COVID-19 से भी अधिक खतरनाक है वायु प्रदूषण, छोटी कर रहा लोगों की लाइफ लाइन
वायु प्रदूषण पृथ्वी पर हर पुरुष महिला और बच्चे की आयु संभाविता यानी लाइफ एक्सपेक्टेंसी को लगभग दो साल घटा देता है। वायु प्रदूषण में कमी नहीं आ रही है बल्कि ये बढ़ता जा रहा है।
नई दिल्ली, ऑनलाइऩ डेस्क/एएफपी। बढ़ती आबादी और संसाधनों के साथ देश दुनिया में एयर क्वालिटी का स्तर भी गिरता जा रहा है। एक ओर जहां कुछ देर अपने यहां की एयर क्वालिटी को बेहतर करने में लगे हुए हैं वहीं हमारे देश में एयर क्वालिटी को लेकर बहुत अधिक काम नहीं किया जा रहा है।
यही कारण है कि दीवाली के दौरान हालात ऐसे हो जाते हैं कि सीनियर सिटीजन, महिलाएं और बच्चों को सांस लेने तक में समस्या हो जाती है। इस दौरान शहर के तमाम अस्पतालों में सांस के रोग से पीड़ितों की संख्या में भी खासा इजाफा हो जाता है। अब एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स की ओर से एक सर्वे किया गया, इस सर्वे में ये बताया कि वायु प्रदूषण वाले पार्टिकल पुरूष, महिला और बच्चे की आयु यानी लाइफ एक्सपेक्टेंसी को लगभग दो साल कम कर दिया है।
एक्यूएलआई ने कहा कि अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देश वायु की गुणवत्ता को सुधारने में सफल रहे हैं लेकिन फिर भी प्रदूषण दुनिया भर में आयु औसत दो साल घटा ही रहा है। वायु गुणवत्ता का सबसे खराब स्तर बांग्लादेश में मिला और अगर प्रदूषण पर काबू नहीं पाया गया तो भारत के उत्तरी राज्यों में रहने वाले लगभग 25 करोड़ लोग अपने जीवन के औसत आठ साल गंवा देंगे।
कई अध्ययनों ने यह दिखाया गया है कि वायु प्रदूषण का सामना करना कोविड-19 के जोखिम के कारणों में से भी है और ग्रीनस्टोन ने सरकारों से अपील की है कि वे महामारी के बाद वायु गुणवत्ता को प्राथमिकता दें। शिकागो विश्विद्यालय के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट में काम करने वाले ग्रीनस्टोन ने कहा कि हाथों में एक इंजेक्शन ले लेने से वायु प्रदूषण कम नहीं होगा, इसका समाधान मजबूत जन नीतियों में है। इसमें जितनी अधिक देरी की जाएगी उसका उतना अधिक खामियाजा हमें भुगतना पड़ेगा।
एक्यूएलआई ने कहा कि पूरे दक्षिण-पूर्वी एशिया में पार्टिकुलेट प्रदूषण भी एक गंभीर चिंता है क्योंकि इन इलाकों में जंगलों और खेतों में लगी आग ट्रैफिक और ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाले धुंए के साथ मिलकर हवा को जहरीला बना देती है। इस इलाके के 65 करोड़ लोगों में करीब 89 प्रतिशत लोग ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां वायु प्रदूषण स्वास्थ्य संगठन के बताए हुए दिशा-निर्देशों से ज्यादा है।
इंडेक्स के वैज्ञानिकों का कहना वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है और ये दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) का कहना है कि एक तरफ तो दुनिया कोविड-19 महामारी पर काबू पाने के लिए टीके की खोज में लगी हुई है वहीं दूसरी तरफ वायु प्रदूषण की वजह से पूरी दुनिया में करोड़ों लोग का जीवन और छोटा और बीमार होता चला जा रहा है। एक्यूएलआई ने अपनी रिसर्च में पाया कि चीन में पार्टिकुलेट मैटर में काफी कमी आने के बावजूद, पिछले दो दशकों से वायु प्रदूषण कुल मिलाकर एक ही स्तर पर स्थिर है।
भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी गंभीर है कि कुछ इलाकों में इसकी वजह से लोगों की औसत जीवन अवधि एक दशक तक घटती जा रही है। शोधकर्ताओं ने कहा है कि कई जगहों पर लोग जिस हवा में सांस लेते हैं उसकी गुणवत्ता से मानव स्वास्थ्य को कोविड-19 से कहीं ज्यादा बड़ा खतरा है। एक्यूएलआई की रचना करने वाले माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा कि कोरोना वायरस से गंभीर खतरा है और इस पर बहुत अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है। लेकिन अगर थोड़ा ध्यान वायु प्रदूषण की गंभीरता पर भी दे दिया जाए तो करोड़ों लोगों और लंबा और स्वस्थ जीवन जी पाएंगे।
दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी सिर्फ उन चार दक्षिण एशियाई देशों में रहती है जो सबसे ज्यादा प्रदूषित देशों में से हैं। इनमें बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान शामिल है। एक्यूएलआई ने पाया कि इन देशों में रहने वालों की जीवन अवधि औसतन पांच साल तक घट जाएगी क्योंकि ये ऐसे हालात में रह रहे हैं जिनमें 20 साल पहले के मुकाबले प्रदूषण का स्तर अब 44 प्रतिशत ज्यादा है।