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आकांक्षा के पीछे छिपी है संघर्ष, जोखिम और सफलता की कहनी, परिवार और जिले का बढ़ाया मान

नीट के एग्‍जाम में काफी बच्‍चे बैठे थे लेकिन कुछ ही ऐसे थे जो इसके रिजल्‍ट में शीर्ष पर थे। इनमें से एक थी आकांक्षा। इस एग्‍जाम को पार करने का जुनून उसके सिर पर इस कदर सवार था हुआ कि उसने जीतकर ही दम लिया।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 01:23 PM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 01:23 PM (IST)
आकांक्षा के पीछे छिपी है संघर्ष, जोखिम और सफलता की कहनी, परिवार और जिले का बढ़ाया मान
नीट में अव्‍वल रहने वाली आकांक्षा सिंह, अपने परिजनों के साथ

नई दिल्ली (संजीव कुमार मिश्र)।  पढ़ाई के लिए दो वर्षो तक रोजना 70 किलोमीटर का सफर भले ही उस वक्त थकाऊ लगता हो, लेकिन वो संघर्ष आज उन्हें सुकून दे रहा है। बेटी की शिक्षा के लिए पिता का वायुसेना से वीआरएस लेना भले ही उस समय जोखिम भरा फैसला लगता हो, लेकिन आज उनके चेहरे पर गर्व की मुस्कान बिखेर रहा है। वो मां का रोज बेटी को बस स्टैंड पर छोड़ने जाना और रात को उसके लौटने का इंतजार करना..

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ये सभी संघर्ष के वो लम्हे हैं, जिन्हें आज मुकाम मिल चुका है। बेटी ने उन सपनों को पूरा कर दिखाया है, जिसके लिए कई वर्षो तक पूरे परिवार ने दिन-रात एक कर दिया।

संघर्ष, जोखिम और सफलता की यह कहनी है उत्तर प्रदेश के कुशीनगर स्थित अभिनायकपुर गांव की आकांक्षा सिंह की, जिन्होंने नीट में दूसरा स्थान हासिल किया है। आकांक्षा में आठवीं कक्षा तक आइएएस अधिकारी बनने की चाहत थी, लेकिन नौवीं कक्षा में उन्होंने डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करने का सपना देखा। उनके इस सपने को पूरा करने में परिवार ने पूरा सहयोग दिया।

कोचिंग के लिए रोजाना सफर :

आकांक्षा ने बताया कि वह परिवार के साथ कुशीनगर के एक छोटे से गांव अभिनायकपुर में रहती हैं। नर्सरी से हाईस्कूल तक की पढ़ाई नवजीवन मिशन स्कूल कसया से पूरी की। नौवीं कक्षा में डॉक्टर बनने का सपना देखा और इसे पूरा करने में जुट गईं। आकाश इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया। दोपहर दो बजे स्कूल की क्लास समाप्त होने पर साइकिल से गांव अभिनायकपुर लौटतीं। फिर मां रुचि सिंह स्कूटी से कसया बस स्टैंड छोड़तीं। बस से वह गोरखपुर जातीं और रात 10 बजे तक क्लास करके घर लौटतीं। आकांक्षा की यह दिनचर्या दो साल तक रही। चाहे बारिश हो या तेज ठंड या फिर भीषण गर्मी। आकांक्षा अनुशासन के साथ घर से स्कूल और फिर गोरखपुर स्थित कोचिंग संस्थान जातीं। यही नहीं रात में घर पहुंचने पर खाना खाने के बाद दोबारा पढ़ाई करतीं।

पिता का वीआरएस लेना :

बकौल आकांक्षा आकाश इंस्टीट्यूट की फैकल्टी ने सलाह दी कि बेहतर तैयारी के लिए दिल्ली का रुख करना होगा। आकांक्षा ने जब यह बात पिता राजेंद्र कुमार राव को बताई तो उन्होंने बेटी के सपनों को तरजीह दी। राजेंद्र कुमार वायुसेना में कार्यरत थे, बेटी की तैयारी के लिए वीआरएस ले लिया और आकांक्षा को लेकर दिल्ली आ गए। यहां उन्होंने दिल्ली के द्वारका स्थित प्रगति पब्लिक स्कूल से 12वीं में दाखिला लिया। तैयारी के दौरान ध्यान न भटके इसके लिए आकांक्षा ने मोबाइल फोन रखना बंद कर दिया। बकौल आकांक्षा फेसबुक, ट्विटर आदि किसी सोशल मीडिया पर उनका कोई अकाउंट नहीं है।


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