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तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित

केंद्र सरकार ने तीन तलाक का विरोध करते हुए कहा है कि जो चीज वैकल्पिक हो, पाप हो या जिसे अवांछित कहा जा रहा है वो धर्म का अभिन्न हिस्सा कैसे हो सकती है।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Thu, 18 May 2017 09:21 AM (IST)Updated: Thu, 18 May 2017 02:27 PM (IST)
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित

नई दिल्‍ली, ब्‍यूरो/एजेंसी। तीन तलाक मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज छठे दिन भी सुनवाई जारी रही। सभी पक्षों ने अपना तर्क रखा। इसके बाद सुनवाई पूरी हो गई और कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान मुख्‍य याचिकाकर्ता सायरा बानो के वकील अमित चड्ढा ने तीन तलाक को एक पाप बताया।

इससे पहले तीन तलाक की वैधानिकता पर विचार कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आल इंडिया पर्सनल ला बोर्ड से पूछा कि क्या निकाहनामे में महिलाओं को तीन तलाक नकारने का विकल्प दिया जा सकता है। उधर, दूसरी ओर केंद्र सरकार ने एक बार फिर तीन तलाक का विरोध करते हुए कहा कि ये इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। जो चीज वैकल्पिक हो, पाप हो या जिसे अवांछित कहा जा रहा है वो धर्म का अभिन्न हिस्सा कैसे हो सकती है। तीन तलाक पर पांचवे दिन की बहस में ये बातें निकलकर सामने आईं। बहस आज भी जारी रहेगी।

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बुधवार को जब आल इंडिया पर्सनल ला बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल पर्सनल ला में दखल न देने की अपील कर रहे थे कि तभी पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने उनसे पूछा कि क्या शादी के वक्त निकाहनामे में महिला को तीन तलाक को न कहने का विकल्प दिया जा सकता है। काजी को निकाहनामे में इस शर्त को शामिल करने को कहा जा सकता है।

पीठ ने सिब्बल से इस पर जवाब मांगा। पर्सनल ला बोर्ड की ओर से पेश दूसरे वकील युसुफ मुछाला ने जवाब देते हुए कहा कि कोर्ट का सुझाव बहुत अच्छा है और वे इस पर विचार करेंगे। सिब्बल ने कहा कि वे इस पर बोर्ड के अन्य सदस्यों से विचार विमर्श कर कोर्ट को बताएंगे। तभी जस्टिस कुरियन जोसेफ ने सवाल किया कि क्या पर्सनल ला बोर्ड इस बारे में काजियों को निर्देश दे सकता है। मुछाला ने कहा कि जरूरी नहीं कि सभी काजी बात मानें। चीफ जस्टिस ने कहा कि मार्डन निकाहनामें में ऐसा कोई उपबंध होना चाहिए जिसमें महिला के पास न कहने का विकल्प हो। इससे पहले कोर्ट ने तलाक के आधारों पर भी सवाल पूछे।

अंत में सिब्बल ने दलीलें पूरी करते हए कहा कि वे 1400 साल के विश्वास को तो नहीं जानते, लेकिन 67 साल के विश्वास को लेकर कोर्ट आए हैं। अल्पसंख्यक उस चिडि़या की तरह हैं तो चील से बचने के लिए सुरक्षित आश्रय ढूंढ़ रही है। जमीयत उलेमा ए हिन्द के वकील राजू रामचंद्रन ने कहा कि अगर एक व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक दे देता है तो फिर उसके बाद उसके साथ रहना पाप बन जाता है। अगर तीन तलाक खत्म कर दिया जाता है तो पुरुषों तलाकशुदा पत्नी के साथ रहने को मंजूर होगा। कोर्ट ऐसा पाप करने के लिए बाध्य नहीं करेगा। धर्मनिरपेक्ष अदालत उनकी विचारधारा को गलत नहीं साबित कर सकती। उसे बदलने को मजबूर नहीं कर सकती।

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