अशोक चह्वाण को ले डूबी उनकी तेज चाल
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। करीब दो साल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे अशोक चह्वाण का कहना है कि राज्य की राजनीति से बाहर करने के लिए उनके राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें आदर्श घोटाले में फंसा दिया। उनका यह सोचना कुछ हद तक सही है क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने शुभचिंतकों को भी नाराज करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। करीब दो साल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे अशोक चह्वाण का कहना है कि राज्य की राजनीति से बाहर करने के लिए उनके राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें आदर्श घोटाले में फंसा दिया। उनका यह सोचना कुछ हद तक सही है क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने शुभचिंतकों को भी नाराज करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
विलासराव देशमुख सहित कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के रहते अपेक्षाकृत युवा अशोक चह्वाण के मुख्यमंत्री बनने की बात कभी सोची भी नहीं गई थी। मुंबई आतंकी हमले [26/11] के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के इस्तीफे के समय नारायण राणे मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। लेकिन, देशमुख ने अपने सबसे करीबी माने जाने वाले चह्वाण को नया मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव कांग्रेस हाईकमान को दिया। देशमुख और चह्वाण, दोनों मराठवाड़ा के मराठा नेता हैं। देशमुख को चह्वाण के पिता शंकरराव चह्वाण का करीबी माना जाता रहा है। शरद पवार को ंटक्कर देने में देशमुख ने हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर शंकरराव का साथ दिया। इसी रिश्ते को ध्यान में रखते हुए देशमुख ने यह सोचकर अशोक चह्वाण को अपना उत्तराधिकारी बनाया था कि वह भरत की तरह देशमुख के खड़ाऊं पूजते हुए राज करेंगे और जरूरत पड़ने पर उनके लिए गद्दी खाली कर देंगे।
लेकिन, मुख्यमंत्री बनने के बाद चह्वाण ने सबसे पहले देशमुख की ही जड़ें काटनी शुरू कर दीं। मराठवाड़ा में औरंगाबाद के अलावा एक और कमिश्नरी बनाने का जो प्रस्ताव देशमुख के गृह जनपद लातूर के लिए लगभग तैयार किया जा चुका था, चह्वाण ने उसे अपने गृह जनपद नांदेड़ में बनाने की घोषणा कर दी। इसके जरिये उन्होंने मराठवाड़ा में खुद को देशमुख से बड़ा नेता साबित करने की कोशिश की। देशमुख ने अपने इस्तीफे से पहले एक माह के अंदर जितनी फाइलों पर हस्ताक्षर किए थे, चह्वाण ने उनकी समीक्षा के निर्देश भी दे दिए। यही नहीं, अपने नेतृत्व में 2009 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने देशमुख के गढ़ मराठवाड़ा सहित पूरे राज्य में देशमुख समर्थकों की जड़ें काटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चह्वाण ने यही व्यवहार राज्य के अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के साथ भी किया। यही कारण है कि संकट की इस घड़ी में चह्वाण अकेले दिख रहे हैं।
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