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सुप्रीम कोर्ट में अभिभावकों की गुहार, जुलाई में न हो बोर्ड परीक्षा; कोरोना संक्रमण चरम पर होने का है अनुमान

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कोरोना के करीब आधे मरीजों में कोई लक्षण नहीं मिला है। ऐसे में बच्चे और ज्यादा खतरे में होंगे।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Wed, 10 Jun 2020 12:54 AM (IST)Updated: Wed, 10 Jun 2020 07:14 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट में अभिभावकों की गुहार, जुलाई में न हो बोर्ड परीक्षा; कोरोना संक्रमण चरम पर होने का है अनुमान
सुप्रीम कोर्ट में अभिभावकों की गुहार, जुलाई में न हो बोर्ड परीक्षा; कोरोना संक्रमण चरम पर होने का है अनुमान

नई दिल्ली, आइएएनएस। अभिभावकों के एक समूह ने सीबीएसई द्वारा 12वीं कक्षा के बाकी विषयों की बोर्ड परीक्षा पहली से 15 जुलाई के बीच कराने के फैसले का विरोध किया है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि सीबीएसई का निर्णय बहुत मनमाना है, क्योंकि एम्स के आंकड़ों के अनुसार जुलाई में देश में कोरोना संक्रमण चरम पर होगा।

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याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कोरोना संक्रमण के चरम के बीच परीक्षा के लिए बाहर निकलने से बच्चों के स्वास्थ्य को खतरा रहेगा। ऐसे में पहली जुलाई से परीक्षा कराने के फैसले पर रोक लगनी चाहिए। अभिभावकों ने अब तक हो चुकी परीक्षाओं और इंटरनल असेसमेंट के अंकों के आधार पर बाकी विषयों में औसत अंक देते हुए परीक्षा के परिणाम घोषित करने की भी अपील की है।

बच्चे आ जाएंगे और ज्यादा खतरे में

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कोरोना के करीब आधे मरीजों में कोई लक्षण नहीं मिला है। ऐसे में बच्चे और ज्यादा खतरे में होंगे। इसके अलावा मौजूदा हालात में सभी परिजनों के लिए निजी वाहन से बच्चों को परीक्षा केंद्र तक पहुंचाना संभव नहीं है और सार्वजनिक परिवहन से बच्चों को भेजना खतरनाक होगा। 

उल्लेखनीय है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 25 मई को कहा था कि सुरक्षा एवं सफाई की पूरी व्यवस्था के साथ पहले के 3,000 केंद्रों के स्थान पर 15,000 परीक्षा केंद्रों पर 10वीं और 12वीं कक्षा के बचे हुए विषयों की परीक्षा आयोजित की जाएगी।

स्कूल खुलने के बाद छात्रों की उपस्थिति नहीं होगी अनिवार्य

वहीं, दूसरी ओर कोरोना संक्रमण के कारण उपजे माहौल में अभी स्कूलों को खुलने में वक्त लगेगा। तैयारी यह भी है कि स्कूल खुलने के बाद आने या न आने को लेकर छात्रों और अभिभावकों को छूट दी जाए। एक विचार यह है कि सिर्फ ऐसे बच्चों को ही स्कूल बुलाया जाए, जो संसाधनों के अभाव में ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं, यानी उनके पास मोबाइल, इंटरनेट और टीवी आदि नहीं है। जो छात्र घर से ही ऑनलाइन पढ़ाई कर सकते हैं, उन्हें ऑनलाइन ही पढ़ाया जाए। उन्हें स्कूल आने की अनिवार्यता से मुक्त रखा जाए। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक इससे स्कूलों में छात्रों की भीड़ नहीं जमा होगी। साथ ही शारीरिक दूरी के प्रावधानों का भी आसानी से पालन कराया जा सकेगा।


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