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सांसदों और विधायकों के मामलों की त्‍वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की वैधता पर जजों ने उठाया सवाल

सांसदों और विधायकों के मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन की संवैधानिक वैधता पर मद्रास हाईकोर्ट के तीन जजों की समिति ने सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी वरिष्ठ वकील और न्याय मित्र विजय हंसारिया ने सोमवार को दी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Tue, 03 Nov 2020 06:04 AM (IST)Updated: Tue, 03 Nov 2020 06:04 AM (IST)
सांसदों और विधायकों के मामलों की त्‍वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की वैधता पर जजों ने उठाया सवाल
जजों की समिति ने सांसदों विधायकों के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन पर सवाल उठाया है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। सांसदों और विधायकों के मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन की संवैधानिक वैधता पर मद्रास हाईकोर्ट के तीन जजों की समिति ने सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी वरिष्ठ वकील और न्याय मित्र विजय हंसारिया ने सोमवार को दी।

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जजों की समिति ने कहा कि इस तरह की विशेष अदालतें 'अपराध केंद्रित' हो सकती हैं न कि 'अपराधी केंद्रित'। इसी प्रकार इनका गठन भी कानूनी तौर पर होना चाहिए न कि किसी न्यायिक या कार्यकारी आदेश से। उल्लेखनीय है सांसदों और विधायकों के खिलाफ चल रहे मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए पहली बार 2017 में विशेष अदालतों के गठन का निर्देश दिया गया था।

समिति ने कहा कि सांसदों-विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का आदेश जारी करने में बहुत सावधानी बरती लेकिन फिर भी 'उससे गलती' हो गई। समिति ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वही तरीका (फार्मेट) अपना लिया जैसा तेलंगाना राज्य ने पारित किया था।

समिति ने कहा कि सरकारी आदेश में भ्रांति यह है कि इसने किसी कानूनी आधार के बजाय एक नवंबर 2017 को अश्वनी कुमार उपाध्याय के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से विशेष अदालतों के गठन की शक्ति गलत तरीके से हासिल कर ली। समिति ने कहा कि मद्रास का अदालती ढांचा बहुत मजबूत है। वह विधायकों और सांसदों के खिलाफ चलाए जाने वाले मामलों से भी बड़े मामलों से निपटने में सक्षम है।

समिति ने मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस से इस तथ्य से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराने को कहा है ताकि राज्य को इस तरह की विशेष अदालतें गठित करने से छूट मिल सके और यथास्थिति बरकरार रहे। समिति ने कहा कि सांसदों-विधायकों के खिलाफ विशेष अदालतों का गठन सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक घोषणा से नहीं हो सकता। इस बात के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसलों का भी उल्लेख किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट को समिति की इन आपत्तियों से न्याय मित्र विजय हंसारिया ने अवगत कराया है। सोमवार को अपनी सहायक स्नेहा कलिता के साथ उन्होंने कोर्ट में 80 पेज की रिपोर्ट सौंपी। समझा जाता है कि इस मामले पर बुधवार को जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी।


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