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किसानों की आय दोगुनी करने के इस लक्ष्य में नई संभावनाएं लेकर आई है ड्रोन तकनीक

कृषि क्षेत्र में सुधारों की एक बयार कृषि कानूनों की वापसी के जरिये भले ही थम गई हो लेकिन तकनीक के विस्तार से खेत और खलिहान की शक्ल-सूरत बदलनी तय है। किसानों की आय दोगुनी करने के इस लक्ष्य में एआइ (कृत्रिम बौद्धिकता) से चलने वाले उपकरण सहायक होंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 04 Jan 2022 11:06 AM (IST)Updated: Tue, 04 Jan 2022 11:08 AM (IST)
किसानों की आय दोगुनी करने के इस लक्ष्य में नई संभावनाएं लेकर आई है ड्रोन तकनीक
कृषि व्यवस्था में नई संभावनाएं लेकर आई है ड्रोन तकनीक। फाइल

अरविंद कुमार मिश्र। 21वीं सदी के दूसरे दशक का पहला साल गुजर गया। वर्ष 2021 को जहां खेती और किसानों से जुड़ी सियासी हलचल के लिए याद किया जाएगा, वहीं नया साल किसानों की आय दोगुनी करने के उपायों पर केंद्रित होगा। कृषि क्षेत्र में सुधारों की एक बयार कृषि कानूनों की वापसी के जरिये भले ही थम गई हो, लेकिन तकनीक के विस्तार से खेत और खलिहान की शक्ल-सूरत बदलनी तय है। किसानों की आय दोगुनी करने के इस लक्ष्य में डिजिटल क्रांति के भावी वाहक आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (कृत्रिम बौद्धिकता) से चलने वाले उपकरण सहायक होंगे।

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हाल में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ड्रोन नीति के अंतर्गत कृषि क्षेत्र में ड्रोन के अनुप्रयोग के लिए नियम तय किए हैं। इससे कृषि क्षेत्र में एआइ आधारित उपकरणों की हलचल बढ़ेगी। अब तक ड्रोन को देश के सीमावर्ती इलाकों में निगरानी तंत्र के नजरिये से ही उपयोगी माना जाता था। पहली बार खेती को आधुनिक रूप देने के लिए ड्रोन नए कृषि औजार के रूप में इस्तेमाल में लाए जाएंगे। कृषि क्षेत्र में ड्रोन के उपयोग बढ़ाने के लिए सरकार ने मानक तय किए हैं। पूरे देश को ड्रोन उड़ाने के लिए तीन जोन में बांटा जाएगा। हवाई जहाज उड़ाने के लिए जिस तरह एयर ट्रैफिक कंट्रोल से फ्लाई पाथ लेना होता है, उसी तरह ड्रोन उड़ाने के लिए तय साफ्टवेयर से मंजूरी लेनी होगी।

ड्रोन और रोबोट से खेतों तक पहुंचेगी एआइ : देश में किसानों की आय बढ़ाने के साथ खाद्यान्न की पोषकता बनाए रखना बड़ी चुनौती है। मौसम में होने वाले अप्रत्याशित बदलावों ने किसानों के संकट को और बढ़ाया है। ऐसी स्थिति में तकनीक के विभिन्न माध्यमों के साथ आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) के अनुप्रयोग कृषि व्यवस्था में नई संभावनाएं लेकर आए हैं। एआइ में विज्ञान और तकनीक के जरिये मशीन में सोचने की क्षमता विकसित की जाती है। ऐसा साफ्टवेयर तैयार किया जाता है, जिसकी मदद से इलेक्ट्रानिक उपकरण इंसानों जैसी प्रतिक्रिया देते हैं। यह मशीनों की इंटेलीजेंस का उपयोग कर निर्देशों के मुताबिक परिणाम हासिल करने की व्यवस्था है। एआइ डाटाबेस (निर्देशों) और मशीन (रोबोट और ड्रोन) द्वारा निर्णय लेने की क्षमता के बीच खाई को कम कर रही है। सर्चइंजन गूगल से लेकर, फेस रिकाग्निशन, बिना ड्राइवर की कार, आपरेशन करते रोबोट जैसे एआइ आधारित अनुप्रयोग मानवीय जीवन को गुणवत्ता प्रदान कर रहे हैं।

कृषि में मौसम के पूर्वानुमान, मिट्टी की तासीर, बाजार में मांग, जोखिम प्रबंधन, बीज तैयार करने में कृत्रिम बौद्धिकता पर चलने वाले उपकरण सहायक हैं। एआइ तकनीक पर चलने वाला उपकरण डाटा एकत्रीकरण और उसके विश्लेषण द्वारा निर्देशों को पूरा करता है। फार्मिग सेंसर उपकरणों के जरिये किसी क्षेत्र विशेष में पिछले कुछ वर्षो में कौन सी फसल उगाई गई, कब कितना ऊर्वरक दिया गया, कीटनाशक तथा खरपतवार नाशक का कब एवं कितना असर हुआ, इन सबसे जुड़ा रीयल टाइम डाटा जुटाया जाता है। एआइ तकनीक के जरिये मशीन डाटा का विश्लेषण कर दिए गए निर्देशों पर सटीक खेती के लिए तथ्य मुहैया कराती है। उदाहरण के लिए सामान्यत: एक खेत के कुछ ही हिस्से में कीटनाशक की आवश्यकता होती है। बावजूद इसके उचित आकलन न होने कारण किसान दवाओं का जरूरत से अधिक छिड़काव करते हैं। ऐसी स्थिति सिंचाई और बाजार में कृषि उत्पादों की मांग समेत अनेक मामलों में होती है।

जाहिर है वस्तुस्थिति का आकलन और उसका प्रभावी निवारण न होने से कृषि उत्पादों की लागत बढ़ाती है और खाद्यान्न की गुणवत्ता कम होती है। ऐसे संकट के समाधान में एआइ से युक्त ड्रोन और रोबोट काफी कारगर होंगे। ड्रोन और रोबोट कंप्यूटर विजन, सेंसर और चेहरा पहचानने की तकनीक से कीट-पतंगों की तस्वीरें लेने और उनके फैलाव के दायरे का पता लगाते हैं। इससे खेत के उस हिस्से में ही कीटनाशक का छिड़काव करने में मदद मिलती है, जहां उसकी जरूरत होती है। इसके साथ ही दवा छिड़काव के लिए किसान को खेत के बीच हिस्से में प्रवेश की जरूरत भी नहीं रह जाती। जर्मनी और इजरायल जैसे देशों में एआइ तकनीक से चलने वाले कृषि रोबोट से फसल की कटाई का कार्य सफलतापूर्वक किया जा रहा है।

कृषि क्षेत्र में एआइ की चुनौतियां : भारत में कृषि क्षेत्र के अत्यधिक श्रम उन्मुख होने से रोजगार परिदृश्य और लागत से जुड़ी समस्याएं पैदा होती हैं। कृत्रिम बौद्धिकता आधारित डिजिटल उपकरणों के प्रयोग से श्रम की बचत तो होगी, लेकिन समानांतर रूप से हमें इससे जुड़े रोजगार सृजित करने होंगे। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक 2050 तक दुनिया की जनसंख्या नौ अरब से अधिक होगी। ऐसे में कृषि व्यवस्था के आधुनिकीकरण के तमाम दावे जमीन पर व्यावहारिक रूप से लागू करने होंगे। इसमें कृषि से जुड़े स्टार्टअप की बड़ी भूमिका होगी। डिजिटल इकोनामी में कृषि की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए परिशुद्ध खेती एक कारगर विकल्प है। परिशुद्ध खेती में डिजिटल कृषि प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके पैदावार वृद्धि करने का प्रयास किया जाता है जिसे सेटेलाइट फार्मिग या स्थान विशिष्ट फसल प्रबंधन के नाम से भी जाना जाता है। इसके द्वारा अधिक कृषि उपज के लिए सही समय पर सटीक और उपयुक्त मात्र में जल, उर्वरक, कीटनाशक आदि का अनुप्रयोग किया जाता है जिससे सही समय और स्थान पर खेत में सही मात्र में फसलों और मिट्टी को वही मिलता है जो उन्हें स्वास्थ्य और उत्पादकता के लिए चाहिए। मूलत: कृषि तकनीकों द्वारा खेती में अधिकतम लाभ, स्थिरता और संसाधन उपयोग के लिए सूचना आधारित कृषि प्रबंधन करना ही परिशुद्ध खेती है।

दुनिया के कई देश एआइ आधारित डिजिटल क्रांति से कृषि में अभूतपूर्व बदलाव लेकर आए हैं। भारत में छोटे भूमि जोत, कमजोर अवसंरचना, जोखिम लेने की क्षमता की कमी एवं सामाजिक, आर्थिक तथा जनसांख्यिकी परिस्थितियों से अभी यह प्रारंभिक अवस्था में है। कृषि उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के उदय के साथ केंद्र ने नेशनल मिशन आन सस्टेनेबल एग्रीकल्चर, एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड का निर्माण किया है। बावजूद इसके कृषि क्षेत्र में एआइ आधारित सेवाओं की मौजूदगी बढ़ने से जुड़ी चिंताएं कम नहीं हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के मुताबिक सीमांत किसानों की संख्या 2003 में कुल किसानों के 69.6 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 76.5 प्रतिशत हो गई है। छोटे किसानों की संख्या इसी अवधि के 10.8 प्रतिशत से घटकर 9.3 प्रतिशत हो गई है। हमारे यहां जोत का आकार भी छोटा है। इसी तरह 65 प्रतिशत आबादी कृषि क्षेत्र में रोजगार हासिल करती है। ऐसे में श्रम आधारित उद्यम कम होने और छोटे किसानों के सामने संसाधनों का संकट खड़ा न हो यह भी देखना होगा। इन चुनौतियों के समाधान के लिए एआइ आधारित रोजगार के नए क्षेत्र सृजित करने होंगे। डिजिटल संसाधन और शिक्षा के विस्तार से यह राह आसान होगी।

कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका : जीरो बजट कृषि के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद तकनीकी नवाचार को बढ़ावा दे रहा है। इसे जमीन पर सफल बनाने की अहम जिम्मेदारी कृषि विज्ञान केंद्रों की है। हालांकि बीज उपलब्धता, किसानों को तकनीक का प्रशिक्षण देने, किसानों तक कृषि प्रौद्योगिकी की पहुंच सुनिश्चित करने में अधिकांश कृषि विज्ञान केंद्र महज रस्म अदायगी करते दिखते हैं। कृषि विज्ञान केंद्रों और जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले कर्मियों से कृषि से जुड़ी योजनाओं का लाभ लेना बेहद कठिन होता है। निचले स्तर पर फैला भ्रष्टाचार और किसानों को योजनाओं की जानकारी न होना इसकी बड़ी वजह है। ऐसे में सबसे पहले कृषि विज्ञान केंद्रों की जवाबदेही तय करनी होगी। कृषि विज्ञान केंद्रों में महिला विज्ञानियों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। कृत्रिम बौद्धिकता के विस्तार के साथ यदि कृषि क्षेत्र में निर्भर महिला कार्यबल को प्रशिक्षित नहीं किया गया तो इससे बेरोजगारी का एक बड़ा संकट खड़ा होगा। खेतों तक डिजिटल फुटप्रिंट बढ़ाने के लिए ग्रामीण स्व सहायता समूह और कृषि सहकारी समितियां मजबूत माध्यम सिद्ध होंगी। नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में परिशुद्ध खेती को लेकर जिन चुनौतियों का जिक्र किया है उनमें किसानों के कौशल विकास की कमी प्रमुख है।

टिड्डियों से बचाव में कारगर थी तकनीक: कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश में टिड्डियों का आतंक देखने को मिला था। राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फसलों को टिड्डियों ने काफी नुकसान पहुंचाया। ऐसे समय में ड्रोन तकनीक काफी सहायक हुई थी। ड्रोन के जरिये ही पीएम स्वामित्व योजना, 2021 को भी अमलीजामा पहनाया जा रहा है। इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों को उनकी संपत्तियों का मालिकाना हक सुनिश्चित किया जाना है। योजना को लागू करने के लिए ड्रोन के जरिये पूरी भूमि का सर्वेक्षण किया जाता है। इससे कोई भी व्यक्ति जबरन किसी की जमीन पर गलत माध्यम से या फर्जी तरीके से अपना अधिकार नहीं जता सकेगा।

ड्रोन का हब बनेगा भारत: नागरिक उड्डयन मंत्रलय के मुताबिक ड्रोन विनिर्माण के क्षेत्र में पांच हजार करोड़ रुपये का निवेश अगले तीन साल में आएगा। इससे कुछ वर्षो में ड्रोन सेवाओं से जुड़ा कारोबार लगभग 30 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। नागरिक उड्डयन मंत्रलय के मुताबिक इस क्षेत्र में तीन लाख लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। एक अनुमान के अनुसार 2026 तक ड्रोन उद्योग 1.8 अरब डालर के स्तर पर पहुंच जाएगा। इसके अलावा केंद्र सरकार ड्रोन और उसके उपकरण बनाने के लिए पीएलआइ (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन) को मंजूरी दे चुकी है। इससे पहले सरकार ने यूएएस (मानवरहित विमान प्रणाली) नियमों को उदारीकृत ड्रोन नियम, 2021 में बदलकर इस क्षेत्र से जुड़े कारोबार को प्रोत्साहित किया है। वैश्विक स्तर पर कृषि में एआइ अनुप्रयोग का निवेश लगभग एक अरब डालर तक पहुंच गया है। 2030 तक 30 प्रतिशत वृद्धि के साथ इसके आठ अरब डालर तक पहुंचने की संभावना है। कृषि दुनिया के सबसे पुराने व्यवसाय में एक है। इसमें कोई दो मत नहीं कि भारतीय कृषि व्यवस्था लंबे समय से नीतिगत सुधारों से वंचित है। इसका सबसे बड़ा असर कृषि में कमजोर निवेश और तकनीक के अभाव के रूप में सामने आया है। ऐसे में यदि खेत-खलिहान और किसान आधुनिक कृषि संसाधनों से अब भी अद्यतन नहीं किए गए तो यह नए आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संकट को जन्म देगा।

[लोकनीति विशेषज्ञ]


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