बिहार में दोस्ती, बाहर कुश्ती
बिहार में एकजुट होकर सत्ता पर कब्जा जमाने वाले महागठबंधन के साथी दूसरे राज्यों में अलग-अलग राह पर चल निकले हैं।
नई दिल्ली, अरविंद शर्मा । बिहार में एकजुट होकर सत्ता पर कब्जा जमाने वाले महागठबंधन के साथी दूसरे राज्यों में अलग-अलग राह पर चल निकले हैं। चुनाव वाले पांच में से चार राज्यों में सबकी अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग है। कोई किसी से मतलब नहीं रख रहा है। यहां तक कि राजद-जदयू के कंधे पर सवार होकर बिहार में मुख्यधारा की राजनीति में वापसी करने वाली कांग्रेस भी असम एवं अपने प्रभाव वाले राज्यों में किसी को अपना हाथ नहीं पकड़ने दे रही है। हालांकि, बिहार में पांच सीटों वाली कांग्रेस को नीतीश ने 41 सीटें दी थीं।
पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल एवं पुड्डुचेरी में अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं। इन राज्यों में लोकसभा की 116 सीटें हैं, जिनमें भाजपा के हिस्से में सिर्फ 10 सीटें आईं हैं। बाकी सीटें कांग्रेस एवं अन्य क्षेत्रीय दलों की झोली में हैं। बिहार चुनाव में राजग की राह में अड़ंगा लगने के बाद उत्साहित कांग्रेस अधिकतर रायों में अपने एवं अन्य सहयोगियों के दम पर आगे बढ़ना चाह रही है। असम एवं केरल में कांग्रेस सत्ता में है। असम में राजद-जदयू का खास आधार नहीं है। कांग्रेस ने वहां की सभी 126 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी है। बिहार के बाहर कांग्रेस की अनदेखी से राजद-जदयू की रफ्तार कमजोर पड़ गई है।
दो महीने पहले पटना में जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में समान विचारधारा वाले दलों के साथ मिलकर बिहार से बाहर भी चुनाव लड़ने की बात कही गई थी। मुख्यमंत्री नीतीश ने अपने स्तर से पहल भी की। उन्होंने खुद राहुल गांधी, ममता बनर्जी एवं सीताराम येचुरी जैसे नेताओं से बात की थी। 20 नवंबर को पटना के गांधी मैदान में नीतीश सरकार के शपथग्रहण समारोह में ममता बनर्जी को भी बुलाया गया था। तब ऐसा लगा था कि असम और पश्चिम बंगाल में बिहार का पाठ दोहराया जा सकता है, लेकिन प्रारंभिक पहल के बाद रास्ते बंद होते नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस की अनदेखी के बाद जदयू भी अलग तैयारी कर रहा है और राजद अलग। पुड्डुचेरी को छोड़कर लालू चार रायों में किस्मत आजमाने के मूड में हैं। उनका सबसे यादा फोकस भाजपा के आधार वाले रायों में है। लोकसभा चुनाव में असम में भाजपा को 14 में से सात सीटें मिली थीं। पश्चिम बंगाल में भी जमीन तैयार कर रही है। इन्हीं दोनों रायों में लालू यादा सक्रिय रहेंगे ताकि राजद के लिए वैचारिक जमीन तैयार कर सकें।