Atmanirbhar Bharat: काम आया अपना पुराना हुनर, चल पड़ी जीवन की गाड़ी
Atmanirbhar Bharat कोरोना से जारी जंग के बीच गांवों को लौटे श्रमिकों का जीवन पटरी पर लौटने लगा है उपलब्ध संसाधनों के जरिये ही स्थिति को सुधारने के प्रयास किए जा रहे है।
मनोज मिश्र, पीलीभीत। Atmanirbhar Bharat: सैकड़ों किमी पैदल चले, मगर हारे नहीं। गांव पहुंचने के बाद पुराने हुनर का सहारा लिया। धीरे ही सही, अपनी ही चौखट पर अब उनकी जिंदगी की गाड़ी चलने लगी है। कोरोना से जारी लड़ाई के बीच पलायन कर गांवों को लौटे श्रमिक जिस तरह अपने बूते और उपलब्ध संसाधनों का भरपूर उपयोग करते हुए वर्तमान को सुधारने में लग गए हैं, उनका यह प्रयास भविष्य की उम्मीद जगाता है। उप्र के पीलीभीत में ऐसे ही कुछ युवा शारीरिक दूरी का पालन करते हुए दरी के जरिये भविष्य का ताना-बाना बुन रहे हैं।
गांव में नई राह बनाने में जुटे कुशल कारीगर: मीरपुर वाहनपुर के परवेज और रईसुद्दीन उन 60 युवाओं में शामिल हैं जो हरियाणा के पानीपत में नौकरी करते थे। बताते हैं, लॉकडाउन होते ही मालिक ने कह दिया कि यहां काम नहीं है, इसलिए फैक्ट्री की ओर से मिला कमरा खाली कर दो। 24 मार्च को वहां से पैदल निकल पड़े। गांव तक आ गए। अब सभी 60 युवा, जो पावरलूम-टेक्सटाइल के कुशल कारीगर हैं, गांव में नई राह बनाने में जुटे हैं।
पुराने हुनर में रोजी-रोटी की तलाश करने लगे: गांव आने के बाद स्क्रीनिंग हुई, कुछ को आश्रय स्थल तो कुछ तो घरों में क्वारंटाइन किया गया। अवधि पूरी करने के बाद रोजीरोटी की खोज में जुट गए। अबरार कहते हैं कि गांव में दरी बनाने का पुराना काम है। करीब एक दर्जन छोटे कारखाने घरों में हैं, इसलिए अधिकतर लोगों को यह काम आता है। ज्यादा कमाई के चक्कर में हमारे जैसे युवा दूसरे प्रदेशों को चले जाते हैं। लेकिन लॉकडाउन में जब लौटकर आए तो उसी पुराने हुनर में रोजी-रोटी की तलाश करने लगे। दरी के कारखानों का रुख कर दिया।
बुनकर परिवार भी दोबारा काम शुरू होने का इंतजार कर रहे: गांव लौटे करीब 60 कुशल कारीगरों ने गांव के बंद पड़े दरी उद्योग को नया जीवन दे दिया। एक ओर जहां ये बेरोजगार युवा रोजी की तलाश में थे, तो वहीं गांव के 36 बुनकर परिवार भी दोबारा काम शुरू होने का इंतजार कर रहे थे। जरूरत थी तो बेहतर शुरुआत की। इतने खाली हाथों का उपयोग अधिक उत्पादन में किया जा सकता है, यह सोचकर मुस्कान सोसाइटी चलाने वाले गौहर अली ने हरियाणा के बड़े दरी कारोबारियों से संपर्क किया। तीस हजार दरी बनाने का आर्डर मिल गया। कच्चा माल पहले से ही रखा हुआ था, जिनसे कारखाने दोबारा चलने लगे और प्रवासियों सहित पुराने लोगों को भी रोजगार का रास्ता बन गया।
अब लॉकडाउन में छूट और ज्यादा बढ़ गई। गांव के कई अन्य कारोबारियों के पास भी बड़े ऑर्डर आना शुरू हो गए। लगभग सभी के पास काम है। सिंगल बेड साइज की औसतन दस दरी प्रत्येक कारीगर रोजाना बना लेते हैं, जिसके बदले उन्हें प्रति दरी तीस, यानी दिनभर में तीन सौ रुपये मिल जाते हैं। प्रवासी श्रमिक परवेज आलम कहते हैं, बाहर जो भी कमाया था, सब खर्च हो गया। बमुश्किल घर लौट पाया। यहां आने पर आर्थिक तंगी आड़े आ रही थी परंतु अब गांव में दरी बुनाई का कार्य मिल जाने से परिवार को राहत मिल गई है।
लाकडाउन में दरी का काम बंद करना पड़ा था। हरियाणा से लौटे कुशल कारीगरों की उपलब्धता हो जाने से काम चल पड़ा। अब हरियाणा, दिल्ली बरेली से ऑर्डर मिलने लगे हैं। कारखाने खुलने से पुराने लोगों को भी रोजगार मिलने लगा है, वहीं गांव लौटे हुनरमंदों को बुरे वक्त में उनका वही हुनर काम आया है।
- गौहर अली अंसारी, प्रबंधक मुस्कान संस्था