंट्री पास के किसी को भी जाने की अनुमति नहीं मिलती। आप बिना इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के भी अंदर जाकर समस्त क्षेत्र में पर्यटक हरी-भरी वादियों की सैर कर सकते हैं।

लकड़ी के उत्पादों की खरीदारी
कसौली बाजार में लकड़ी से बने कई आकर्षक उत्पाद मिलते हैं, जिनकी खरीदारी आपको लुभाएगी। लकड़ी से बने खिलौने, रसोई का सामान, मसाज के उपकरण, साज -सज्जा के अनेक उपयोगी उपकरण यहां उपलब्ध होते हैं। कसौली के हेरिटेज मार्ग पर इस तरह की कई दुकानें हैं। यहां पर्यटक अक्सर गर्म वस्त्रों और सर्दियों के सामान की खरीददारी करते भी नजर आते हैं। यहां खादी भंडार में भी कई तरह के उत्पाद हिमाचली संस्कृति से सराबोर मिलेंगे। यहां से अचार, जैम, धूप, अगरबत्ती भी खरीद सकते हैं।

आसपास के आकर्षण

दुनिया की डरावनी सुरंगों में शामिल बड़ोग रेलवे सुरंग
कसौली से थोड़ी दूरी पर स्थित है बड़ोग रेलवे स्टेशन। यह कसौली से करीब 20 किलोमीटर पर है। यहां एक विशाल पहाड़ के नीचे से 1145 मीटर लंबी और दुनिया की डरावनी सुरंगों में शामिल बड़ोग रेलवे सुरंग है। लोग इस सुरंग को पार कर गौरवान्वित महसूस करते हैं। ऊंचे पहाड़ के नीचे से निकलने वाली इस सुरंग का महत्व इसलिए भी अधिक बढ़ा है, क्योंकि इसे बनाने वाले इंजीनियर कर्नल बड़ोग ने इसी सुरंग के बीच खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। इसका वर्णन आज भी सुरंग के एक मुहाने पर अंकित है। सुरंग का एक सिरा गलत निकल आया था, जिसके लिए एक रुपये का जुर्माना अंग्रेजी सरकार ने कर्नल बड़ोग पर लगाया था, जिसे वह सहन नहीं कर सके थे। उन्होंने पहले अपने कुत्ते को गोली मारी, फिर अपने सिर में गोली मारकर जान दे दी। वर्तमान में इस पहाड़ी पर दो सुरंगें हैं। इनमें एक अधूरी है तो एक से होकर कालका-शिमला रेलवे का सफर चलता है। गलत बनी सुरंग के दोनों हिस्से आज भी पहाड़ पर मौजूद हैं।

परवाणू में रोपवे ट्रॉली
कसौली से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित परवाणू में रोपवे ट्रॉली के रोमांचक सफर का आनंद उठाया जा सकता है। यहां टीटीआर यानी टिंबर ट्रेल रिजॉर्ट के नाम से मशहूर स्थल रोमांचक सफर के लिए विख्यात है। दिल्ली, चंडीगढ़, कालका या अन्य किसी भी मैदानी क्षेत्र के लोग जब कसौली की तरफ बढ़ते हैं तो शुरुआत में ही यह पर्यटक स्थल मौजूद है। यहां टीटीआर प्वाइंट से टीटीआर हाइट्स होटल तक ट्रॉली के सहारे सफर किया जाता है। जमीन से ऊपर हवा में उड़ने वाली इस ट्रॉली का सफर बेहद रोमांचक है। ऊपर तक पहुंचने में करीब 20 मिनट का वक्त लगता है।

पुराने राजमहलों का वैभवपूर्ण दर्शन

कसौली की तीन दिशाओं में 20 से 30 किलोमीटर के दायरे में कोटबेजा रियासत, कुठाड़ रियासत व पट्टा महलोग रियासत के सैकड़ों वर्ष पुराने राजमहल हैं, जिनकी भव्यता के निशान आज भी मौजूद है। ये भी दर्शनीय स्थल हैं।

डगशाई छावनी
कसौली से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर डगशाई छावनी है, जहां अंग्रेजों के जमाने की टी-नुमा जेलहै। यह अपने अत्याचारों के लिए कुख्यात रही है। यह स्थल पहले दाग-ए-शाही नाम से विख्यात था। समुद्र तल से 6078 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित इस जेल की 100 से अधिक कोठरियों को देखकर आज भी रूह कांप जाती है। डगशाई नाम भी ऐतिहासिक कारणों से पड़ा। पहले यहां कैदियों के माथे पर लोहे की सलाख गर्म कर निशान लगाया जाता था, जिसे ‘दाग-ए-शाही’ कहा जाता था। दरअसल, जो भी कैदी यहां से सजा पूरी करता था, उसके माथे पर दाग-ए-शाही यानी एक स्याही की मुहर लगाई जाती थी, जो अमिट होती थी।
[इनपुट सहयोग: कसौली से मनमोहन वशिष्ठ / सोलन से सुनील शर्मा]
[फोटो : पवन बंसल] 


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