एक देश में एक साथ हो सभी चुनाव, होगी सरकारी खर्च में बचत
अब देश में एक साथ सभी चुनाव कराने की बात हो रही है। इससे सरकारी खर्चें में बचत होगी साथ ही अन्य चीजों पर भी फर्क पड़ेगा।
(लाल कृष्ण आडवाणी)। नवंबर 2008 में बराक ओबामा संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्येक चार वर्ष बाद होता है। अत: अगला चुनाव नवंबर 2012 में होगा। कानून में चुनाव की तिथि तय है, जो कहता है कि चुनाव नवंबर के पहले सोमवार के बाद मंगलवार को होंगे। कानून की इस परिभाषा के मुताबिक पहली संभावित तिथि 2 नवंबर हो सकती है और अंतिम आठ नवंबर तक। नवंबर 2012 में पहला सोमवार 5 नवंबर को पड़ेगा। अत: अमेरिका में चुनाव की तिथि 6 नवंबर 2012 होगी।
कुछ महीने पहले, प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने जापान के प्रधानमंत्री के सम्मान में दोपहर के भोज का आयोजन किया था। मुङो याद है कि उस मौके पर डॉ मनमोहन सिंह और श्री प्रणब मुखर्जी से मेरी अनौपचारिक बातचीत हुई थी। मैंने पाया कि दोनों उस प्रस्ताव को विचारणीय मानते थे जिसकी मैं पिछले कुछ समय से वकालत करता रहा हूं कि विधायिकाओं का निश्चित कार्यकाल और लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों का साथ-साथ होना। इसका परिणाम यह होगा कि पांच वर्षीय लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तिथि के बारे में कोई अनिश्चितता नहीं होगी। उस दिन, सरकार के इन दोनों वरिष्ठ नेताओं से मैंने इसका जिक्र किया था कि अधिकांश यूरोपीय लोकतंत्रों में ऐसी व्यवस्थाएं हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने ब्रिटिश पद्धति को अपनाया और निर्वाचित विधायिकाओं की अवधि कम करने तथा शीघ्र चुनाव कराने का अधिकार कार्यपालिका में निहित किया। यह संतोषजनक है कि ब्रिटेन स्वयं इसमें परिवर्तन करने पर विचार कर रहा है।
इस माह में, ब्रिटेन में सत्ता संभालने वाली नई गठबंधन सरकार ने पूर्व की व्यवस्था को परिवर्तित करने का वायदा किया है। उप प्रधानमंत्री निक क्लेग का नई राजनीति संबंधी भाषण बड़े आमूल-चूल परिवर्तन करने का वायदा करता है। हां, एक साथ नहीं, थोड़ा-थोड़ा करके। महत्वपूर्ण रूप से मीडिया क्लेग और लिबरल डेमोक्रेट्स को क्रांतिकारियों के रूप में देख रहा है। संसदीय सुधारों के अपने प्रस्तावों में क्लेग ने निर्वाचित हाउस ऑफ लॉर्डस की वकालत की है जिसमें सदस्य अनुपातिक प्रतिनिधित्व मतीय प्रणाली से चुने जाएंगे।
भारतीय प्रधानमंत्री और लोकसभा के नेता के साथ मेरे द्वारा पहल करने के बाद हुए विचार-विमर्श में सर्वाधिक प्रासंगिक है, लोकसभा और राज्य विधायिकाओं का निश्चित कार्यकाल और चुनाव तिथियों के बारे में अनिश्चितता का निर्मूलन।
निक क्लेग के 19 मई के भाषण को उद्धृत करना प्रासंगिक होगा। संसद के निश्चित कार्यकाल की वकालत करते हुए क्लेग ने कहा, ‘यह नितांत गलत होगा कि सरकारें आम चुनाव जैसे महत्वपूर्ण विषय से राजनीति खेल सकें, अनुचित ढंग से अपने अधिकतम लाभ के हिसाब से तिथि चुन सकें।’ क्लेग ने सुस्पष्ट रूप से आगे कहा कि अत: इस सरकार ने पहले ही तिथि तय कर दी है और हम सोचते हैं कि अगला चुनाव सात मई 2015 को होना चाहिए। इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि चुनावों में कौन कहां है। इस प्रस्ताव के लिए लिबरल नेताओं को लेबर पार्टी की तरफ से आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। जिसमें से कुछ नेताओं ने निश्चित कार्यकाल वाली संसद के सुझाव को चौंका देने वाले के रूप में वर्णित किया है। क्लेग की टिप्पणी है, ‘यह आलोचक पूर्णतया तथ्य को नजरअंदाज कर रहे हैं। अविश्वास प्रस्ताव की मौजूदा अपरिवर्तित शक्तियों के अतिरिक्त यह संसद के लिए नया अधिकार है। हम संसद से सरकार को हटा देने का अधिकार नहीं ले रहे हैं बल्कि हम सरकार के अधिकार को वापस ले रहे हैं।
ब्रिटेन का संविधान एकात्मक है, हमारा संघीय है। हमारे यहां एक संघीय विधायिका यानी संसद और 28 राज्य विधानसभाएं हैं, जिनमें से कुछ दो सदन वाली हैं। वह प्रावधान जो राष्ट्रपति या राज्यपाल को विधायिकाओं को बीच में ही भंग करने का अधिकार देता है, के फलस्वरूप स्थिति यह बनी है कि चुनाव पांच वर्ष बाद नहीं होते। जैसा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने सोचा था, और वास्तव में 1952, 1957,1962 और 1967 यानी स्वतंत्रता के बाद के दो दशकों में ही पांच वर्ष बाद चुनाव हुए हैं, उसके बाद से हमें लगभग प्रत्येक वैकल्पिक वर्ष में आम चुनाव या एक छोटा आम चुनाव देखने को मिला है। यह हमारी केंद्र और राज्य सरकारों या हमारी राजनीति के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। आइए हम गंभीरता से इस पर पुनर्विचार करें।
(वरिष्ठ नेता भारतीय जनता पार्टी)
(यह लेख 28 मई, 2010 को लिखा गया ब्लॉग से साभार)
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