भारत v/s पाकिस्तान: जल संधि से रार तक, आखिर क्या है नदियों के बंटवारे का सच
इसके तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया है। सतलज, ब्यास व रावी को पूर्वी नदी में रखा गया है, जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिम की नदियां हैं।
नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल ]। भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते पर 1960 में दस्तखत किए गए। जल बंटवारे में तीन नदियों का पानी भारत के हिस्से में गया तो तीन नदियों का 80 फीसद पानी पाकिस्तान के हिस्से में। इसके बाद से पाकिस्तान ने कई बार जल बंटवारे को लेकर भारत पर निरर्थक आरोप लगाए। तब से कई बार जल बंटवारे को लेकर दोनों देशों के बीच रिश्तों में तल्खी आई है। आइए जानते हैं कि आखिर क्या है पाकिस्तान के दावे का सच। क्या है सिंधु जल संधि ।
आखिर क्या है सिंधु जल करार
1- इसके तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया है। सतलुज, ब्यास व रावी को पूर्वी नदी में रखा गया है, जबकि झेलम, चिनाब और सिंधु पश्चिम की नदियां हैं। रावी, ब्यास और सतलुज नदी का पानी भारत के हिस्से में गया तो सिंधु, झेलम और चिनाब का 80 फीसद पानी पाकिस्तान के हिस्से में।
2- इस समझौते के तहत पश्चिमी नदियों के पानी का हक भारत को भी दिया गया। मसलन जैसे बिजली निर्माण या कृषि के क्षेत्र में नदियों के जल के उपयोग का अधिकार दिया गया।
3- किसी बाधा या समस्या के समाधान के लिए इसके तहत एक स्थाई सिंधु आयोग के गठन का प्रस्ताव था। यह तय हुआ कि आयोग समय-समय पर बैठक करेगा। दोनों मुल्क के कमिश्नर समय-समय पर एक दूसरे से मिलेंगे और समस्याओं पर बात करेंगे। यह व्यवस्था बनाई गई कि अगर आयोग समस्या का हल नहीं ढूंढ़ पाते हैं तो सरकारें उसे सुलझाने की कोशिश करेंगी।
4- इसके अलावा विवादों का हल ढूंढने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने का प्रावधान किया गया। इसके तहत कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में जाने का भी विकल्प दिया गया है।
भारत का पक्ष
- इस संधि के अनुसार भारत को पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों के जल का उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस संधि के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी का कुल पानी केवल 20 फीसद उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है।
- भारत का कहना है कि उसने अपने हिस्से के 20 फीसद पानी का पूरा इस्तेमाल नहीं किया है। सिंधु जल समझौता भारत को इन नदियों के पानी से 14 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई करने का अधिकार देता है। भारत फिलहाल सिंधु, झेलम और चिनाब नदी से 3000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करता है, लेकिन सिंधु के बारे में कहा जाता है कि इसमें 19000 मेगावॉट बिजली उत्पादन करने की क्षमता है।
- 1987 में भारत ने पाकिस्तान के विरोध के बाद झेलम नदी पर तुलबुल परियोजना का काम रोक दिया था लेकिन अब सूत्रों का कहना है कि जल संसाधन मंत्रालय इसे फिर से शुरू कर सकता है।
आगे आया विश्व बैंक
विश्व बैंक की मध्यस्थ्ता के साथ भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी के पानी को लेकर 19 सितंबर 1960 को एक करार हुआ। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। सिंधु घाटी में भारत की दो पनबिजली परियोजनाओं को लेकर हुए विवाद के बाद अंतरराष्ट्रीय पंचाट में विश्व बैंक दोनों देशों के बीच एक समझौते करा चुका है। हालांकि, भारत ने इस पर एतराज जताया जिसके बाद विश्व बैंक ने कदम पीछे खींच लिए, लेकिन विश्व बैंक ने दोनों देशों को अपने मतभेद सुलझाने के लिए मनाने की कोशिश की है।
30 करोड़ से अधिक लोगों की जीवन रेखा बनी सिंधु नदी
भारत और पाकिस्तान के लिए सिंधु नदी एक जीवन रेखा है। करीब 30 करोड़ से अधिक लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाके में रहते हैं। यानी सिंधु नदी इन 30 करोड़ से ज्यादा लोगों की जिंदगी से जुड़ी है। सिंधु नदी के 80 फीसद जल का इस्तेमाल पाकिस्तान की ओर से किया जाता है। सिंधु नदी का इलाका करीब 11 लाख 20 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। ये नदी तिब्बत से निकलती है। कराची और गुजरात के पास अरब सागर में जाकर मिल जाती है। इस नदी की कुल लंबाई 2,880 किलोमीटर है।
सिंधु जल संधि के पीछे की कहानी
आजादी के पूर्व यानी भारत-पाकिस्तान के विभाजन के पूर्व 1947 में सिंधु नदी के जल को लेकर पंजाब और सिंध प्रांत में विवाद हुआ था। यह विवाद जारी रहा और आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के इंजीनियर मिले और उन्होंने पाकिस्तान की तरफ़ आने वाली दो प्रमुख नहरों पर एक 'स्टैंडस्टिल समझौते' पर हस्ताक्षर किए, जिसके अनुसार पाकिस्तान को लगातार पानी मिलता रहा। ये समझौता 31 मार्च 1948 तक लागू था। एक अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया, इसका असर पंजाब की 17 लाख एकड़ ज़मीन पर पड़ा। हालांकि, बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी की आपूर्ति जारी रखने पर राज़ी हो गया।
चीन से करार
ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों को लेकर भारत और चीन के बीच भी करार है। भारत के भाखड़ा बराज और कई पन बिजली परियोजनाओं का जल इन्हीं नदियों से मिलता है। दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब के तमाम इलाकों में विद्युत आपूर्ति यहीं से होती है।