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जमानत के लिए राखी बंधवाने जैसी शर्ते ठीक नहीं, हाईकोर्ट का आदेश नाटकीयता भरा : अटार्नी जनरल

णुगोपाल ने कहा कि नेशनल ज्युडिशियल एकेडेमी और सेस्ट एकेडमीज को यह पढ़ाना चाहिए कि इस तरह का आदेश नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा कि जजों की भर्ती परीक्षा में भी जेंडर सेंस्टाइजेशन का एक भाग होना चाहिए।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 02 Nov 2020 08:25 PM (IST)Updated: Mon, 02 Nov 2020 08:25 PM (IST)
जमानत के लिए राखी बंधवाने जैसी शर्ते ठीक नहीं, हाईकोर्ट का आदेश नाटकीयता भरा : अटार्नी जनरल
अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल की फाइल फोटो।

 नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने यौन उत्पीड़न के आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत दिये जाने के मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश की सोमवार को आलोचना करते हुए कहा कि लगता है न्यायाधीश अपने दायरे से आगे निकल गए, यह महज ड्रामा है इसकी निंदा होनी चाहिए। वेणुगोपाल ने कहा कि जजों को जेंडर सेंस्टाइजेशन (महिलाओं के प्रति संवेदनशील) का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जमानत की शर्तो के बारे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी वेबसाइट्स पर अपलोड किया जाना चाहिए ताकि उन्हे पता रहे कि क्या किया जा सकता है और क्या नहीं।

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यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत का मामला

अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने यह बात यौन उत्पीड़न के आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत दिये जाने के मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 30 जुलाई के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 जुलाई को यौन उत्पीड़न के एक मामले में आरोपी को इस शर्त पर जमानत दी थी कि वह अपनी पत्नी के साथ पीड़िता के पास जाएगा और पीड़िता से राखी बांधने का अनुरोध करेगा, साथ ही उसे अपनी सामर्थ भर हमेशा सुरक्षा देने का वचन देगा।

अटार्नी जनरल ने कहा, जजों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए

नौ महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। याचिका में मांग की गई है कि अदालतों को आदेश दिया जाए कि वे यौन उत्पीड़न के मामले में इस तरह के आदेश न दें। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यी पीठ कर रही है। कोर्ट ने इस मामले में अटार्नी जनरल को नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान सोमवार को वेणुगोपाल ने कहा कि नेशनल ज्युडिशियल एकेडेमी और सेस्ट एकेडमीज को यह पढ़ाना चाहिए कि इस तरह का आदेश नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा कि जजों की भर्ती परीक्षा में भी जेंडर सेंस्टाइजेशन का एक भाग होना चाहिए।

अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने ऐसे मामले में इस तरह की शर्त को बताया ड्रामा

वेणुगोपाल ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने का आदेश महज ड्रामा है। जजों को मामले और तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए। लगता है इस मामले में जज अपने दायरे से आगे निकल गए। उन्होंने कहा कि पहले से ही फैसले हैं, जिनमें कहा गया है कि जजों को केस के तथ्यों तक सीमित रहना चाहिए, विशेषकर जमानत की शर्तों के मामले में।

अटार्नी जनरल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ज्युडिशियल एकेडेमी में पढ़ाया जाना चाहिए और उसे ट्रायल कोर्ट व हाईकोर्ट के समक्ष भी रखा जाना चाहिए ताकि जजों को पता रहे कि उन्हें क्या करना चाहिए। इन दलीलों पर पीठ ने वेणुगोपाल से कहा कि क्या वे जमानत की शर्तो के मामले मे विवेकाधिकार पर कोर्ट में एक सुझाव नोट दे सकते हैं जिसमें यह बताया जाए कि क्या होना चाहिए और क्या नहीं।

इस पर याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय पारिख और याचिकाकर्ता वकील अपर्णा भट्ट ने कहा कि वह अटार्नी जनरल के सुझावों के मुताबिक नोट दाखिल करेंगे। पीठ ने अटार्नी जनरल, याचिकाकर्ता और अन्य पक्षों से इस मुद्दे पर नोट दाखिल करने को कहा है कि क्या होना चाहिए और क्या नहीं। कोर्ट ने नोट दाखिल करने का समय देते हुए मामले को तीन सप्ताह बाद 27 नवंबर को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया।


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