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Dada Saheb Phalke To Amitabh Bachchan: 40 साल में लगाए पुरस्कारों के 4 शतक

Dada Saheb Phalke To Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन ने अपनी लंबी यात्रा में सिनेमा और समाज को जितना कुछ दिया उनके नाम हरेक घोषित सम्मान कमतर हो जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 25 Sep 2019 10:46 AM (IST)Updated: Wed, 25 Sep 2019 11:15 AM (IST)
Dada Saheb Phalke To Amitabh Bachchan: 40 साल में लगाए पुरस्कारों के 4 शतक
Dada Saheb Phalke To Amitabh Bachchan: 40 साल में लगाए पुरस्कारों के 4 शतक

विनोद अनुपम। कुछ घोषणाएं आपको चौंकाती हैं,कुछ घोषणाओं की आप प्रतीक्षा करते हैं। सदी के महानायक माने जाने वाले अमिताभ बच्चन के नाम भारतीय सिनेमा के सबसे बडे सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड की घोषणा बहुप्रतीक्षित थी। वास्तव में अमिताभ अब जहां खडे हैं, उनके नाम किसी भी पुरस्कार या सम्मान की घोषणा विस्मित नहीं कर सकती, उन्होंने अपनी लंबी यात्रा में सिनेमा और समाज को जितना कुछ दिया, उनके नाम हरेक घोषित सम्मान कमतर हो जाता है।

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अमिताभ, अमिताभ हैं यह उनके व्यक्तित्व की ही खासियत है कि बगैर किसी खास कोशिशों के भी अपनी भूमिका को वह खास बना देते हैं। ‘पीकू’ में उनकी वाचलता खास होती है तो ‘पिंक’ में उनका मौन। 2005 में ‘ब्लैक’ के बाद 2009 में ‘पा’ के लिए अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा होती है। जब भी लगता है अब अमिताभ की पारी पूरी हुई, वे अगली पारी के लिए तैयार दिखते हैं। 2016 में अमिताभ फिर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए खड़े होते हैं फिल्म ‘पीकू’ की भूमिका के लिए।

फिल्मफेयर, आइफा जैसे निजी अवार्ड से सम्मानित

40 वर्षों में चार राष्ट्रीय पुरस्कार सहित 400 से भी अधिक फिल्मफेयर, जी, आइफा जैसे निजी अवार्ड अमिताभ बच्चन की असीम अभिनय क्षमता के प्रमाण रहे हैं। यदि भारत के अलावा भी दुनिया भर के कई देश उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित करते हैं या विश्वविद्यालय उन्हें मानद डाक्टरेट प्रदान कर धन्य हो रही हैं तो यह कहीं न कहीं अमिताभ के अभिनय क्षमता के ही प्रमाण हैं। लोग दशक के सर्वश्रेष्ठ का खिताब पा कर धन्य हो जाते हैं, अमिताभ के पास ‘सदी के सर्वश्रेष्ठ’ के न जाने कितने खिताब सुरक्षित होंगे। वास्तव में अमिताभ बच्चन की महानता आज किसी भी विमर्श से परे है।

अमिताभ ने ‘पीकू’, ‘पिंक’,’सत्याग्रह’,’आरक्षण’,'बागबान', 'वक्त', 'फेमिली', 'सरकार' से लेकर 'ब्लैक', 'निशब्द' और 'कभी अलविदा न कहना' जैसी फिल्मों के साथ यह साबित करने की कोशिश की कि उम्र के साथ जिंदगी कमजोर नहीं पडती, अनुभव उसे मजबूत बनाते हैं। वास्तव में आने वाले दिनों में जब अमिताभ का समग्र मूल्यांकन होगा, यह तय करना मुश्किल होगा कि उन्हें एंग्री यंगमैन के रुप में याद रखा जाए या जीवंत प्रौढ के रुप में। अमिताभ के यदि समग्र अवदान को भुलाना भी चाहें तो, उस नागरिक के रुप में भुलाना संभव नहीं होगा, जिसने सक्रियता की उम्र बदल दी।

आशचर्य नहीं कि अमिताभ के अभिनय यात्रा के तीसरे और शायद सबसे महत्वपूर्ण चरण की शुरूआत 2000 बाद 60 की उम्र के बाद शुरु होती है। मोहब्बतें, अक्स, बागबान, देव, ब्लैक, सरकार, निःशब्द, चीनी कम, द लास्ट लीयर, और ‘पीकू’ ’पिंक’ यदि अमिताभ की कैरियर में शामिल नहीं हो पाती तो शायद आज उन्हें भी राजेश खन्ना की तरह भुला दिया जाना आसान होता। लेकिन 2000 के बाद अमिताभ के अभिनय क्षमता की विशेषता रही कि हर बार वे अपनी पिछली फिल्म से थोड़ा आगे दिखे, थोड़ा बेहतर।

गौरतलब है कि अमिताभ अपने चरित्र को लगातार बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं, उसे नयी पहचान देने की कोशिस करते हैं। ‘ब्लैक’ का जिद्दी शिक्षक हो या अल्जाइमर पीड़ित बुजुर्ग, अमिताभ की अभिनय क्षमता विस्मित करती हैं, ‘अक्स’ में अमिताभ का एक नया ही रुप दिखता है। वास्तव में ‘मोहब्बतें’ के प्राचार्य नारायण शंकर, ‘देव’ के डीसीपी देव प्रताप सिंह, ‘सरकार’ के सुभाष नागरे या फिर ‘पिंक’ के दीपक सहगल या ‘पीकू’ के भास्कर, अमिताभ अपने स्टारडम को सुरक्षित रखते हुए उसे नई पहचान देने की कोशिश करते हैं।

अमिताभ वह हर नया जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं,जिसके लिए हिम्मत जुटाने में कोई भी युवा वर्षों गुजार दे। आज कौन बनेगा करोडपति में अमिताभ जिस स्नेहिल अभिभावक की तरह अब दिखते हैं भारतीय दर्शकों को एक अद्भत अपनत्व का अहसास हो रहा। शायद यही कारण है कि हरेक अनिवार्य अभियान के लिए अमिताभ अनिवार्य समझ जाते हैं,चाहे वह पल्स पोलियो की बात हो,या स्वच्छता अभियान की,या फिर गुजरात टूरिज्म या महाराष्ट्र हाटीकल्चर के ब्रांड अम्बेस्डर बनने की। आप इसे अमिताभ की सामाजिक भूमिका के रुप में स्वीकार करें,या अभिनय के प्रयोग के रुप में,अमिताभ ,अमिताभ हैं। बधाई,महानायक,भारतीय सिनेमा के सबसे बडे और महत्वपूर्ण सम्मान के लिए।

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