अहमदाबाद: एसीपी रीमा मुंशी को अब नौकरी से धोना पड़ रहा है हाथ
गुजरात उच्च न्यायालय ने पांच साल पहले हुए जीपीएससी परीक्षा के परिणाम को लेकर लिए अहम फैसले।
नई दिल्ली (जेएनएन)। अहमदाबाद में पांच साल से ज्यादा समय तक एसीपी रहीं रीमा मुंशी को अब नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। गुजरात उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उनकी चयन प्रक्रिया को लेकर एक अन्य उम्मीदवार नेहा परमार के द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को याचिका दायर करने वाली उम्मीदवार नेहा परमार को पुलिस विभाग में नियुक्त करने का निर्देश भी दिया है।
नेहा परमार अपने वकील की मदद से रीमा मुंशी की चयन को रद करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।परमार का आरोप है कि रीमा ने चयन प्रक्रिया के दौरान होने वाला फिजिकल टेस्ट क्लीयर नहीं किया था। जबकि उन्होंने इस टेस्ट का पूरा ब्यौरा संबंधित विभाग को सौंपा था। परमार के वकील राहुल शर्मा ने कहा कि उन्होंने उच्च न्यायालय को कहा था कि ये दस्तावेजों के साथ हेरफेर का केस है, जबकि रिकॉर्ड अपने आप में सब कुछ बयान करता है।
केस की सुनवाई के बाद न्यायाधीश परेश उपाध्याय ने तत्काल राज्य सरकार को मुंशी को पुलिस विभाग से हटाने के निर्देश दिए। इसके साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि मुंशी को कोई और पद सौंप सकते हैं जहां उन्हें इन सारी योग्यताएं की जरुरत नहीं है। मालूम हो कि वर्तमान में रीमा मुंशी अहमदाबाद स्पेशल ब्रांच में एसीपी के पद पर कार्यरत हैं।
छह सालों की ये लम्बी लड़ाई न सिर्फ नेहा परमार की है बल्कि ऐसे ही करीब 20 अन्य उम्मीदवारों की भी यही शिकायतें हैं, जो वर्ग 1 और 2 के पदों पर चयन प्रक्रिया में सफल नहीं हुए थे। बता दें कि जीपीएससी ने 2005-06 में इस परीक्षा के लिए विज्ञापन जारी किये थे लेकिन इसके परिणाम लम्बे समय बाद 2010 में आए थे। चयन प्रक्रिया को हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए फ्रेश चयन सूची की घोषणा की गई थी।
जीपीएससी के वकील दीपक शुक्ला के अनुसार याचिकाकर्ताओं के याचिका के अंतिम फैसले के बाद ही इनकी नियुक्तियां राज्य सरकार के द्वारा की गई। उस समय 317 रिक्तियां थीं जिसमें 41 चयनित उम्मीदवारों ने जॉब के लिए रिपोर्ट ही नहीं किया। उस समय प्रतीक्षा सूची से चयन प्रक्रिया पूरी करने के लिए भी प्रतियोगिता भी कराई गई। उच्च न्यायालय ने 21 उम्मीदवारों के द्वारा दाखिल किये गए याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को उन्हें सेवा में लेने का आदेश दिया।