कोरोना काल में पेट की भूख शांत करता 'अक्षय पात्र', ऐसे शुरू हुआ सफर
अक्षय पात्र 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 19039 स्कूलों के 18 लाख बच्चों को रोजाना भोजन उपलब्ध करवाता है।
नई दिल्ली, अभिषेक पारीक। दुनिया में रोजाना करोड़ों लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिलता है। कोविड-19 के दौरान यह संकट और गहरा गया है। ऐसे में बहुत से लोगों के सामने परिवार का पेट भरना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। हालांकि इस अंधेरे में रोशनी की मशाल थामे कई संगठन चुपचाप लोगों को भोजन करा रहे हैं। भारत में अक्षय पात्र फाउंडेशन भी इस संकट में लोगों की मदद के लिए आगे आया है। पहले लॉकडाउन से अब तक साढे चार करोड़ से ज्यादा लोगों को यह संगठन भोजन करा चुका है। देश में 55 स्थानों पर अक्षय पात्र की रसोई में भोजन पकता है और खाली पेट की क्षुधा शांत करता है।
ऐसे शुरू हुआ : साल 2000 में अक्षय पात्र 5 स्कूलों के 1500 बच्चों को मिड-डे मील खिलाने से शुरू हुआ। बेंगलुरु स्थित इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष पद्मश्री मधु पंडित दास ने देखा कि कुछ बच्चे रोजाना मंदिर में आते हैं और खाना खाते हैं। पूछा तो बच्चों ने बताया कि हम स्कूल में पढ़ते हैं। परिवार गरीब है। भरपेट भोजन यहीं मिलता है। इसके बाद अक्षय पात्र फाउंडेशन शुरू हुआ। आज यह विश्व का सबसे बड़ा (गैर लाभकारी) मिड डे मील कार्यक्रम है। 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 19,039 स्कूलों के 18 लाख बच्चों को रोजाना भोजन उपलब्ध करवाता है। इसका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है और यह मानता है कि भूख के कारण कोई बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहना चाहिए।
मदद में जुटा अक्षय पात्र : कोविड संकट के दौरान लॉकडाउन और काम न मिलने से बहुत से लोगों को भूखा सोना पड़ता है। ऐसे कई लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट आया तो अक्षय पात्र ने मदद का हाथ बढ़ाया। 13 मई तक अक्षय पात्र की ओर से 4 करोड़ 84 लाख लोगों को भोजन परोसा गया। इसमें अकेले अक्षय पात्र ने 4 करोड़ 14 लाख लोगों को और सहयोगी संगठनों ने 69 लाख लोगों को भोजन कराया। यह संख्या लगातार बढ़ रही है।
फूड रिलीफ किट : तैयार भोजन के साथ ही अक्षय पात्र फूड रिलीफ किट भी उपलब्ध करा रहा है। इसमें दैनिक जरूरत की खाद्य सामग्री होती है। इस किट में मौजूद खाद्य सामग्री से एक व्यक्ति का दोनों समय का 21 दिन तक भोजन तैयार किया जा सकता है। इस किट में दाल, चावल, आटा, चीनी जैसी सामग्रियां होती हैं, जिन्हें अलग-अलग राज्यों में भेजा जाता है।
इस तरह पहुंचता है भोजन : देश के विभिन्न राज्यों में अक्षय पात्र की 55 बड़ी रसोइयां हैं। जहां अत्याधुनिक मशीनों की मदद से भोजन तैयार किया जाता है। जिसे स्वयंसेवक जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं। गुणवत्तापूर्ण भोजन उपलब्ध कराने के लिए साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। सभी कर्मचारी हाथ धोने की प्रक्रिया के बाद गम बूट और सेफ्टी बूट पहनकर ही कर्मचारी अंदर प्रवेश करते हैं। मक्खी-मच्छर के रसोई में प्रवेश को रोकने के लिए फ्लाई कैचर लगाए गए हैं। वहीं हरी सब्जियों पर रसायन के प्रभाव को खत्म करने के लिए इसे क्लोरिनेशन से साफ किया जाता है।
कहां से आता है फंड : अक्षय पात्र द्वारा लोगों को भोजन कराने के लिए बड़ी धनराशि खर्च होती है। मिड डे मील के लिए जहां पर केंद्र और राज्य सरकारों के साथ अक्षय पात्र को मिलने वाले डोनेशन से भोजन तैयार किया जाता है। वहीं कोविड-19 में लोगों को राहत देने के लिए विभिन्न कंपनियां और आम लोगों के सहयोग से लोगों को भोजन वितरित किया जा रहा है।
अक्षय पात्र स्वामी प्रभुपाद के दिखाए रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। आध्यामिक गुरु और कृष्ण चेतना की अंतरराष्ट्रीय सोसायटी (इस्कॉन) के संस्थापक थे। जिसे हरे कृष्णा आंदोलन के लिए जाना जाता है। उनका नाम अभय चरण डे था। 1959 में संन्यासी जीवन की ओर बढ़ गए। 1966 में इस्कॉन की स्थापना की और कृष्ण भक्ति के चैतन्य महाप्रभु के संदेश को दुनिया में फैलाया। लॉकडाउन की शुरुआत से ही अक्षय पात्र भूखों, वंचितों को भोजन उपलब्ध कराने के प्रयास में जुटा है।
भरत दास, रीजनल प्रेसिडेंट, दिल्ली एनसीआर, अक्षय पात्र फाउंडेशन