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Happy Buddha Purnima 2019: गौतम बुद्ध ने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ उपदेशों के जरिए बुलंद की थी आवाज

गौतम बुद्ध ने न केवल अनेक प्रभावी व्यक्तियों बल्कि आम जन के हृदय को छुआ और उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 18 May 2019 11:53 AM (IST)Updated: Sat, 18 May 2019 12:55 PM (IST)
Happy Buddha Purnima 2019: गौतम बुद्ध ने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ उपदेशों के जरिए बुलंद की थी आवाज
Happy Buddha Purnima 2019: गौतम बुद्ध ने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ उपदेशों के जरिए बुलंद की थी आवाज

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। गौतम बुद्ध भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के ऐसे महापुरुषों में शामिल रहे, जिन्‍होंने पूरी मानवजाति पर छाप छोड़ी। गौतम बुद्ध की जयंती बुद्ध पुर्णिमा के दिन मनाई जाती है और उनका निर्वाण दिवस भी बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। यानी यही वह दिन था जब बुद्ध ने जन्म लिया, शरीर का त्याग किया था और मोक्ष प्राप्त किया।

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बुद्ध पूर्णिमा न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिये एक महत्वपूर्ण दिन है। उन्होंने न केवल अनेक प्रभावी व्यक्तियों बल्कि आम जन के हृदय को छुआ और उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए। भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का 9वां अवतार माना जाता है, इस दृष्टि से हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिये भी उनका महत्व है।

27 वर्ष की उम्र में घर बार छोड़ा
गौतम बुद्ध संन्यासी बनने से पहले कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ थे। लोगों के दुखों को देखकर और शांति की खोज में वे 27 वर्ष की उम्र में घर-परिवार, राजपाट आदि छोड़कर चले गए थे। भ्रमण करते हुए सिद्धार्थ काशी के समीप सारनाथ पहुंचे, जहां उन्होंने धर्म परिवर्तन किया। इसके बाद बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे कठोर तप किया। कठोर तपस्या के बाद सिद्धार्थ को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और वह महान संन्यासी गौतम बुद्ध के नाम से प्रचलित हुए और अपने ज्ञान से समूचे विश्व को प्रकाशमान किया।

बुद्ध ने जब अपने युग की जनता को धार्मिक-सामाजिक, आध्यात्मिक एवं अन्य यज्ञादि अनुष्ठानों को लेकर अज्ञान में घिरा देखा, साधारण जनता को धर्म के नाम पर अज्ञान में पाया, नारी को अपमानित होते देखा, शुद्रों के प्रति अत्याचार होते देखे तो उनका मन जनता के लिए उद्वेलित हो उठा। वे महलों में बंद न रह सके। उन्होंने स्वयं प्रथम ज्ञान-प्राप्ति का व्रत लिया और वर्षों तक वनों में घूम-घूम कर तपस्या करके आत्मा को ज्ञान से आलोकित किया। उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षण को जिस चैतन्य एवं प्रकाश के साथ जिया, वह भारतीय ऋषि परंपरा के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है। स्वयं ने सत्य की ज्योति प्राप्त की, प्रेरक जीवन जिया और फिर जनता में बुराइयों के खिलाफ आवाज बुलन्द की।

40 साल तक घूम-घूम कर किया प्रचार
गौतम बुद्ध ने लगभग 40 वर्ष तक घूम घूम कर अपने सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया। वे उन शीर्ष महात्माओं में से थे जिन्होंने अपने ही जीवन में अपने सिद्धांतों का प्रसार तेजी से होता और अपने द्वारा लगाए गए पौधे को वटवृक्ष बन कर पल्लवित होते हुए स्वयं देखा। गौतम बुद्ध ने बहुत ही सहज वाणी और सरल भाषा में अपने विचार लोगों के सामने रखे। अपने धर्म प्रचार में उन्होंने समाज के सभी वर्गों, अमीर गरीब, ऊंच नीच तथा स्त्री-पुरुष को समानता के आधार पर सम्मिलित किया।

लोगों के दुखों को अपने विचार का माध्‍यम बनाया
संन्यासी बनकर गौतम बुद्ध ने अपने आप को आत्मा और परमात्मा के निरर्थक विवादों में फंसाने की अपेक्षा समाज कल्याण की ओर अधिक ध्यान दिया। उनके उपदेश मानव को दुख एवं पीड़ा से मुक्ति के माध्यम बने, साथ-ही-साथ सामाजिक एवं सांसारिक समस्याओं के समाधान के प्रेरक बने, जो जीवन को सुंदर बनाने एवं माननीय मूल्यों को लोकचित्त में संकलित करने में विशिष्ट स्थान रखते हैं। यही कारण है कि उनकी बात लोगों की समझ में सहज रूप से ही आने लगी।

महात्मा बुद्ध ने मध्यममार्ग अपनाते हुए अहिंसा युक्त दस शीलों का प्रचार किया तो लोगों ने उनकी बातों से स्वयं को सहज ही जुड़ा हुआ पाया। उनका मानना था कि मनुष्य यदि अपनी तृष्णाओं पर विजय प्राप्त कर ले तो वह निर्वाण प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार उन्होंने पुरोहितवाद पर करारा प्रहार किया और व्यक्ति के महत्त्व को प्रतिष्ठित किया।

बौद्ध धर्म से सम्राट अशोक हुआ था प्रभावित, युद्धों पर रोक लगाई
गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया और बौद्ध भिक्षुओं को संगठित किया। गौतम बुद्ध का का अहिंसा एवं करुणा का सिद्धांत इतना लुभावना था कि सम्राट अशोक ने दो वर्ष बाद इससे प्रभावित होकर बौद्ध मत को स्वीकार किया और युद्धों पर रोक लगा दी। इस प्रकार बौद्ध मत देश की सीमाएं लांघ कर विश्व के कोने-कोने तक ज्योति फैलाने लगा। इसने भेद भावों से भरी व्यवस्था पर जोरदार प्रहार किया। विश्व शांति एवं परस्पर भाईचारे का वातावरण निर्मित करके कला, साहित्य और संस्कृति के विकास के मार्ग को प्रशस्त करने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कुछ दशक पूर्व संविधान के निर्माता डाक्टर भीमराव आंबेडकर ने भारी संख्या में अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध मत को स्‍वीकार किया ताकि हिन्दू समाज में उन्हें बराबरी का स्थान प्राप्त हो सके। मूलतः बौद्ध मत हिंदू धर्म के अनुरूप ही रहा और हिंदू धर्म के भीतर ही रहकर महात्मा बुद्ध ने एक क्रांतिकारी और सुधारवादी आंदोलन चलाया। 

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