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Artificial Sun: कृत्रिम सूरज से रोशन होगी अगले 10 सालों में दुनिया, जानें- क्या है तकनीक

परमाणु ऊर्जा से उत्पन्न होने वाले खतरे से दूर इस नए प्रयोग में फ्यूजन और फीजन का प्रयोग किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का दावा है इससे न सिर्फ कृत्रिम रोशनी मिलेगी बल्कि यह पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित भी होगी।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 10 Nov 2020 03:35 PM (IST)Updated: Tue, 10 Nov 2020 03:35 PM (IST)
Artificial Sun: कृत्रिम सूरज से रोशन होगी अगले 10 सालों में दुनिया, जानें- क्या है तकनीक
अगले 10 सालों में धरती कृत्रिम सूरज से रोशन होगी। फाइल फोटो

जेएनएन, नईदिल्ली। यदि सबकुछ ठीक रहा तो अगले 10 सालों में धरती कृत्रिम सूरज से रोशन होगी। लंबे समय से इस पर काम कर चल रहा है। मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और कॉमनवेल्थ फ्यूजन सिस्टम कंपनी द्वारा इस दिशा में लंबे समय से काम कर रही है। हाल ही में उन्हें एक उम्मीद की किरण दिखी है। परमाणु ऊर्जा से उत्पन्न होने वाले खतरे से दूर इस नए प्रयोग में फ्यूजन और फीजन का प्रयोग किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का दावा है इससे न सिर्फ कृत्रिम रोशनी मिलेगी बल्कि यह पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित भी होगी।

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आसान भाषा में ऐसे समझें 

फ्युजन ब्रह्मांड का ऊर्जा स्त्रोत है। सूर्य सहित सभी सितारे फ्यूजन के जरिए ही ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। जब हल्के कण अविश्वसनीय दबाव और तापमान (लाखों डिग्री सेल्सियस) पर आपस में मिलते हैं तो वे मिलकर एक भारी पदार्थ का अणु बनाते हैं और बहुत सारी ऊर्जा उत्सíजत करते हैं। यह इस तरह नहीं है कि कार्बन और ऑक्सीजन मिलकर कार्बन डाइ ऑक्साइड बनाते हैं बल्कि यहां कार्बन स्वर्ण में बदलता है। सितारों में सामान्यत: हल्का कण हाइड्रोजन होता है जो फ्यूज या द्रवित होकर अन्य कण हिलियम बनाता है। यही प्रक्रिया यदि धरती पर किसी परमाणु रिएक्टर में हो तो सूर्य को किसी डब्बे में बंद करने जैसा होगा। 

डिब्बे में बंद सूरज

मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक कहते हैं मेरे सहयोगी शैनन यी ने इस अवधारणा डिब्बे में बंद सूरज का नाम दिया है। यह मूल रूप से गहन प्रकाश स्रोत है। जो सभी बॉक्स में समाहित करता है जो गर्मी को इकट्ठा करता है।

फीजन: ऊर्जा तो मिली लेकिन रेडियो एक्टिव कचरा खतरनाक

परमाणु ऊर्जा हमारे लिए नया विषय नहीं है। भारत में करीब 55 साल से इस पर काम चल रहा है। विश्व में 440 के करीब परमाणु संयंत्र हैं, मगर इन सभी संयत्रों में फिजन यानी परमाणु के विखंडन से ही ऊर्जा पैदा की जाती है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा को प्राप्त होती है, लेकिन अनुपयोगी रेडियोएक्टिव कचरा भी बचता है, जो खतरनाक होता है। यही कारण है कि परमाणु संयंत्रों में होने वाली दुर्घटनाओं के कारण बड़ा नुकसान और दूरगामी नकारात्मक प्रभाव रहते हैं।

फायदा: कार्बन फुट प्रिंट

परमाणु संयंत्रों से ऊर्जा प्राप्त करने का फायदा भी है। इसमें कार्बन फुटप्रिंट बहुत कम या नगण्य होते हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता।

फ्यूजन: ऊर्जा तो मिलेगी पर रेडियो एक्टिव पदार्थों से मुक्ति

फीजन के बजाए वैज्ञानिक फ्यूजन का विकल्प तलाश रहे हैं। इसमें ऊर्जा तो पैदा हो लेकिन रेडियो एक्टिव कचरा उत्पन्न होने का जैसा खतरा नहीं हो।

एक सदी से इस पर कोशिश चल रही है। हाल के दिनों में मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और कॉमनवेल्थ फ्युजन सिस्टम कंपनी द्वारा इस दिशा में किए प्रयासों से उम्मीद की किरण जागी है।

फायदा: परमाणु सयंत्र के अलावा हवा और सौर ऊर्जा संयंत्र भी कार्बन फुटप्रिंट नहीं छोड़ते। ऐसे में यदि दूसरे प्रकार की परमाणु ऊर्जा विकसित की जाए, तो ज्यादा उपयोगी हो सकती है।

सबसे बड़ी दिक्कत : ऊर्जा को कैसे संग्रहित करेंगे

सूर्य को डिब्बे में बंद करने की प्रक्रिया में सबसे बड़ी बाधा यह है कि इस ऊर्जा को कैसे संग्रहित करेंगे।


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