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IIT और IIM से निकले युवाओं का कमाल, गांव में शुरू किया एक स्टार्टअप पहुंचा 100 करोड़ रुपए के पार

IIT और IIM से निकले इन युवाओं का तीन साल में छह लाख रुपये से शुरू हुआ स्टार्टअप अब 100 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर चुका है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Wed, 13 Nov 2019 08:42 AM (IST)Updated: Wed, 13 Nov 2019 08:49 AM (IST)
IIT और IIM से निकले युवाओं का कमाल, गांव में शुरू किया एक स्टार्टअप पहुंचा 100 करोड़ रुपए के पार
IIT और IIM से निकले युवाओं का कमाल, गांव में शुरू किया एक स्टार्टअप पहुंचा 100 करोड़ रुपए के पार

गजेंद्र विश्वकर्मा, इंदौर। मध्यप्रदेश में ग्रामोफोन स्टार्टअप न केवल किसानों को बचत की राह दिखा रहा है, वरन कृषि भूमि को रसायनों की मार से भी बचाने का काम कर रहा है। यानी एक पंथ दो काज। महंगे रसायनों के अनावश्यक उपयोग से किसानों को बचाकर उनकी आय में वृद्धि के तमाम उपाय देना ग्रामोफोन की अवधारणा है। तीन साल में छह लाख रुपये से शुरू हुए इस स्टार्टअप ने 100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है।

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मध्यप्रदेश के इंदौर में ग्रामोफोन स्टार्टअप को संचालित करने वालों में आइआइटी और आइआइएम से निकले सुशिक्षित युवाओं की पूरी टीम है। इन युवाओं का कहना है कि बेहतर शिक्षण संस्थानों से उच्चशिक्षा प्राप्त करने के बाद अच्छे पैकेज पर नौकरी के कई विकल्प थे, लेकिन इन्होंने कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में उद्यम की संभावनों को चुना।

ग्रामोफोन के संस्थापक तौसीफ खान कहते हैं, पढ़ाई के दौरान ही तय कर लिया था कि गांवों, किसानों और पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ बड़ा काम करना है। परिवार की पृष्ठभूमि भी गांव-कृषि से होने के कारण इसने प्रेरणा का काम किया। आइआइटी खड़गपुर के बाद आइआइएम अहमदाबाद में भी हम बात किया करते थे कि किस तरह यह संभव हो सकता है। 2016 में मध्यप्रदेश के किसानों से जुड़ने का काम शुरू किया। इसके लिए इंदौर में ऑफिस स्थापित किया। 

निशांत वत्स, हर्षित गुप्ता, आशीष सिंह और मैं, पहले हम चार पार्टनर थे, फिर 50 लोगों की टीम के साथ आसपास के कई गांवों में दायरा बढ़ाया। वहां खेती करने में आ रही परेशानियों को जाना। कुछ महीने पहले ही कंपनी को 24 करोड़ रुपये की फंडिंग भी मिली है। इस समय कंपनी की वैल्यू 100 करोड़ की हो गई है। 

तौसीफ ने बताया कि कंपनी की शुरुआत मात्र छह लाख रुपये से हुई थी। फसल में अगर बीमारी लग जाए तो इसके लिए कौन सा कीटनाशक कारगर है, किस कीटनाशक या खाद की कितनी मात्र कब उपयोग की जानी चाहिए, इसका मृदा आधारित समुचित अध्ययन हम किसानों को मुहैया कराते हैं। जब पहली फसल आई तो पता लगा कि कम लागत में किसानों का 40 फीसद प्रोडक्शन बढ़ गया। लागत 20 फीसद कम हो गई। यह बात एक गांव से दूसरे में तेजी से फैली और एक साल में हमसे 5 हजार किसान जुड़ गए। किसानों की तरह तरह के सवाल का जवाब देने के लिए कॉल सेंटर भी स्थापित किया गया है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी बेस्ड एप भी है। 

आज मध्यप्रदेश ही नहीं,छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के 2.50 लाख से ज्यादा किसान जुड़ चुके हैं। तीन साल में करीब 6 लाख किसानों को इससे फायदा मिल चुका है। हर दिन 3 हजार किसान विभिन्न समाधान के लिए संपर्क करते हैं। जो किसान स्मार्टफोन का उपयोग नहीं करते हैं उन्हें बेसिक फोन से भी मिस्ड कॉल देकर समाधान देने की सुविधा दी गई है। 

तौसीफ खान का कहना है कि हमारा मकसद देश में कृषि का ऐसा सिस्टम बनाना है, जिससे किसान कीटनाशक और अन्य प्रक्रिया को लेकर उलझन में न रहे। बाजार में कई तरह की कीटनाशक, खाद और बीज कंपनियां बेचती है। कई बार किसान को जानकारी नहीं होती और उसे नुकसान उठाना पड़ता है। हम किसानों के लिए इस तरह का सिस्टम बना देंगे, जिससे वे खुद जान जाएंगे कि देश में कितने किसान क्या कीटनाशक और किस खाद का उपयोग कर रहे हैं और उन्हें इससे कितना फायदा मिल रहा है। इसके रिव्यू, फीडबैक और सभी तरह की जानकारी इंटरनेट या डाटा के रूप में कहीं स्टोर होने से किसानों का समय और पैसा बर्बाद नहीं होगा।


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